हम आप जब भी बाज़ार से कोई सामान लाते हैं। कितनी बार उस पर लिखी बातों को ध्यान से पढ़ते हैं? नहीं पढ़ते हैं या फिर पढ़ते भी हैं तो शायद बस वो देखने भर होता है ना कि पढ़ने जैसा। लेकिन हर कोई ऐसा नहीं होता। कुछ लोग दिमाग खोल कर चलते हैं।
उदाहरण के लिए ले लें। डाबर कंपनी को हम सभी जानते हैं। डाबर कंपनी रियल के नाम से फ्रूट जूस बनाती है। उसके पैकेट पर लिखा था(अंग्रेजी में),
आपने पढ़ा। क्या आपको इसमें कुछ अजीब सा लगा? शायद नहीं। ज्यादातर लोगों को नहीं लगा होगा। लेकिन गुवाहाटी की तीसरी क्लास की एक बच्ची को ये चीज़ चुभ गई। इसके बाद उसने इस जूस को पीने से मना कर दिया।
हुआ ये कि उस बच्ची ने अपने पापा से कहा कि मैं ये जूस नहीं पी सकती। क्योंकि ये लड़कियों के लिए तो है ही नहीं। ये तो लड़कों के लिए है बस। हम और आप सभी जानते हैं कि इंग्लिश ग्रामर के हिसाब से अंग्रेजी में पुलिंग के लिए 'him' का इस्तेमाल होता है और स्त्रीलिंग के लिए 'her' का इस्तेमाल।
अब आप वो ऊपर अंग्रेजी में लिखी लाइन को फिर से पढ़िए। ध्यान से! बस, वही प्रॉब्लम थी। जो लड़की ने पकड़ ली।
इस बच्ची के पापा हैं मृगांक मजूमदार जो कि बैंक में नौकरी करते हैं। उनको भी ये बात बहुत बुरी लगी। उन्होंने इसको लेकर महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी को इसको लेकर एक ख़त लिखा। जिसका उनको बुधवार को जवाब मिला।
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक, डाबर ने इसके जवाब में खुद का बचाव किया। जिसमें उनहोंने कहा कि हम ने 'him' का इस्तेमाल जनरल टर्म में किया था। लेकिन अब हम इसे बदलेंगे।
चलिए किसी एक छोटी सी बच्ची के पहल पर ही कुछ तो बदल रहा है। वैसे भी आज हम उस दौर में जी रहे हैं, जहां महिला सशक्तिकरण को लेकर पेटभर के बातें हो रही हैं। हर तरह के ढर्रों को तोड़ने की पूरी तैयारी है तो फिर अगर ये हो रहा है तो क्या गलत है। बल्कि जरूरी था। इन्हीं छोटी-छोटी चीज़ों को बदल कर ही बड़े बदलाव की उम्मीद की जा सकती है।