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जावेद अख्तर को एक बार कहते हुए सुना था, 'लोगों से सिनेमा बनता है और सिनेमा से किरदार'। अपने 100 साल से भी ज़्यादा के सफ़र में सिनेमा ने हमने कभी ‘श्री 420’ के राज कपूर दिए, तो कभी ‘प्यासा’ का गुरु दत्त, कभी 'आराधना' का राजेश खन्ना दिया तो कभी दीवार के 'एंग्री यंग मैन' अमिताभ को देखा।
सिनेमा धीरे-धीरे बढ़ता हुआ ‘राज-सिमरन’ के क्रांतिकारी प्यार तक पंहुचा। तो बीच-बीच में नसीर, अनुपम और नाना ने अपने किरदारों की छाप छोड़ी. साल-दर-साल सिनेमा आगे बढ़ता गया, हमारी उम्मीदों को अपने में समेटे हुए, हमारी कमियों, सपनों, आशाओं को कहानी-किरदार के माध्यम से दिखाता रहा।
‘आनंद’ फिल्म के आनंद और ‘शोले’ के गब्बर जैसे लीड किरदार हमारे ज़ेहन में ऐसे रचे-बसे, कि फिर कभी नहीं हटे। लेकिन इन लीड किरदारों के अलावा कुछ ऐसे किरदार थे, जिन्हें भले-ही डायलॉग्स के मामले में केवल मुट्ठी भर लाइन्स और स्क्रीन प्रेज़ेंस मिली, लेकिन कुछ मिनटों की उनकी अदाकारी हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन गयी।
चूंकि डिजिटल पढ़ने वाली जनरेशन नई है, इसलिए नया उदहारण देती हूं। 3 Idiots मूवी में रेंचो, राजू, फरहान, वायरस के किरदारों के अलावा जिस एक किरदार ने हम सब का ध्यान अपनी ओर खींचा और इस फ़िल्म को 'कल्ट' फ़िल्म की कैटेगरी में रख दिया, वो था 'चतुर रामलिंगम' बने ओमी वैदय का। आपको भी अच्छे से याद होगा। अगर नहीं याद तो सर्च कर लीजिए।
फिल्मों की सफलता का श्रेय हम हीरो-हीरोइन को तो हमेशा ही देते हैं। लेकिन इन कलाकारों का भी उसमें उतना ही योगदान है। चलिए, मिलते हैं कुछ ऐसे ही किरदारों से, जिन्होंने बॉक्स अॉफिस पर सफ़ल फ़िल्मों को अपने अभिनय से और यादगार बनाया।
तनू वेड्स मनू को अगर लोगों ने पसंद किया, तो उन्हें पप्पी जी के किरदार से प्यार हो गया। क्या कमाल किया है दीपक डोबरियाल ने इस फ़िल्म में. जिन्हें लगता है ये सिर्फ़ कॉमेडी में माहिर हैं, उन्हें 'गुलाल', 'ओमकारा' दोबारा देखने चाहिए। दीवाने हो जाओगे इस आदमी के।
भूल-भुलइया', 'फिर हेरा-फेरी', 'हलचल', 'हसी तो फंसी' और ऐसी कई फ़िल्में हैं इनके नाम पर। ये कॉमेडी के किंग हैं लेकिन इनकी एक्टिंग में इसके अलावा और भी शेड्स हैं।आपने इन्हें चक्रवर्ती सम्राट अशोक में 'चाणक्य' की भूमिका में भी देखा होगा।
'रन' फ़िल्म में विजय राज़ के निभाए किरदार को तो इपने देखा ही होगा। मुझे इस फ़िल्म का एक भी सीन याद नहीं है, लेकिन जब भी कोई 'विजय राज़' का नाम लेता है, इस फ़िल्म में उनके हिस्से के सारे सीन याद आ जाते हैं। विजय ने 'मॉनसून वेडिंग' में भी 'दुबे जी' के रोल से इस फ़िल्म को देखने का आनंद बढ़ा दिया था।
'भाग मिल्खा भाग' सबसे बेहतरीन फ़िल्मों में से एक मानी गयी है। जितना बड़ा कद इसके डायरेक्टर राकेश ओम प्रकाश मेहरा, फरहान अख्तर का था, उतना ही श्रेय दिव्या दत्ता को दिया जाना चाहिए। फ़िल्म में एक सीन है, जब मिल्खा फ़ौज में नौकरी मिलने पर अपने गांव वापस जाता है। उसके पास अपनी बहन के लिए कंगन हैं। भाई-बहन के मिलन का वो सीन शायद दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत शॉट्स में से एक है। इस सीन में बहन की आंखों के आंसू खुशी के रास्तों से आते हैं, भाई की उम्मीदें भी नम ज़मीन सी दिखाती हैं।
जिस फ़िल्म में आमिर खान, अनुपम खेर, माधवन जैसे कलाकारों की फौज हो, वहां अच्छे से अच्छे कलाकार के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन अतुल कुलकर्णी ने ये आसानी से कर दिया। गम्भीर और एक धार्मिक विचार-धारा की ओर झुके हुए राजनीतिक युवा के रोल को उन्होंने ‘रंग दे बसंती’ में बहुत खूबसूरती से किया।
तुम्हारा प्यार न हुआ, यूपीएससी का एक्जाम हो गया', 'लड़की के वलीमे में फिरनी खाते हुए दिखोगे', 'मौहल्ले का प्यार डॉक्टर और इंजीनियर ले जाते हैं'... कुछ याद आया? 'रांझणा' के मुरारी की अदाकारी में 'कुंदन' के प्यार जितना दम था। मोहम्मद ज़ीशान अयूब ने जिस खूबी से इस किरदार को निभाया है, वो शायद लोग कभी नहीं भूलेंगे। ये आदमी आपको तनू वेड्स मनू में भी दिखा होगा। वहां भी असके किरदार में दम था।
पान सिंह तोमर' का वो रिपोर्टर याद है, जिसने पान सिंह का इंटरव्यू किया था। वो हैं बृजेंद्र काला। आधे लोगों को ये मूवी इरफ़ान खान के अभिनय के साथ उस डरे-सहमे रिपोर्टर के लिए याद है।
और हमें भी। 'जब वी मेट' का वो टैक्सी ड्राइवर? इसके अलावा तिग्मांशू धूलिया की फ़िल्म 'हासिल' में ये अखबार वाले भईया बने हैं।
तो ये हैं तो छोटे कलाकार पर इनका काम किसी बड़े एक्टर से कम नहीं है। इनकी एक्टिंग मे ंवो दम है जो अच्छे-अच्छे एक्टर्स को भी चुनौती दे सकती है। है कि नहीं....