अभय कुमार गांगुली। जिसने कभी संगीत सीखा नहीं। बस संगीत को जिया। जिसके जेहन में संगीत बसती थी। जिसे दुनिया ने किशोर कुमार के नाम से जाना। जब इंडस्ट्री में आया तब लोगों ने हल्के तौर पर लिया। लेकिन अपनी मेहनत से जिसने ये साबित कर दिया कि संगीत किसी के बाप की जागीर नहीं। बस श्रद्धा होनी चाहिए। अपने करियर में हिंदी के अलावे बांग्ला, मराठी, गुजराती, आसामी, उड़िया, भोजपुरी यहां तक की कन्नड़ और मलयालम में भी गाने गाए।
जो जब इंडस्ट्री में आया और अपने पैर जमाए तो मोहम्मद रफ़ी जैसे मंझे हुए खिलाड़ी के भी पत्ते ढीले पड़ गए। लेकिन ये सब खेल नहीं था। मतलब एक वक़्त ऐसा आया कि नौशाद को मोहमम्द रफ़ी की क्लास लगानी पड़ गई। उन्हें रफ़ी साहब को अपने घर में बुलाकर उन्हें समझाना पड़ गया था कि हौसला मत हारो तुम रफ़ी हो। तुम्हें कौन परास्त कर सकता है। तुम अर्जुन हो, अर्जुन। जिसके गांडीव से निकला तीर अपने निशाने को भेद कर ही ठहरता है।
आखिर कुछ तो बात रही होगी। इस किशोर कुमार नाम के इक्के में। जो इस आदमी ने बॉलीवुड में बड़े बड़ों को झुका दिया। जिसने तीन दशक से भी ज्यादा वक़्त तक इंडस्ट्री पर राज़ किया।
ऐसा ही वाकया है। साल 1962 का। फिल्म बन रही थी हाफ टिकट। डायरेक्टर थे कालीदास साहब। सलील चौधरी इस फिल्म में म्यूज़िक दे रहे थे। गाना रिकॉर्ड होना था। सारी तैयारी पुरी हो चुकी थी। गाना एक डुएट था। मतलब दो सिंगर जिसे मिल के गाएं। इस गाने के लिए भी लता मंगेशकर और किशोर कुमार का नाम सलील सोच चुके थे।
सलील बात मान भी गए। गाना किशोर कुमार और प्राण के ऊपर फिल्माया गया था। और आवाज़ दोनों ही में किशोर कुमार की ही थी। गाना रिलीज़ भी हुआ और हिट भी। मुझे तो अपने स्कूल के दिन याद आते हैं। जब हम कभी चित्रहार और रंगोली सुनते तो कभी-कभार भूले बिसरे गीत में ये गाना बजा दिया जाता। हम भी इसे मजाक-मजाक में ही खूब दुहराते।
तो जिस आदमी में संगीत को लेकर इतना जूनून हो, इतना समर्पण फिर किसकी हिम्मत है कि उसे आगे बढ़ने से रोक लेता। फिर तो किशोर दा ने एक से बढ़कर एक गाने दिए। और आज भी कभी अगर झूमने का मन हो तो इन्हें याद आकर लीजिएगा। निराश नहीं होंगे। ये हमारा वादा है।