Home Feminism What It Is Like To Be A Single Mother

एक सिंगल मदर होने का निर्णय लेना इतना कठिन क्यों है?

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Thu, 16 Mar 2017 01:50 PM IST
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s - फोटो : google
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बच्चे भगवान का दिया हुआ सबसे खूबसूरत तोहफ़ा होते हैं। उनका मन बिल्कुल साफ़ होता है और आप उनके मन की किताब में जो लिखते हैं आगे चलकर उनकी ज़िंदगी उन्हीं उसूलों पर चलती है। बच्चे सभी को पसंद होते हैं। अगर आप कभी दुखी हैं तो किसी छोटे बच्चे को देख लीजिए, आपका मन खुश हो जाएगा।

किसी नए मेहमान के आने की ख़ुशी घरों में किस तरह मनाई जाती है इससे आप सभी वाक़िफ़ होंगे। लेकिन यही ख़ुशी कुछ घरों में मातम में बदल जाती है। जिस महिला ने कभी मां बनने का सपना देखा होता है वो अचानक ही बेहद डर जाती है। आखिर उस महिला के डर का क्या कारण होता है?
 

उस महिला के साथ बात सिर्फ़ इतनी सी होती है कि वो शादीशुदा नहीं होती। बच्चे के आने की ख़ुशी इसी बात से तय होती है कि बच्चे के माता-पिता शादीशुदा हैं कि नहीं। जहां महिला शादीशुदा नहीं होती वहीं बच्चे के आने के साथ जाने का प्लान बनाया जाता है। 

शहरों में हर दिन न जाने कितनी ही एबॉर्शन करवा दिए जाते हैं। सालों पहले जब महिलाएं एबॉर्शन को लेकर जागरुक नहीं थीं तो खुद को नुक्सान पहुंचाकर एबॉर्शन की कोशिश करती थीं। ये कदम उठाना कई बार बेहद ज़रूरी होता है और वहीं दूसरी तरफ़ एक बेहद अहम फैसला भी होता है।
 

उस वक़्त महिलाओं के मन में जो जद्दोजहद चलती है उसे गौहर खान की शॉर्ट फ़िल्म पीनट बटर बहुत अच्छे ढंग से दिखा रही है। जब कम उम्र की लड़कियां प्रेग्नेंट होती हैं तब उनके सामने एबॉर्शन के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचता लेकिन जब एक कामकाजी महिला के सामने ये स्थति आती है तो ज़ाहिर तौर पर उसके मन में एक बार ये बात ज़रूर आती है कि क्या वो इस बच्चे को जन्म नहीं दे सकती?

इस फ़िल्म में प्रिया माथुर यानी गौहर खान को पता चलता है कि वो मां बनने वाली हैं। तो तुरंत अपनी डॉक्टर के साथ समय निर्धारित करती हैं और ये तय करती हैं कि वो एबॉर्शन करवा लेंगी। जब वो घर से निकल ही रही होती हैं तो उनके दरवाज़े की घंटी बजती है और सामने उनका बच्चा खड़ा होता है। वो एक जवान लड़का होता है। 
 

वो अपनी मां से पूछता है कि वो ये कदम क्यों उठाने जा रही हैं। इसपर वो कहती है कि एक सिंगल मदर होना बहुत कठिन है। उनका करियर बर्बाद हो जाएगा और कोई उनको पसंद नहीं करेगा। इस फ़िल्म में उन सारी बातों पर गौर किया गया है जो एक सिंगल मदर को झेलनी पड़ती हैं। 

एक गैर शादीशुदा मां को बड़ी हिकारत की नज़र से देखा जाता है जैसे उसने न जाने कितना बड़ा गुनाह कर दिया होगा। उस महिला के लिए कई बार कुछ ऐसे शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है जिसे ये समाज बड़े धड़ल्ले से इस्तेमाल करता है। लेकिन जब महिला अपने पैरों पर खड़ी होती है तो उसे इन सभी बातों को सोचने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए।
 


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