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जब आप राह चलते या अपने आसपास किसी ठिगने आदमी को देखते हैं, तो निगाहें अक्सर उसी पर ठहर जाती हैं। मन में ये ख्याल भी आता होगा कि कैसे यह इंसान अपने सारे काम करता होगा और कैसे अपना जीवन गुजारता होगा।
क्योंकि ठिगने लोगों को आज भी समाज में वो स्वीकार्यता नहीं दी जाती जो बाकी आम इंसानों को दी जाती है। ऐसे में सोचिए अगर पूरा का पूरा परिवार ही ठिगना हो, घर के सभी सदस्यों की लंबाई 2-3 फुट के बीच हो और वो भी एक-दो नहीं पूरे 18 लोगों की तब।
जी हां कुछ ऐसे ही दंश से जूझ रहा है हैदराबाद के रामराज चौहान का परिवार। रामराज बताते हैं कि उनके परिवार के कुल 21 में से 18 सदस्यों की लंबाई 2-3 फीट के बीच ही है। परिवार के बाकी तीन सदस्य सामान्य कद काठी के हैं।
चौहान के अनुसार उनका परिवार एकोंड्रोप्लासिया नाम की जेनेटिक बीमारी से जूझ रहा है, जिसमें आदमी की लंबाई सामान्य से काफी कम रह जाती है। उसकी उम्र तो बढ़ती है लेकिन लंबाई नहीं। चौहान बताते हैं कि मेरे परिवार में चार भाई और सात बहनें हैं, इनमें से हम आठ की लंबाई काफी कम है।
ठिगनेपन के कारण जीवन में आने वाली समस्याओं पर चौहान थोड़ी मायूसी के साथ कहते हैं कि इसके चलते हमें काफी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है। मेरे पिता नरसिंह राव और मेरे दादा को भी इस समस्या से जूझना पड़ा था। 20 साल पहले मेरे पिता की मृत्यु हो गई, जिसके बाद मेरे ऊपर जिम्मेदारियों का काफी बोझ आ गया। मेरे बड़े भाई की भी साल 2000 में मौत हो गई जिसके बाद पूरे परिवार को चलाने की जिम्मेदारी मुझे ही उठानी पड़ी।
अपनी मां का जिक्र करते हुए चौहान बताते हैं कि वह काफी साहसी महिला हैं, उन्होंने बहुत मेहनत करके हमारी परवरिश की, जब तक कि हम अपनी जिम्मेदारियां उठाने लायक नहीं हो गए। वह फिलहाल 90 साल की हो चुकी हैं और काफी चुस्त दुरुस्त हैं। मेरी पत्नी की साल 1993 में उस समय मृत्यु हो गई थी जब वह हमारे तीसरे बच्चे को जन्म देने वाली थी।
चौहान के अनुसार वह दूसरे लोगों की तरह सामान्य नौकरी नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे हाथ भी छोटे हैं और कद भी, इसलिए हमें अपने अनुसार ही कोई काम देखना पड़ता है। कई बार तो हमें डेस्क पर बैठकर लिखने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वैसे चौहान का परिवार एक राशन की दुकान चलाता है, जिस पर घर के छोटे सदस्य काम में हाथ बंटाते हैं जबकि ठीक ठाक लंबाई वाले लोग सामान्य नौकरी करते हैं।