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बॉलीवुड में नहीं था कोई यार, फिर भी ये चार बने सुपरस्टार, पढ़ें दिलचस्प कहानियां

Updated Thu, 28 Sep 2017 04:39 PM IST
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Bollywood Superstars who never had a Filmy Background
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मौजूदा वक्त में फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा सितारा शायद ही ढूढ़ने से मिले जिसका कोई फिल्मी बैकग्राउंड न रहो हो। इक्का-दुक्का कलाकारों को छोड़ दें को हर एक किसी ने किसी फिल्मी खानदान से ताल्लुक रखता है। लेकिन एक बात काबिल-ए-गौर है कि बॉलीवुड में अब तक जितने भी चोटी के नायक हुए हैं उनमें से किसी का फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था। उनमें बी-टाउन के महानायक अमिताभ बच्चन भी शामिल हैं। 

फिरकी ने ऐसे ही सुपस्टारों की लिस्ट बनाई है जिन्होंने अपने हुनर और लगन से न सिर्फ बॉलीवुड में एक मुकाम बनाया, बल्कि कामयाबी का आसमान भी छुआ और करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणाश्रोत भी बने। 
 

दिलीप कुमार का असली नाम यूसुफ खान था। गुजरे जमाने की मशहूर अदाकारा और बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी के कहने पर उन्होंने अपना नाम दिलीप कुमार रख लिया था। युसुफ अपने 12 भाई-बहनों में से एक थे। यूसुफ खान का जन्म पेशावर के किस्सा खवानी बाजार में 11 दिसंबर 1922 को हुआ था। अब वह जगह पाकिस्तान के खैबर पख्तूनबा में है। यूसुफ के पिता लाला गुलाम सरवार जमीदार और फलों के व्यापारी थे। पेशावर, देओलाली और नासिक में उनके फलों के बागान भी थे। यूसुफ की स्कूलिंग नासिक के बार्नेस स्कूल से हुई।

1930 में उनका परिवार मुंबई के चेंबूर में बस गया। 1940 में पिता से झगड़ा होने के बाद वह पूना चले गए। एक बुजुर्ग एंग्लो-इंडियन पारसी कैफे मालिक की मदद से वह एक कैंटीन के कॉन्ट्रेक्टर से मिले। बिना किसी जान-पहचान के यूसुफ को उनकी अच्छी अंग्रेजी के कारण नौकरी मिल गई। उन्होंने आर्मी क्लब के बाहर एक सैंडविच स्टॉल लगाया और जब उनका कॉन्ट्रेक्ट खत्म हो गया तब उन्होंने 5000 रुपये बचाकर अपने घर मुंबई की ओर रुख किया। 

यूसुफ कुमार अपने पिता का हाथ नहीं बटाना चाहते थे, इसलिए वह चर्चगेट स्टेशन पर डॉक्टर मसानी से मिले। मसानी ने उन्हें मलाड स्थित बॉन्बे टॉकीज में उनके साथ काम करने की सलाह दी। वह बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से मिले और उन्होंने उन्हें 1250 रुपये महीने की तन्ख्वाह पर नौकरी पर रख लिया। यहीं यूसुफ की मुलाकात अशोक कुमार से हुई। वे सशाधर मुखर्जी से मिले। साल के अंत तक ये दोनों लोग अशोक कुमार के घनिष्ट मित्र बन गए। शुरुआत में अशोक कुमार ने यूसुफ की स्क्रिप्ट लिखने में मदद की। 

देविका रानी ने युसुफ खान को अपना नाम दिलीप कुमार रख लेने की सलाह दी और बाद में उन्हें 1944 में आई फिल्म ज्वार भाटा में लीड रोल भी दिया। इसी फिल्म से दिलीप कुमार का फिल्मी सफर शुरू हो गया।

राजेश खन्ना उन 10 हजार प्रतियोगियों में से एक थे जिन्होंने 1965 में ऑल इंडिया टैलेंट कॉन्टेस्ट में हिस्सा लिया था। ये टैलेंट हंट यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेयर ने आयोजित कराया था। खन्ना इस कॉन्टेस्ट में जीत गए थे। बीआर चोपड़ा, बिमल रॉय, जीपी सिप्पी, एचएस रावैल, नासिर हुसैन, जे ओम प्रकाश, मोहन सैगल, शक्ति सामंत और सुबोध मुखर्जी आदि ने यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स ऑर्गनाइजेशन बनाई थी और ये लोग उस कॉन्टेस्ट के जज थे।

राजेश खन्ना को पहला ब्रेक 1966 में आई फिल्म 'आखिरी खत' से मिला। राजेश खन्ना को भारतीय सिनेमा का पहला सुपस्टार कहा जाता है। 1969 से 1971 तक उन्होंने लगातार 15 सोलो हिट फिल्में दीं। ये रिकॉर्ड अब तक कायम है। 1970 से 1987 तक राजेश खन्ना बॉलीवुड के सबसे महंगे स्टार रहे। वहीं उन्हीं के बराबर कमाई का रिकॉर्ड अमिताभ बच्चन ने दर्ज कराया। वे 1980 से 1987 तक इस टैग को बरकरार रखने वाले स्टार रहे। राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना था।

अमिताभ बच्चन के पूर्वज यूपी के प्रतापगढ़ जिले की रानीगंज तहसील के गांव बाबूपत्ती के रहने वाले थे। अमिताभ का जन्म इलाहाबाद में 11 अक्टूबर 1942 को हुआ। अमिताभ बच्चन का कोई फिल्मी बैकग्राउंड तो नहीं रहा है, लेकिन उनके पिता जी हरिवंश राय बच्चन भारत के महान कवियों में से एक माने जाते हैं। अमिताभ हिंदू कायस्थ परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनका सरनेम श्रीवास्तव था, लेकिन उनके पिता जी ने अपने नाम के बाद बच्चन बतौर टाइटल इस्तेमाल किया जो कि बाद में उनके परिवार का सरनेम बन गया।

अमिताभ की मां तेजी बच्चन पंजाबी क्षत्रिय परिवार से ताल्लुक रखती थीं। अमिताभ का नाम पहले इंकलाब रखा गया था। यह इंकलाब जिंदबाद नारे से प्रेरित था। इंकलाब जिंदाबाद का मतलब होता है- लंबी चलने वाली क्रांति। लेकिन कवि सुमित्रानंदन पंत की सलाह पर हरिवंश राय बच्चन ने उनका नाम अमिताभ रख दिया। अमिताभ का मतलब होता है- कभी न बुझने वाली रोशनी।

अमिताभ की पढ़ाई नैनीताल के मशहूर शेरवुड कॉलेज से हुई और फिर बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से। अमिताभ के एक छोटे भाई अजिताभ भी हैं। अमिताभ की मां तेजी बच्चन का थियेटर आदि में इंटरेस्ट था। उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए ऑफर भी किया गया था। लेकिन उन्होंने गृहणी बनना ही पसंद किया। लेकिन तेजी बच्चन चाहती थीं कि उनका बड़ा बेटा यानी अमिताभ स्टेज के बीचों-बीच दिखे।

वैसे तो अमिताभ की पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी हैं। लेकिन इससे पहले बतौर वॉइस नरेटर 1969 में आई फिल्म भुवन शोम से वह डेब्यु कर चुके थे।
 
करियर की शुरुआत कुछ खास नहीं रही, लेकिन 1973 में प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर में अमिताभ लीड रोल में नजर आए। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया। इसी फिल्म से फिल्म इंडस्ट्री को 'एंग्री यंग मैन' मिला। 1970 से 1980 के बीच अमिताभ बच्चन की हिट फिल्मों की फेहरिस्त और उनकी लोकप्रियता को देख एक फ्रेंच डायरेक्टर फ्रैंकोइस ट्रफॉट ने यहां तक कह दिया था कि वह 'वन मैन इंडस्ट्री' हैं। अमिताभ ने कई फिल्मों में उनकी को-एक्ट्रेस रहीं जया भादुड़ी से शादी की। आज 74 की उम्र में भी अमिताभ पहले की तरह एक्टिव हैं और सिल्वर स्क्रीन के अलावा टीवी पर मशहूर कार्यक्रम 'कौन बनेगा करोड़पति' को होस्ट करते नजर आते हैं।

अन्य सुपरस्टारों की तरह शाहरुख खान का भी कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था। उनके पिता मीर ताज मोहम्मद खान स्वतंत्रतता सेनानी थे और दिल्ली में कई व्यापार करते थे। शाहरुख बताते हैं कि वह पठान हैं और उनके पूर्वज अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पेशावर से थे। 1948 में देश का बंटवारा हुआ तो शाहरुख का परिवार दिल्ली आकर बस गया। शाहरुख की मां लतीफ फातिमा सरकारी इंजीनियर की बेटी थीं।

शाहरुख का पालन-पोषण दिल्ली के राजेंद्र नगर में हुआ जहां उनका परिवार किराए के घर में रहता था। स्कूलिंग दिल्ली के सेंट कोलंबस से हुई। स्कूलिंग के दौरान शाहरुख हॉकी और फुटबॉल खेलते थे। उनके हुनर को देखते हुए स्कूल की तरफ से उन्हें सबसे बड़ा छात्र पुरस्कार 'स्वोर्ड ऑफ ऑनर' दिया गया था।

शाहरुख ने कॉलेज के दिनों में कई स्टेज परफॉर्मेंस दीं। वह बॉलीवुड एक्टरों की नकल करते थे और उनकी खूब तारीफ होती थी। अम्रता सिंह उनके बचपन की दोस्त थीं जो बाद में एक्ट्रेस बनीं। 1985 से 88 के बीच शाहरुख ने दिल्ली के हंसराज कॉलेज से इकॉनोमिक्स में बैचलर डिग्री की। लेकिन इस दौरान वह अपना ज्यादातर समय दिल्ली के 'थियेटर एक्शन ग्रुप' में बिताते थे। यहां उन्होंने मेंटोर जॉन बैरी के अंडर में एक्टिंग के गुर सीखे। उन्होंने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में मास कम्युनिकेशन में एमए में दाखिला लिया, लेकिन डिग्री पूरी नहीं की और एक्टिंग करियर की ओर निकल पड़े।

बॉलीवुड के शुरुआती दिनों में शाहरुख ने दिल्ली का नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा भी ज्वाइन किया। करियर की शुरूआत टीवी धारावाहिकों से हुई। 1988 में 'दिल दरिया' नाम के धारावाहिक में रोल मिला लेकिन इसके प्रोडक्शन में देरी हुई। लेकिन इसकी जगह 1989 में धारावाहिक 'फौजी' से शाहरुख का एक्टिंग करियर शुरू हुआ। इसके बाद उन्होंने 'सर्कस', 'इडियट', 'उम्मीद', 'वागले की दुनिया' में का किया।

1991 में शाहरुख ने मुंबई का रुख किया और उन्हें चार फिल्मों के ऑफर मिले। पहले शाहरुख का डेब्यु हेमा मालिनी की 'दिल आसना है' से होने वाला था लेकिन 1992 में आई फिल्म 'दीवाना' उनकी डेब्यु फिल्म बनी। शुरुआती फिल्मों में शाहरुख विलेन के किरदारों में नजर आए, लेकिन फिर इन्होंने रोमेंटिंक फिल्मों की झड़ी लगा दी। शाहरुख का जादू इस कदर चला कि अमिताभ के बाद इन्हें सुपरस्टार माना गया। मीडिया इन्हें किंग खान, बादशाह आदि नामों से भी बुलाती है। इनका सिगनेचर नेम एसआरके भी है।

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