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वह एक औरत है। वह ऐसे काम के लिए फिट नहीं है। औरत होकर वह ऐसा काम करेगी। औरतों को घर के काम करना ही शोभा देता है। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि आज भी कुछ लोग इसी तरह कि अवधारणा पाल कर रखे हैं। लेकिन शांति देवी जैसी कुछ औरते हैं जो कि इस तरह की सोच रखने वालों के लिए एक चुनौती हैं। जी हां शांति देवी वो नाम है जिसने गरीबी के हर दिन देखे हैं। दिल्ली से सटे इलाकों में चाय भी बेचा है। जब 50 साल से ऊपर की कोई औरत चाय बेचने का काम करे तो इसके पीछे की वजह या तो गरीबी हो सकता है या उसकी मजबूरी। शौक तो बिल्कुल नहीं हो सकता।
शांति देवी चाय का धंधा छोड़ने के बाद अपने परिवार को सहारा देने के लिए मैकेनिकल स्किल्स अपने पति से सीखी। और धीरे-धीरे ट्रक मैकेनिक्स का काम शुरू कर दिया।
शांति देवी को देखकर ही लगता है कि बहुत अच्छे या खाते-पीते घर से नहीं है। वह एक साधारण घर से है। लेकिन काम जोखिम भरे करती है। एक दिन में 10-15 ट्रक के टायर्स फिक्स करती है। ट्रक के टायर्स खोलना तो इसके बाएं हाथ का खेल है। वह बहुत आसानी से 50 किलो के ट्रक के टायर को उठा लेती है। वही बात है जब अंदर जुनून हो तो भारी काम भी आसान लगते हैं। ऐसे भारी काम करना सभी औरतों के बस में नहीं लेकिन शांति देवी उनके लिए एक ठोस उदारहण बन चुकी है जिन औरतों को गरीबी या मजबूरी के चलते दूसरों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है।