Home Fun A Jayapraksh Is The Man Behind The Success Of T Natrajan

कौन है वो शख्स जिसके चलते टी. नटराजन आज इस मुकाम पर हैं?

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Tue, 21 Feb 2017 11:56 AM IST
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s - फोटो : google
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इनके पिता एक साड़ी की फैक्ट्री में दैनिक मजदूरी करते हैं और मां चाय का ठेला लगाती हैं। इन्होंने खुद भी पेपर बेचने जैसे कई छोटे-छोटे काम किए हैं। इन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। लेकिन ये अपने मुहल्ले में एक तेज़ गेंदबाज़ के रूप में जाने जाते थे। इसके बावजूद इन्होंने कभी क्रिकेटर बनने का सपना नहीं देखा। हम बात कर रहे हैं टी. नटराजन की। किंग्स इलेवन पंजाब ने इनको अपनी टीम में लेने के लिए 3 करोड़ रुपए दिए हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि टी. नटराजन की इस कामयाबी के पीछे किसका हाथ है? नटराजन कैसे इस खेल में आ गए और किसने इनको प्रोत्साहित किया? आज हम आपको उस व्यक्ति के बारे में भी बताएंगे।
 

नटराजन कहते हैं कि जब वो खेलते थे तो हर कोई बैटिंग करना चाहता था। तो उन्होंने सोचा कि वो जितनी तेज़ हो सकेगा उतनी तेज़ बॉलिंग करेंगे। अपनी तेज़ गेंदबाज़ी के लिए नटराजन को 'चिन्नप्पमपट्टी का हीरो' कहा जाने लगा। वो बिना किसी ट्रेनिंग के टेनिस बॉल से खेला करते थे। तभी उनकी ज़िंदगी में एक व्यक्ति मार्ग दर्शक की तरह आया। 

ये थे ए. जयप्रकाश। ए. जयप्रकाश फ़ोर्थ डिवीज़न के क्रिकेटर रह चुके हैं। जयप्रकाश ने ही नटराजन के हाथ में लेदर की बॉल पकड़ाई। इसपर नटराजन बोले कि मेरी ज़िंदगी में इसका कोई ख़ास काम नहीं है। उन्होंने उस वक़्त ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि उन्होंने कभी एक क्रिकेटर बनने के बारे में नहीं सोचा था। इसपर जयप्रकाश ने उनकी आंखों में देखते हुए कहा कि इस गेंद की मदद से वो एक बहुत बड़े स्टार बन सकते हैं।
 

इसके बाद 20 साल की उम्र में नटराजन को उनका पहला ब्रेक मिला। जयप्रकाश ने उन्हें उनके पहले क्रिकेट शूज़ दिए। इसके अलावा उन्होंने चेन्नई में अपने एक दोस्त से बात करके थिरुवल्लूर के फ़ोर्थ डिवीज़न क्रिकेट में शामिल करवा दिया। कुलमिलाकर अगर उस दिन जयप्रकाश ने नटराजन के हाथ में वो लेदर की गेंद न पकड़ाई होती तो आज शायद वो अपनी मां का हाथ बंटा रहे होते और टैलेंट होने के बावजूद गुमनामी के अंधेरे में खो गए होते।

ज़ाहिर है जयप्रकाश ने नटराजन में कुछ बेहद ख़ास देख लिया था इसीलिए उन्होंने उसे आगे बढाने का ज़िम्मा अपने सिर ले लिया। कई बार हम सामने वाले की मदद करके अपने सपने पूरे करने की कोशिश करते हैं। नटराजन अपने कोच जयप्रकाश को भगवान की संज्ञा देते हैं। वो कहते हैं कि अब मेरे पिता को फैक्ट्री जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, मेरी मां को भी चाय का ठेला नहीं लगाना पड़ेगा और मेरे भाई अब बेहतर स्कूल में पढ़ सकेंगे। 

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