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ये थीं भारत की पहली महिला ग्रेजुएट

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Mon, 27 Mar 2017 03:15 PM IST
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Kadambini Ganguly
Kadambini Ganguly - फोटो : wikipedia
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महिलाएं आज से ही नहीं बल्कि बहुत पहले से अलग-अलग क्षेत्रों में अपना नाम रौशन करती रही हैं। वैसे तो आज भी महिलाएं उतनी स्वतंत्र नहीं हैं जितना होना चाहिए लेकिन कुछ जुझारू महिलाओं ने अंग्रेज़ों के शासनकाल में भी अपनी योग्यता का परचम पूरे भारत में लहरा दिया था। आज हम बात करेंगे भारत की पहली महिला ग्रेजुएट के बारे में।

पहली महिला जो ग्रेजुएट हुईं उनका नाम है कादम्बनी गांगुली। ये सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे ब्रिटिश साम्राज्य से और साउथ एशिया से पहली ऐसी महिला थीं जो स्नातक की पढ़ाई कर सकीं। साथ ही इसी साल आनंदी गोपाल जोशी एक फिजिशियन के रूप में अमेरिका से ग्रेजुएट हुई थीं और आनंदी भारत की पहली महिला डॉक्टर भी हैं।
 

कादम्बनी के पिता ब्रज किशोर बासु एक ब्रह्म समाज के सुधारक थे। कादम्बनी का जन्म 18 जुलाई 1861 को भागलपुर में हुआ था। इनका परिवार बांग्लादेश के चांदसी से था। इनके पिता भागलपुर के एक स्कूल में हेड मास्टर थे। इनके पिता और अभय चरण मलिक ने भागलपुर महिला समिति की स्थापना की। ये भारत की पहली महिला समिति थी।

कादम्बनी ने अपनी पढ़ाई की शुरुआत बंग महिला विद्यालय से की। ये कोलकाता विश्वविद्यालय से पास होने वाली पहली महिला थीं। इनकी योग्यता को देखते हुए ही बेथून कॉलेज में फर्स्ट आर्ट्स नाम का एक कोर्स शुरू किया गया। इस कोर्स से कादम्बनी गांगुली और चद्रमुखी बासु ने पहली बार स्नातक की डिग्री हासिल की।
 

कादम्बनी गांगुली ने कोलकाता मेडिकल कॉलेज से मेडिसिन की पढ़ाई भी की थी। ये और आनंदी गोपाल जोशी पहली भारतीय महिलाएं थीं जिन्होंने वेस्टर्न मेडिसिन में डॉक्टर की डिग्री हासिल की। इसके साथ ही अबला बोस ने भी ये एंट्रेंस पास कर लिया था लेकिन उनको दाखिला नहीं दिया गया जिसके बाद वो मेडिसिन की पढ़ाई करने मद्रास चली गयीं लेकिन कभी ग्रेजुएट नहीं हो पाईं।

कादम्बनी को अपने आती दौर में कई जगहों पर दुभाति का शिकार होना पड़ा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। कादम्बनी 1892 में इंग्लैंड चली गईं और वहां से LRCP, LRCS और GFPS की डिग्री लेकर लौटीं। उन्होंने कुछ समय तक लेडी डफरिन अस्पताल में काम किया और फिर अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस शुरू कर दी।
 

1883 में कादम्बनी की शादी ब्रह्म समाज सुधारक द्वारकानाथ गांगुली से हो गयी। इनकी 8 संतानें थीं जिस वजह से इन्हें अपने घर पर ख़ास ध्यान देना पड़ता था। इन दोनों ने मिलकर कई सामाजिक कार्य किए जिसमें कोयले की खानों में काम करने वाली महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए काम करना प्रमुख था। कादम्बनी कांग्रेस की 6 महिला सदस्यों में से एक थीं।

इन्होंने 1906 में कोलकाता में एक महिला सम्मलेन भी करवाया था। ये सम्मलेन बंगाल के विभाजन के बाद हुआ था। अमेरिकी इतिहासकार डेविड कोप्फ़ लिखते हैं कि कादम्बनी एक बेहद स्वतंत्र ब्रह्म महिला थीं। वो किसी आम ब्रह्म या इसाई महिला की तरह नहीं थीं बल्कि उनमें कुछ बेहद ख़ास था। परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ने में वो माहिर थीं और यही वजह है कि बंगाल की महिलाओं के लिए वो एक उदाहरण हैं।
 

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