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अभी कुछ समय पहले की ही बात है जब यूरोप में बुर्कीनी का भारी विरोध हो रहा था। वहां के कुछ लोगों को इस बात से दिक्कत थी कि कुछ महिलाएं बीच पर अपने शरीर को पूरी तरह से ढंक कर क्यों आ रही हैं? ज़ाहिर है ये एक धर्म विशेष की महिलाएं थीं। अब समझने वाली बात ये है कि लोगों को दिक्कत बुर्कीनी से थी या कुछ धर्म विशेष के लोगों से।
हालांकि इस फैसले के खिलाफ़ कोर्ट में अपील दायर की गई और कोर्ट की तरफ़ से ये साफ़ कह दिया गया कि बुर्कीनी पर रोक लगाना असंवैधानिक है। पश्चिम में कई जगह मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ता है। अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती हैं जब हेत क्राइम के तहत उनके हिजाब जबरन खींच लिए जाते हैं।
अब सवाल ये पैदा होता है कि ऐसा क्यों है? अगर कोई व्यक्ति अपना शरीर या सिर ढंकना चाहता है तो इस बात से किसी को क्या परेशानी हो सकती है? बात वही है लोगों को हिजाब से नहीं उसे पहनने वालों से दिक्कत है। अक्सर मुस्लिम महिला खिलाड़ियों का हिजाब पहन कर खेलने पर मज़ाक उड़ाया जाता है लेकिन अब नाइकी ने इस ओर एक नया कदम उठाया है।
नाइकी जैसे बड़े ब्रांड ने पहली बार महिला खिलाड़ियों के लिए हिजाब निकाला है। अब महिलाएं बड़े ब्रांड के हिजाब पहन सकेंगी। इसकी ब्रांड एम्बैज़ेडर ज़ाहरा लारी होंगी। उन्होंने इसे डिज़ाइन करने में भी मदद की है। इसे 'प्रो हिजाब' नाम के एक कैम्पेन के साथ लॉन्च किया गया है।
जैसा कि इसके नाम से ही साफ़ हो जाता है कि इसे हिजाब के पक्ष में चलाये गए एक कैम्पेन के रूप में पेश किया जा रहा है। जहां विश्व में पिछले कुछ सालों में अचानक ही इस्लाम को लेकर एक नफ़रत पैदा हुई है उसे देखते हुए ये एक अच्छा कदम लगता है। भले ही इसके पीछे नाइकी के अपने हित होंगे लेकिन ये 'कॉर्पोरेट सोशल रिस्पोंसिबिलिटी' का एक अच्छा उदाहरण है।
भारत से भी कई बार ऐसे किस्से सुनने को मिल जाते हैं जिनमें हिजाब को लेकर कुछ जगह टकराव हुआ है। जिन संस्थानों में ड्रेस कोड होता है वहां ये दिक्कत देखने को ज़्यादा मिलती है। हमारे देश में हर धर्म के लोग रहते हैं। ऐसे में हमें हर एक धर्म की संस्कृति का सम्मान करते हुए उनकी बातों को अपनाना चाहिए। और फिर हिजाब में बुराई भी क्या है।
हिजाब सिर्फ़ मुस्लिम औरतें पहनेंगी ये ज़रूरी नहीं है। हर कोई अपने बालों को साफ़-सुथरा रखना चाहता है ऐसे में कोई भी इसे पहनना पसंद कर सकता है। ऐसा ही कुछ बुर्कीनी के साथ भी है। सोचिए अगर ऐसा कोई कानून बन जाए कि बीच पर आप सिर्फ़ स्विम सूट पहन कर आ सकते हैं तो न जाने कितनी ही औरतें बीच पर जाना ही छोड़ देंगी।
भारत में भी स्विम सूट आम नहीं है। तो ऐसे में जो लोग बुर्कीनी पर प्रतिबंध का समर्थन कर रहे थे वो एक बार भारत को यूरोप की जगह रख कर देखें। यही बात हिजाब पर भी लागू होती है। हर महिला को ये अधिकार है कि वो अपने बालों को बांध कर रखे या खुला छोड़ दे। इसे अगर किसी धर्म से न जोड़कर केवल ऐसे देखा जाए कि कोई खेलते समय अपने बालों को ढंकना चाहता है, तो शायद इस बात को समझने में काफ़ी आसानी होगी।
अगर किसी को लगता है कि इससे खेल में किसी तरह की परेशानी पेश आती है तो बताये। जहां तक देखा जाए तो हिजाब पहने हुई खिलाड़ी से विरोधी टीम के सदस्यों को खेल में किसी तरह का कोई नुक्सान होता नहीं दिखता है।
नाइकी की इस पहल के बाद देखिए दुनिया भर की महिलाएं इसपर क्या कहना चाहती हैं!
यही भविष्य है!
ये बहुत अधिक कम्फ़र्टेबल होगा...
ख़ुशी है कि बड़ी कंपनियां इस ओर ध्यान दे रही हैं
अब एक बात तो साफ़ हो गई है कि अगर बाज़ार चाहे तो किसी भी मुद्दे को उठाकर बहुत करीने से लोगों के सामने पेश कर सकता है। बाज़ार मुद्दों को बना और बिगाड़ सकता है। उसमें ये ताकत है। अगर बाज़ार अपने फाएदे के लिए ही सही, किसी सामाजिक मुद्दे को उठाकर उसपर बेहतर कदम उठाता है तो इसमें किसी का कोई नुक्सान नहीं है।