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पाकिस्तान में लोकतंत्र की सबसे प्रबल समर्थक और हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों के समर्थन में आवाज उठाने वालीं प्रसिद्ध वकील असमां जहांगीर का रविवार को निधन हो गया। पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की पहली महिला अध्यक्ष रहीं असमां जहांगीर शायद अकेली शख्सियत थी जिनकी जितनी लोकप्रियता पाकिस्तान में थी उससे ज्यादा लोग उन्हें हिंदुस्तान में पसंद करते थे।
हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों की पैरवी करने वाली असमां इसके लिए शक्तिशाली पाकिस्तानी सेना और उसके जनरलों से टकराने में भी नहीं हिचकती थीं। कुछ दिन पहले आए एक वीडियो में तो असमां ने सेना के जनरलों को 'पालिटिकल डफर' तक बोल दिया था।
सेना भी उनसे पूरी खुन्नस खाती थी, इसीलिए कई बार उन्हें मारने का प्रयास भी किया गया लेकिन सफलता नहीं मिली। भारतीय नागरिक कुलभूषण के मुद्दे पर तो असमां ने पाकिस्तानी हुकूमत तक को खरी खोटी सुना दी थी।
असमां ने साफ कहा था कि कुलभूषण के मामले में पाकिस्तान को राजनीतिक पहुंच की अनुमति देनी चाहिए। वहीं कुलभूषण के परिजनों से पाकिस्तान में हुई बदसलूकी पर भी असमां ने हुकूमत पर सीधे सवाल उठाया था कि पता नहीं उन्हें किसने यह सलाह दी, उन्हें यह समझना चाहिए कि इसकी प्रतिक्रिया भारत की जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों पर भी हो सकती है। आइए जानते हैं उनके बारे वो पांच बातें जिसकी वजह से पाकिस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में सराही गईं असमां जहांगीर।
असमां जहांगीर को सबसे पहले लोकप्रियता तब मिली जब उन्होंने सैन्य जनरल जियाउल हक के खिलाफ लोकतंत्र की स्थापना के लिए अपनी आवाज बुलंद की थी। इसके चलते 1983 में उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी। जेल से छूटने के बाद उन्होंने लोकतंत्र के समर्थन में कई आंदोलन चलाए और उनका नेतृत्व किया।
पाकिस्तान में सबसे खतरनाक कानून है ईशनिंदा कानून, जहां किसी को भी ईश्वर की निंदा करने पर मौत के घाट उतार दिया जाता है। असमां जहांगीर ने खुलकर इस कानून का विरोध किया। यह जानकर भी वह पीछे नहीं हटी कि इस कानून के समर्थन में पाकिस्तान का कट्टर समाज भी खुलकर खड़ा होता है।
1983 में ही पाकिस्तान में एक 13 साल की लड़की के साथ बलात्कार हुआ था, जिसके चलते वह गर्भवती हो गई थी। पाकिस्तान के कानून के अनुसार उसे जिना बनाने (शादी से पहले संबंध) के आरोप में जेल में डाल दिया गया। असमां खुलकर इस निर्णय के विरोध में खड़ी हो गई और राष्ट्रपति जिया उल हक के निर्णय को चुनौती दी। इसके बाद वह पाकिस्तान में काफी लोकप्रिय हुईं।
साल 2007 में जब पाकिस्तानी शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश इफ्तिखार चौधरी को पद से हटा दिया तो इसके बाद शुरू हुई वकीलों के आंदोलन का असमां ने खुलकर समर्थन किया। उन्होंने इसके पक्ष में माहौल बनाने के लिए भी जबरदस्त माहौल बनाया, जिसका नतीजा ये रहा कि मुशर्रफ को पूर्व चीफ जस्टिस चौधरी को दोबारा बहाल करना पड़ा।
कुलभूषण मुद्दे पर पाकिस्तान से उनके समर्थन में उठने वाली इकलौती आवाज असमां जहांगीर की ही थी। इस मुद्दे पर असमां लगातार पाकिस्तानी हुकूमत को भी खरी खोटी सुनाती थीं। असमां ने साफ कहा था कि पाकिस्तान जिस तरह का रवैया कुलभूषण मामले में रख रहा है उसका नुकसान भारतीय जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों को भी हो सकता है।
असमां पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हितों की भी सबसे बड़ी हिमायतीं थीं, उन्होंने पाक में बसे हिंदूओं और इसाईयों के अधिकारों के लिए भी कई आंदोलन चलाए। ऐसे में हर पाकिस्तानी अल्पसंख्यक को असमां जहांगीर में अपना हिमायती दिखाई देता था।
कुछ दिन पहले एक चैनल की डिबेट में असमां ने पाकिस्तानी सेना के जनरलों को डफर बताते हुए कब्जा ग्रुप तक कह डाला था। असमां के अनुसार पाकिस्तान के जनरल प्लाट पर कब्जा करने और गोल्फ खेलने के काम में ही मगन रहते हैं, उन्होंने देश को आतंकवाद का अड्डा बना दिया है।