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कैंसर एक जानलेवा बीमारी है। आज तक कुछ भाग्यशाली लोग ही इस बीमारी से पार पा सके हैं। लेकिन ऐसा कोई ही होगा जिसे बुढ़ापे में यह बीमारी हुई हो और उसके बाद भी पांच दशकों का जीवन जीया हो।
तो भाई साहब ये अद्भुत किस्सा है स्टैमैटिस मॉरिशस का। बात शुरू हुई 1943 से, जब वे एक सिपाही थे। युद्ध हुआ तो घायल हो गए। अपना इलाज कराने अमेरिका आए। यहां एक ग्रीक-अमेरिकन महिला से प्यार हुआ। दोनों के तीन प्यारे बच्चे हुए। सब कुछ सही चल रहा था। लेकिन फिर 1976 में मॉरिशस को सांस लेने में तकलीफ होने लगी।
मॉरिशस ने डॉक्टर को संपर्क किया। तब रिपोर्ट में पता चला कि उन्हें फेफड़ों का कैंसर है। डॉक्टर्स ने उन्हें कहा कि अब बस कुछ महीने बचे हैं। हालांकि मॉरिशस को यकीन नहीं आया और उसने एक के बाद एक 9 डॉक्टर्स से संपर्क किया। सभी ने उसे यही बताया कि वह करीब 9 महीने ही जी पाएगा। उसे कीमोथैरेपी की सलाह दी गई। लेकिन उसने मना कर दिया।
अब मॉरिशस के पास कुछ ही दिन बचे थे जिन्हें वह अपने परिवार और पुराने दोस्तों के साथ बिताना चाहता था। उसने अपने जन्मस्थान इकारिया लौटने का फैसला किया। और यही वो फैसला था जिसने उसे नई जिंदगी दी। वो भी करीब पांच दशकों की।
यहां लौटने पर वह अपने पिता के साथ अंगूर के बागों में काम करने लगा। जैसा कि कभी बचपन में किया करता था। ऐसा करते-करते उसे अहसास हुआ कि जैसै बुढ़ापा आना रुक गया हो और वह फिर से जवां महसूस कर पा रहा था। फिर एक दिन उसने बाग लगाने की सोची। हालांकि उसके मन में कहीं ये बात थी कि वह इस बाग को हरा होते नहीं देख पाएगा लेकिन फिर भी उसने ऐसा किया। इसी बाग ने उसे नई जिंदगी लौटाई।
बाग में उसे सुबह ताजी हवा और धूप मिलने लगी। अब वह जल्दी उठता और सुबह अपने बागों में टहलता। धीरे-धीरे बाग हरा होता गया और उसके साथ ही मॉरिशश की तबीयत भी। 6 महीने निकल गए और वह पहले से ज्यादा तरोताजा और जवां महसूस कर रहा था। और फिर ये 6 महीने देखते-देखते सालों में बदल गए। अब आपको भी सुनकर यकीन नहीं होगा कि मॉरिशस 102 साल की उम्र तक जीये।