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सुशांत झा साउथ दिल्ली में 'पढ़ेगा इंडिया' स्टार्टअप सफलता पूर्वक चला रहे हैं। स्टार्टअप सेकेंड हैंड किताबों का है। वे किताबें जो बाजार में महंगी मिलती हैं और दुर्लभ होती है। सुशांत बेहद कम दामों में वे किताबें स्टूडेंट्स को मुहैया कराते हैं। उन्होंने यह काम अपने फ्लैट से शुरू किया था जो आज अच्छा खासा हो गया है। सुशांत ने यह कदम तब उठाया जब उन्हें मैकेनिकल इंजीनियरिंग और एमबीए करने के बाद निराशा हाथ लगी। सुशांत करीब 40 कंपनियों से नकारे गए। वह बताते हैं उनका ऊपरी होंठ हल्का सा कटा हुआ है, जिसकी वजह से साफ बोल पाने में दिक्कत होती है, इसी वजह से इंटरव्यू लेने वाले उनकी बात पूरी सुने बिना ही उन्हें जाने को कह देते थे।
करीब दो साल बेरोजगारी गुजराने के बाद एक दिन उन्होंने अपने भाई से कुछ नया करने की चर्चा की। वह कुछ ऐसा करना चाहते थे, जिससे आमदनी के साथ साथ लोगों और पर्यावरण की सहायता हो सके। उन्होंने अपने बचपन के दिनों को याद किया जब सोसायटी के गरीब बच्चों के लिए गर्मियों की छुट्टियों में किताबों की लाइब्रेरी खोल देते थे। फिर क्या था, सुशांत ने 2014 में ‘बोधि ट्री नॉलेज सर्विसेज एंड इनिशिएटिव पढ़ेगा इंडिया’ नाम से अपनी कंपनी रजिस्टर करवा ली। शुरू में भाई के साथ वह खुद लोगों और वेंडरों से संपर्क करते थे। लोगों की मांग के हिसाब से उन्हें किताबें उपलब्ध कराई जाती थीं। किताबों की डिलीवरी भी सुशांत खुद करते थे ताकि कंपनी की पहचान बने। खास बात यह भी थी कि जब ग्राहक किताब से पूरी तरह संतुष्ट होता था तभी उसकी कीमत अदा करता था।
सुशांत का स्टार्टअप अब दिल्ली ही नहीं, देश भर में काम करना चाहता है। इस काम के पीछे उनका तर्क है कि एक तो पढ़ने वालों को महंगी किताबें सस्ते में मिल जाती हैं। दूसरा- इससे कागज की बचत होती। कागज बचता है तो पेड़ कटने से बचते हैं। यानी लोगों का भी फायदा और पर्यावरण का भी फायदा। सुशांत की वेबसाइट यह भी बताती है कि कितने लोगों पर कितने किलो कागज की खपत होती है और उसके लिए कितने पेड़ काटे जाते हैं।
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thebetterindia