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उत्तर प्रदेश में एक गांव है। मुबारकपुर। आज़मगढ़ ज़िले में आता है। यहीं के रहने वाले हैं गुलाब यादव। उम्र है 45 साल। इनका एक 12 साल का बेटा है, अभिषेक। दोनों रोज़ रात एक बजे से पूरे गांव में घूम-घूम के लोगों को सहरी के लिए जगाते हैं। और यही काम वो पिछले 45 सालों से करते आ रहे हैं। गुलाब दिल्ली में रहते हैं। डेलीवेज लेबर का काम करते हैं। लेकिन हर साल रमज़ान के महीने में ये अपने गांव पहुंचते हैं। सिर्फ़ इसी काम के लिए।
कहीं पढ़ी थी ये लाइनें अचानक से याद आया तो ढूंढ के निकाला है। जरा गौर फ़रमाइएगा
एक ही रिवाज़, एक ही रस्म, बस कुछ अंदाज़ बदल जाते हैं
वरना एक ही है जिसे कुछ उपवास तो कुछ रमज़ान कहते हैं
बिलकुल ऐसा ही कुछ जीने का अंदाज़ है गुलाब का। दोनों बाप-बेटे रोज़ लगभग दो घंटे तक पूरे गांव के चक्कर लगाते हैं। और गांव के सारे मुस्लिम परिवारों को जगाते हैं। जिससे हर कोई अपनी सहरी कर ले और अज़ान से दिन के 'उपवास' की शुरुआत। गुलाब और उनके बेटे हर एक घर के दरवाजे को तब तक खटखटाते हैं। जब तक लोग जग न जाएं।
गुलाब के पिता थे चिरकिट यादव। उन्होंने ये परंपरा शुरू की थी 1975 में। इसके बाद इनके बड़े भाई ने ये काम किया। और इसके बाद गुलाब इसे आगे ले जा रहे हैं।
धन्य हैं। वैसे कैराना में का चल्ल़ा है? चुनाव-चुनाव खेलिए आप लोग।