विस्तार
हमारी तरफ से फिल्म को तीन स्टार
'हाफ गर्लफ्रेंड' को हिंदी में क्या कहते हैं? 'ब्रेक अप' और 'हुक अप' की हिंदी क्या होती है?
एक ठेठ बिहारी, औसत से भी कम अंग्रेजी बोलने वाला लड़का एक बेहद खूबसूरत, अमीर और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली दिल्ली की लड़की का ध्यान खींच लेता है और फिर लड़की उसके लिए 'दोस्त से कुछ ज्यादा और गर्लफ्रेंड से कुछ कम हो जाती है'।
2014 में चेतन भगत की नॉवेल आई थी 'हाफ गर्लफ्रेंड' और अब फिल्म आई है। चेतन भगत ने लड़का-लड़की के अधकचरे संबंधों को जो नाम दिया है, देखा जाए तो भारत में प्राचीन काल से लेकर आज के आधुनिक युग तक, अगर इस शब्द की परिधि वाले लोगों की गणना कर ली जाए तो नाम भरने को जगह नहीं बचेगी।
कहने का मतलब है कि देश में हाफ गर्लफ्रेंड और हाफ ब्वॉयफ्रेंड की कभी कमी नहीं रही, खुदा के करम से हमारा सामाजिक ढांचा और मां-बाप की अपेक्षाएं भी अमूमन ऐसी ही होती हैं कि लड़का और लड़की 'हाफ' दूरी तक तो रिश्तों को घसीट ले आते हैं, फिर उनका भगवान मालिक...!
फिल्म की कहानी तो चेतन भगत तीन साल पहले ही नॉवेल में बता चुके हैं। फिर भी शॉर्ट में इतना जान लीजिए कि बिहार के एक छोटे से गांव डुमरांब के राज परिवार का राजकुमार (दिल्ली के हिसाब से गरीब) माधव झा (अर्जुन कपूर) स्पोर्ट्स कोटे से दिल्ली के नामी सेंट स्टीफेंस कॉलेज में दाखिले के लिए आता है। अंग्रेजी में कमजोर होने के बावजूद उसकी साफगोई को देखते हुए उसे दाखिला मिल जाता है। वह अपनी मां को फोन पर दिल्ली के हाईफाई कॉलेज की व्यथाएं बता ही रहा होता है एकाएक नजर बॉस्केटबॉल कोर्ट पर जाती है, जहां चिलचिलाती धूप में कम कपड़ों में बेपनाह हुस्न की नुमाइश करती कॉलेज की ग्लैमरस गर्ल रिया सोमानी (श्रद्धा कपूर) अपने कौशल का परिचय देते हुए गेंद को गोल पोस्ट में डालती जाती हैं।
माधव फोन पर मां से बोल देता है कि उसे अब दिल्ली में टिकने की वजह मिल गई है और वह रिया की खूबसूरती के आगे नतमस्तक हो मन ही मन ख्वाब देख लेता है कि एक दिन उससे बात जरूर करेगा।
यहीं से हल्की-फुल्की गुदगुदाने वाली प्रेम कहानी का आगाज होता है। हालांकि शुरुआत माधव के एकतरफा प्यार से होती है बिना यह जाने कि लड़की की असल (निजी) जिंदगी की दुश्वारियां क्या हैं। दोस्तों की सलाह पर माधव रिया से अपने रिश्ते के बारे में पूछता है, जिसे वह नाम देती है, हाफ गर्ल फ्रेंड...
रिया बचपन से मां के साथ हो रही घरेलू हिंसा देखती आ रही होती है, और तनाव कम करने के लिए म्यूजिक का सहारा लेती है। न्यूयॉर्क के किसी बड़े बार में गाना उसका सबसे बड़ा ख्वाब होता है और इस बात को वह कल्पना की पराकाष्ठा पर फिल्माए गए सीन में माधव को बताती है। सीन इंडिया गेट की छत का है, जहां वह सारी सुरक्षा को धता बताकर माधव के लेकर जब चाहे चढ़ जाती है।
माधव एकबार फिर दोस्तों के कहने पर अपने और रिया के रिश्ते की कसौटी परखता है, वह रिया को अपने कमरे में बुलाता और फिर ऐसा बरताव करता है कि रिया को उससे नफरत हो जाती है।
रिया के मां-बाप उसकी शादी अमीर और एलीट एनआरआई रोहन से करा देते हैं। गम का मारा माधव दिल्ली छोड़ बिहार में अपने गांव चला जाता है, जहां उसकी मां पिछले 22 वर्षों से बच्चों के लिए एक निजी स्कूल चला रही होती हैं।
माधव प्लेसमेंट की नौकरी न करके, मां के स्कूल को ही देखने लगता है। स्कूल में टॉयलेट्स नहीं होतीं, इसलिए लड़कियां पढ़ने नहीं आतीं। माधव बिल गेट्स एंड मिलिंडा फाउंडेशन से स्कूल के लिए चंदा जुगाड़ने के प्रयास में लगता है तो एक बार फिर उसकी जिंदगी में रिया आ जाती है। इस बार उसके सामने तलाकशुदा रिया होती जो कंपनी के काम के सिलसिले में बिहार आती है।
रिया की जिंदगी का सच और बेटे से उसका साथ माधव की मां को अखरता है, वह रिया से उसे छोड़ने के लिए कहती हैं, रिया एक अप्रिय बात खत में लिखकर कहीं दूर चली जाती है।
माधव दिल में रिया को खोजता हुआ और गेट्स फाउंडेशन में इंटर्नशिप करने न्यूयॉर्क जाता है, जहां उसका कॉलेज का दोस्त शैलेश उसे मिलता है।
माधव का गम बांटने के लिए शैलेश और उसकी पत्नी काफी कोशिशें करते हैं, तभी एक और खूबसूरत लड़की अचानक से माधव के दिल में घुसने का असफल प्रयास करती है। आखिर में उसी के जरिए माधव रिया को ढूंढ़ लेता है। फिल्म की हैप्पी एंडिंग होती है। आखिर में माधव और रिया की एक बच्ची परदे पर दिखाई देती है, जिसे मां रिया बास्केट बॉल के गुर सिखा रही होती हैं।
कुलमिलाकर फिल्म में वो सब कुछ है जो कॉलेज गोइंग स्टूडेट्स और एक बड़े युवा वर्ग को आकर्षित करता है। हालांकि चेतन भगत की यह नॉवेल उनकी बाकी नॉवेल्स के मुकाबले धमाल नहीं मचा पाई थी, लेकिन आशिकी 2 और एक विलेन बनाने वाले निर्देशक मोहित सूरी ने अपने प्रयासों से फिल्म को देखने लाइक तो बना ही दिया है। रही बची कसर अरिजीत की आवाज में 'मैं फिर भी तुमको चाहूंगा' गाना पूरी कर देता है।
फिल्म को कुछ कम वक्त के दायरे में और बेहतर सिनेमेटोग्राफी में समेटा जा सकता था, लेकिन कहीं-कहीं फिल्म फैलती सी लगती है। अर्जुन कपूर बिहारी लड़के के गेटअप में तो नहीं, लेकिन उसके अंदाज यानी बिहारी बोलते हुए गजब के लगे। अर्जुन ने दमदार अभिनया किया है, श्रद्धा तो माहिर अदाकारा हैं ही, लेकिन इस फिल्म में वे कमाल की खूबसूरत लगी हैं।
एक अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों से दुखभरी एंडिग फिल्मों का ट्रेंड सी बन गई थी, दर्शकों के लिए यह अच्छा है कि वे मुस्कराते हुए और माधव और रिया के लिए सहानुभूति का भाव लिए सिनेमा हॉल से बाहर आ सकते हैं। फिल्म को यूए सर्टिफिकेट मिला है और आपत्तिजनक सीन भी न्यूनतम स्तर पर हैं, इसलिए फैमिली के साथ देखी जा सकती है।
कुल मिलाकर, बाहुबली के एक्शन और रोमांच की डोज से उकता गए हों तो हाफ गर्ल फ्रेंड की कहानी थोड़े वक्त के लिए ही सही, एक ऐसे ठहराव में आपको ला देगी, जिसमें दीवनापन है, उतावलापन है, प्यार, और हल्का-फुल्का रोमांस है।