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रेलवे स्टेशन पर जब आप बेसब्री से ट्रेन का इंतजार कर रहे हों, तब हमेशा एक आवाज यह कहकर.... 'यात्रीगण कृप्या ध्यान दें' आपकी बेचैनी को दूर करती है। ऐसे में कई बार आपने सोचा होगा आखिर ये आवाज किसकी है।
सवालों का बवंडर दिमाग में इसलिए भी रहता होगा कि सफर के दौरान स्टेशन तो तमाम बदल जाते हैं लेकिन आवाज हमेशा वही रहती है। पूछने पर कभी किसी ने आपसे शायद यह भी बताया हो कि ये आवाज असली न होकर कंप्यूटर की है, इसीलिए सभी जगह एक सी सुनाई देती है। लेकिन हकीकत यही है कि वो आवाज बिल्कुल असली है और आज हम आपको उसी आवाज के बारे में बता रहे हैं जिसके गले से निकलकर ये रेलवे के इतिहास में दर्ज हो गई।
ये आवाज है सरला चौधरी की। साल 1982 में सरला चौधरी का चयन सेंट्रल रेलवे की ओर से रेलवे अनाउंसर की तौर पर किया गया था। खास बात ये है कि रेलवे में पहली बार निकले अनाउंसर के इस पद के लिए 100 से ज्यादा लोगों ने ट्रायल दिया था लेकिन उनमें से सिर्फ सरला चौधरी का चयन हुआ। शुरूआत में उन्हें दैनिक कर्मचारी के तौर पर इस काम के लिए चुना गया, लेकिन उनकी लगन और गजब की आवाज ने चार साल बाद ही उन्हें स्थायी कर्मचारी बना दिया।
इस बारे में काफी पहले मिड डे को दिए इंटरव्यू में सरला ने बताया था कि शुरूआत में उन्हें अलग अलग स्टेशन पर जाकर अपनी आवाज रिकार्ड करानी पड़ती थी। उस समय कंप्यूटर का दौर नहीं था इसलिए जगह जगह मैनुअल रिकार्डिंग होती थी।
सरला चौधरी उस ग्रुप की सदस्य रही जिन्हें साल 1991 में आल इंडिया रेडियो के लिए अनाउंसमेंट करने के लिए कहा गया। सरला बताती हैं कि उन्होंने मराठी से लेकर विभिन्न तरीकों और विभिन्न परिस्थितियों में अपनी आवाज रिकार्ड करवाई जिसे कंप्यूटर की मदद से मिक्सिंग के द्वारा सुरक्षित कर लिया गया।
अब सभी जगह रेलवे स्टेशनों पर अनाउसमेंट रेलवे के ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम से किया जाता है। रेलवे ने अब सरला की आवाज को स्टैंडबाई मोड में रख लिया है, जिसका सभी स्टेशनों पर इस्तेमाल किया जाता है।
हालांकि कुछ साल बाद ही सरला ने निजी कारणों के चलते रेलवे की नौकरी छोड़कर कल्याण में ओएचई डिपार्टमेंट में ऑफिस सुपरीडेंट के पद पर ज्वाइन कर लिया। सरला बताती हैं कि मुझे बड़ी खुशी होती है जब मैं विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर अपनी आवाज सुनती हूं। अच्छा लगता है लोग मुझे नहीं जानते लेकिन मेरी आवाज की तारीफ करते हैं।