मोसम्मत का 45 वर्ष का पति किसी दूसरी औरत को लेकर भाग गया था। इसके बाद से उन पर बच्चों को पालने की पूरी ज़िम्मेदारी आ गयी। उन्होंने इससे पहले और भी कुछ कामों में हाथ आज़माया था। वो घरेलू नौकरानी के तौर पर काम कर रही थीं, पर उससे मिलने वाले पैसे उनके लिए काफ़ी नहीं थे और उन्हें बच्चों की देख-भाल करने का समय नहीं मिल पता था। उन्होंने एक फैक्ट्री में भी काम किया, पर वहां मेहनत बहुत ज़्यादा और पैसे बहुत कम दिए जाते थे।
इसके बाद उन्होंने अपने पड़ोसी का रिक्शा किराए पर लिया और उसे चलाना शुरू किया। शुरू-शुरू में उन्हें काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था, पर धीरे-धीरे हालात सामान्य होते चले गए। शुरू में जब लोग एक औरत को रिक्शा चलाते देखते थे, तो उन्हें बड़ा अटपटा लगता था। लोग उनके रिक्शे पर बैठने से हिचकिचाते थे। कोई उनसे कहता कि ये मर्दों का काम है, तो कोई उन्हें इस्लाम का हवाला देकर कहता कि उनका धर्म औरतों को इस तरह सड़कों पर घूमने की इजाज़त नहीं देता।
जैसा कि हमेशा से काम को भी जेंडर के आधार पर बांटा गया है कि ये काम केवल पुरूषों के लिए है औरतों के लिए नहीं। इसके बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी। आज वो दिन में 8 घंटे काम कर के हर दिन का 600 टका (500 रुपये) कमा लेती हैं।
हमारी तरफ से मोसम्मत को 100 सलामी।