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कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता और किसी भी काम को करने का अधिकार किसी एक का नहीं। इसी कहावत पर खरी उतरी हैं महाराष्ट्र के कोल्हापुर की रहने वाली शांता बाई।
शांताबाई को देश की पहली महिला नाई कहा जाता है। इन्होंने इस काम में पुरुषों के एकाधिकार को तोड़ते हुए एक नई इबारत लिखी।
शांता के पिता एक नाई थे और वो बचपन से पिता के काम को देखती आई थीं। शादी के बाद जब ससुराल आईं तो यहां आर्थिक हालात कुछ अच्छे नहीं थे। शांता के पति का सिर्फ खेती से गुजारा नहीं होता था। 1984 में अचानक श्रीपति की मौत हो जाने के बाद शांताबाई पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। शांता पर अब अपनी 4 बेटियों और खुद की जिम्मेदारी आ गई थी। उन्होंने गरीबी से तंग आकर बेटियों समेत जिंदगी खत्म करने मन बना लिया था। फिर एक दिन गांव के सभापति ने उन्हें पति का काम संभालने की सलाह दी।
शांताबाई के गांव के आसपास के गांवों में कोई हज्जाम नहीं था, इसलिए उन्होंने गांव-गांव घूमकर हजामत करना यानी नाई का काम शुरू कर दिया। पहले तो वो सिर्फ इंसानों के बाल काटती थी फिर उन्होंने जानवरों के बाल भी काटने शुरू कर दिए। मर्दों का काम जब औरत को करते देखा तो समाज ने उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया, लेकिन शांता उनके तानों और मजाक से बेपरवाह होकर काम करती रहीं और धीरे-धीरे उन्होंने इस काम के दम पर अपनी 4 बेटियों की शादी की। शांताबाई की उम्र 70 साल की है, लेकिन अभी भी उनका ये काम बखूबी जारी है। शांता उन महिलाओं के लिए मिसाल हैं, जो मेहनत के दम पर कुछ हासिल करना चाहती हैं।