दीपाली अग्रवाल, टीम फिरकी, नई दिल्ली
Updated Fri, 12 Jan 2018 01:02 PM IST
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12 जनवरी 1963 को कोलकाता में पैदा हुए नरेन्द्रनाथ दत्त एक विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। तीव्र बुद्धि और स्मरण शक्ति वाले नरेन्द्र ने बहुत कम उम्र में संन्यास ले लिया और विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हो गए। स्वामी विवेकानंद सिर्फ एक प्रेरणादायक संन्यासी नहीं थे बल्कि क्रांतिकारी विचारक और उच्च कोटि के वक्ता भी थे। उन्होंने हमेशा देश के युवाओं का आह्वान किया, इसलिए उनके जन्मदिवस को भी युवा-दिवस के नाम से मनाया जाता है। उन्होंने सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी अपनी संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया
इसके साथ ही वह देश के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने विदेश में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
वो मौका था 1893 'विश्व धर्म-सम्मलेन' का जहां दुनिया भर के धर्मों के प्रतिनिधि अपने धर्म पर भाषण देने पहुंचे थे । स्वामी विवेकानंद भी विभिन्न बाधाओं को पार कर उस सम्मलेन में पहुंचे। जब उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत 'अमेरिका के भाइयों और बहनों' के संबोधन के साथ की तो कई मिनटों तक सभा तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंजती रही।
इसी सभा में एक व्यक्ति ने उन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, "क्या आप ढंग के कपड़े नहीं पहन सकते जिससे आप एक सभ्य सज्जन नजर आएं।"
इस तीखे प्रहार पर भी स्वामी जी ने अपना आपा नहीं खोया और सरलता से जवाब देते हुए कहा कि, "आपकी संस्कृति में दर्जी सभ्य सज्जन बनाता है लेकिन हमारी संस्कृति में चरित्र सभ्य सज्जन बनाता है।"
इस तरह के अनेक घटनाएं स्वामी जी ने सहन कीं लेकिन उन्होंने क्रोध को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया। वह आज भी युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत हैं, उनके कुछ विचार हैं:
- उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।
- उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर-आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
- ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है।
- किसी की निंदा ना करें: अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं. अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दें, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दें।
- अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।
- विश्व एक व्यायामशाला है जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
- मेरा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें, और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें।