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फिल्म के लिए ढाई घंटे और ढाई सौ रुपये खर्च करने से पहले अगर आप जरा से भी कंफ्यूज हैं तो इन 6 कारणों पर नजर दौड़ाएं। यहां आपके कंफ्यूजन को कन्क्लूजन तक पहुंचाया जाएगा कि क्यों आपको फिल्म क्यों देखनी चाहिए और क्यों नहीं।
देखनी चाहिए: फूल-टू-फन के लिए
बात पहले देखने वाले कारणों की कर लेते हैं। इस फिल्म का यूनिक कॉन्सेप्ट है कि फिल्म में न तो कोई स्टैब्लिस्ड हीरो और न ही कोई विलेन है। कहानी का पासा वक्त-वक्त पर ऐसा पलटता है कि कभी आयुष्मान खुराना हीरो नजर आएंगे और कभी राजकुमार राव। आखिर में कौन हीरो साबित होता है और कौन विलेन, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। शुरुआत से लेकर आखिर तक आपके मजा आएगा।
देखनी चाहिए: बढ़िया एक्टिंग देखने के लिए
फिल्म में सभी एक्टर्स ने एक्टिंग बढ़िया की है। बड़े दिनों बाद ऐसी फिल्म देखने को मिल रही है जहां लगभग सभी कलाकार दमदार एक्टिंग करते नजर आ रहे हैं। खासकर राजकुमार राव और आयुष्मान खुराना ने फिल्म के लिए काफी मेहनत की है। थोड़े-थोड़े प्रयास सबने किए, और मन लगाकर किए।
देखनी चाहिए: कुछ मीनिंगफुल सिनेमा के लिए
ये बात तो स्वीकार करनी पड़ेगी कि अब ऑडियंस दूसरे टाइप के सिनेमा की तरफ फोकस्ड हो रही है। शायद इसीलिए पिछली कई हिट फिल्मों में मीनिंगफुल सिनेमा की संख्या बढ़ी है। बरेली की बर्फी ने किसी एक मैसेज पर फोकस्ड करने के बजाय कई सारे मैसेज को ध्यान में रखा है। उदाहरण के लिए जैसे लड़की की शादी में आने वाली परेशानियों पर सामाजिक संदेश। प्यार में उठाए जाने वाले गलत कदम… ऐसे कई मैसेज हैं जो फिल्म में बड़ी खूबी से चिपका दिए गए हैं।
नहीं देखनी चाहिए: म्यूजिक की कमी
फिल्म की कहानी जितनी कसावट भरी है, म्यूजिक उस हिसाब से कमजोर मालूम पड़ता है। मेरी नज्म-नज्म… और ट्वीस्ट कमरिया गाने ने लोगों के दिलों में अपनी जगह जरुर बनाई लेकिन ये गाने दर्शकों के जहन में कई सालों तक जिंदा रहेंगे, इस पर संदेह है।
नहीं देखनी चाहिए: तनु वेड्स मनु से कंपेयर कर रहे हों तो…
कई पत्रकारों ने इस फिल्म को तनु वेड्स मनु से कंपेयर किया, मेरा पर्सनली मानना है कि फिल्म का स्तर तनु वेड्स मनु जैसा नहीं है, ये फिल्म अपने आप में अलग है। इसको किसी दूसरी फिल्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। अगर तनु वेड्स मनु के आंकलन से आप जाएंगे तो निराश भी हो सकते हैं। एंज्वॉय के मूड में जाएंगे तो फिल्म बेहतरीन लगेगी।
नहीं देखनी चाहिए: ये कॉम्बिनेशन समझ में नहीं आएगा
फिल्म बनाई गई है, बरेली शहर की पृष्ठभूमि पर जोकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आता है। लेकिन इसके डायलॉग्स में पूर्वी उत्तर प्रदेश, जिसे पूर्वांचल भी कहा जाता है, का टोन सुनाई देता है। ऐसे में रिसर्च टीम की ये लापरवाही समझ से परे है। अगर आपने 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' और 'मेरठिया गैंग' जैसी फिल्में देखी हैं तो आप अंतर आसानी से पकड़ लेंगे। कुछ लोगों को बेमेल कॉम्बिनेशन पसंद नहीं आएगा, इसलिए नहीं देखने वाले कारणों में इस प्वाइंट को भी शामिल किया है।