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अगर आप जिंदगी से निराश हैं तो वशीकरण स्पेशलिस्ट बाबा बंगाली से कतई न मिलें, बस यह स्टोरी पढ़ें। आप महसूस करेंगे कि दो-चार ट्रक कॉन्फिडेंस आपमें कूट-कूटकर भर गया है और जिंदगी में कोई भी अड़चन बची नहीं है, जो आपको मायूस कर दे।
इस कहानी की पात्र वे बुजुर्ग महिलाएं हैं जो आंखों की रोशनी न होते हुए भी बागवानी कर जीवन चलाने लायक कमा रही हैं और दूसरों के लिए मिसाल बन रही हैं।
कुछ पल के लिए हम यूं ही आंखें बंद कर लें तो एक अजीब सी बैचेनी से दम घुटने लगता है और ये महिलाएं है जो मेहनत मजदूरी करके गर्व से जिंदगी जी रही हैं। मध्य प्रदेश के जबलपुर के ग्रामीण इलाकों से ताल्लुक रखने वाली ये महिलाएं कभी ऐसे स्कूल या कॉलेज नहीं जा पाईं जहां खास ब्रेल लिपि के जरिये शिक्षा दी जाती है। उम्र बीतती गई, लेकिन उम्मीद जिंदा रही। और फिर ऐसा वक्त आया जब इनके चर्चे होने लगे।
ये दृष्टिहीन महिलाएं सब्जियों और फूलों की खेती करती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सिहोरा ब्लॉक के गांव जॉली की 50 वर्षीय तारा बचपन से ही दृष्टिहीन हैं। वह 6 महीने की थीं जब उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। इस अक्षमता के कारण तारा की कभी शादी नहीं हो पाई। समय बीतने के साथ ही तारा को इस तनाव ने घेर लिया कि वह घर पर बोझ बनकर रह रही हैं। वह कुछ करना चाहती थीं, लेकिन कुछ हो नहीं रहा था। उनके घर के पास उनकी खाली पड़ी जमीन थी, जिस पर बागवानी करने का विचार उनके मन में आया। तारा फल और सब्जियों की उगाना चाहती थीं, लेकिन दिखाई न देने के कारण वह कर न सकीं।
फिर एक दिन उनके गांव एक एनजीओ वाले से उनकी मुलाकात हुई। तारा उसे अपनी आपबीती बताई और बागवानी करने की इच्छा भी जाहिर की। एनजीओ ने जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क करके तारा को ट्रेनिंग दिए जाने की बात कर ली। इस ट्रेनिंग के जरिये तारा को पता चला कि फलो, सब्जियों और फूलों की क्यारियों उत्तर-दक्षिण दिशा में बनाने पर पौधों पर धूप सीधी नहीं पड़ती है।
दूसरे गांवों में भी तारा की तरह दूसरी दृष्टिहीन महिलाएं बागवानी कर अपनी जीविका चला रही हैं। बुधुआ गांव की 65 वर्षीय रज्जो बाई भी अपनी जमीन पर सब्जियां उगा रही हैं। अनामिका सब्जियों के साथ गेंदें के फूलों की खेती भी कर रही हैं।