विस्तार
'समाज सेवा' इस शब्द की संवेदना और मायने बहुत कुछ आपकी जेब और दिली अमीरी पर निर्भर करते हैं। सही कहें तो हर किसी के लिए समाज सेवा का मतलब अपना ही होता है। किसी को दुआओं की उम्मीद, किसी को स्वर्ग में जगह पक्की करने का लालच, किसी के लिए धर्म पालन तो कोई समाज सेवा कर समाज में रुतबेदार होना चाहता है, ताकि कल के वोट बैंक की तैयारी हो सके। ऐसी गैर सरकारी संस्थाओं (NGO) की भी कमी नहीं है जो समाज सेवा के काम में लगी हैं और सरकार और विदेशों से अच्छा खासा चंदा बटोर रही हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें समाज सेवा के लिए किसी एनजीओ की जरूरत नहीं।
दिल्ली-एनसीआर की एक तस्वीर यह भी है। नोएडा सेक्टर 58 में आपको एक टप्पर वाली चाय-पूड़ी की दुकान ऐसी भी मिल जाएगी, जहां धंधे के साथ समाज सेवा भी होती है। अगल-बगल कंपनियों में कामगारों की अच्छी-खासी भीड़ होने की वजह से टप्पर वाली दुकान भी ठीक-ठीक चल जाती है, खास बात यह है कि यहां से गुजरने पर दुकान पर लगा यह बोर्ड बर्बस ही ध्यान खींच लेता है।
बेशक बोर्ड में हिंदी की तमाम व्याकरण संबंधी त्रुटियां हैं लेकिन मतलब साफ है, भावार्थ समझ में आ जाता है। बोर्ड में गणपति को नमन के साथ ही उधार लेनदेन की चिंता प्रकट की गई है और फिर नीचे की लाइन में समाज सेवा का भाव स्पष्ट किया गया है। कौतुहलवश फिरकी टीम ने दुकानदार से पूछ लिया कि क्या वाकई में यहां जरूरतमंदों को मुफ्त में खाना दिया जाता है, तो जवाब मिला- हां!
वैसे तो दुकान और उसके आसपास के माहौल को देखते हुए हाइजीन के बारे में फिक्र होती है, लेकिन भूख के आगे सारी चिंताएं बेदम हो जाती हैं!
दिल्ली एनसीआर में खाने-पीने की ऐसी बहुत सी दुकाने हैं जो कानूनी तौर पर भले ही अवैध तरीके से लगाई गई हों, लेकिन महंगाई की मार झेल रही एक बड़ी आबादी के पेट की आग बुझा रही हैं।
(अगर आपके पास भी ऐसी ही कोई खास जानकारी या तस्वीर हो तो हमारे साथ शेयर जरूर करें, हम कोशिश करेंगे कि फिरकी के पेज पर उसे जगह मिले। स्टोरी अच्छी लगी तो लाइक, कमेंट और शेयर करना न भूले और अपने दोस्तों से भी फिरकी पेज लाइक करने के लिए जरूर कहें!)