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बहू की मदद से 98 की उम्र में बुजुर्ग ने रचा इतिहास, युवा ले सकते हैं सीख

Updated Tue, 26 Sep 2017 08:03 PM IST
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98 Year Old Raj Kumar Vaishya From UP Clears Post Graduation Exam
- फोटो : rediff.com
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जिस उम्र में हाथ-पांव काम नहीं करते, शरीर जवाब दे जाता है, उस उम्र में इस बुजुर्ग ने मास्टर डिग्री पूरी की है। उम्र के इस पड़ाव में इस बुजुर्ग की सफलता के पीछे किसी और नहीं, बल्कि बहू भारती एस कुमार का हाथ रहा। बहू ने बुजुर्ग को पढ़ाया, बेटे ने भी मदद की ...और परिणाम सबके सामने हैं। नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय के इतिहास में इस बुजुर्ग की एमए (अर्थशास्त्र) की डिग्री के साथ कामयाबी और प्रेरणा की नई इबारत लिखी जा चुकी है। 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 98 वर्षीय राजकुमार वैश्य ने स्नातक की पढ़ाई 1938 में आगरा विश्वविद्यालय से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई की। लेकिन स्नाकोत्तर की ललक बनी रही। वैश्य की इस उपलब्धि को लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी जगह मिली है। 

राजकुमार वैश्य मूल रूप से यूपी के बरेली के रहने वाले हैं, लेकिन फिलहाल अपने लड़के संतोष कुमार और बहू के साथ बिहार के पटना में रहते हैं। 
 

वैश्य ने अपनी इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए कहा- मैं इस बात को कहते हुए बड़ा ही खुश महसूस कर रहा हूं कि मेरे बेटे के घर पर पढ़ाई लिखाई करने का बहुत बढ़िया माहौल है। मेरा बेटा और बहू मुझे गणित और स्टेटिस्टिक्स पढ़ाते हैं।

वैश्य ने एमए की परीक्षा जरूर पास कर ली, लेकिन एक कसक आज भी उनके दिल में बनी हुई है। एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में उन्होंने कहा कि हम आजादी के समय से ही गरीबी हटाओ का नारा सुनते आ रहे हैं, लेकिन आज भी गरीबी बरकरार है। मैंने अपने बेटे से कहा है कि वह अपने कैमरे से कुछ तस्वीरें लाए और मैं उन झुग्गियों और वहां फैली गरीबी को लेकर एक लेख लिखूंगा और समाचार पत्र में दूंगा।

वैश्य इस उपलब्धि के पीछे की बड़ी वाजिब वजह बताते हैं। वह कहते हैं कि युवाओं को संदेश देने के लिए उन्होंने इस उम्र में मास्टर डिग्री की। वह कहते है कि कभी उदास न हों और न ही तनाव में रहें और कभी भी हार न मानें। मौका हमेशा मिलते हैं, उन्हें भुनाने के लिए खुद पर विश्वास करना जरूरी है।

नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने वैश्य की इस उपलब्धि पर कहा कि वह 2016-17 की परीक्षा देते वक्त अपने पड़पोते और पड़पोतियों की उम्र के बच्चों की बीच बैठकर तीन घंटे की परीक्षा देते थे। वह अंग्रेजी में लिखते थे। 

नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय की अधिकारियों को जब पता चला कि वैश्य उनके यहां से मास्टर की डिग्री पूरी करना चाहते हैं तो वे उनके घर उनका फॉर्म भरवाने गए थे।

इस उम्र में वैश्य का जुझारूपन वाकई किसी भी युवा मन को उसके उन्नीदेपन से झकझोरने के लिए काफी है। वैश्य हमारे समाज के जिंदा आइकॉन हैं। युवाओं को चाहिए कि वे उनसे सीख लें। फिरकी टीम वैश्य के जज्बे को सलाम करती है।

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