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अहमदाबाद दंगे के पीड़ित मोहसिन शेख़ हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते हैं

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Fri, 24 Feb 2017 01:31 PM IST
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s - फोटो : toi
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मोहसिन शेख़ केवल 14 साल के थे जब गुजरात में दंगे भड़क गए। वो उस समय दसवीं में पढ़ते थे। ज़ाहिर है ये समय एक छात्र के लिए कितना महत्त्वपूर्ण होता है, ऐसे में अचानक ही दुनिया का इधर से उधर हो जाना उसके दिमाग पर एक गहरी छाप छोड़ जाता है। अहमदाबाद में रहने वाले मोहसिन के ने पिता ने अपना सब कुछ खो दिया।

इस दंगे में मोहसिन के पिता की दुकान को जला दिया गया। मोहसिन को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। घर की माली हालत इतनी बिगड़ गई कि ज़िंदगी का पहिया दूसरी दिशा में ही मुड़ गया और मोहसिन के इर्द-गिर्द सब कुछ बदल गया। लेकिन इन सब के बीच मोहसिन नहीं बदले।
 

मोहसिन शाह-ए-आलम नामक इलाके में रहते थे और दंगे के दौरान यहां लगातार एक महीने तक कर्फ्यू लगा रहा जिस वजह से वो घर से बाहर नहीं निकल पाए और इम्तेहान भी नहीं दे पाए। इसके बाद मोहसिन ने कई छोटे काम किए। वो अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ना चाहते थे लेकिन उनकी मजबूरी थी। 15 साल के मोहसिन ने एक कार बैट्री की दुकान में काम किया।

इतनी कम उम्र में ही मोहसिन ने धर्म के एक बेहद विक्राल रूप को देख लिया था। ऐसे में मोहसिन ने अपनी ख़ुशी चॉक और ग्रेफाइट में ही ढूंढ ली, और यही आगे जा कर उनकी ज़िंदगी बन गए। आज मोसिन 29 साल के हैं। उनके दिल में दंगों को लेकर दुःख तो है लेकिन इस दुःख ने उनको कट्टर नहीं बनने दिया।

उनके दिल में सभी धर्मों के प्रति बराबर इज्ज़त है। वो किसी धर्म विशेष से नफ़रत नहीं करते। भले ही मोहसिन अपनी पढ़ाई पूरी न कर सके हों लेकिन आज वो इस समाज के सामने एक उदाहरण पेश कर रहे हैं। 
 

मोहसिन चॉक और ग्रेफाइट की मदद से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते हैं। ऐसा करके वो समाज में धार्मिक सद्भाव का एक बहुत अच्छा सन्देश दे रहे हैं। हाल ही में मोहसिन ने महाशिवरात्रि के लिए भगवान शिव की मूर्ति तैयार की। ये वही चॉक और ग्रेफाइट हैं जिन्होंने बुरे समय में मोहसिन को दिल बहलाने का एक बहाना दिया था। 

ये ही नहीं मोहसिन नरेंद्र मोदी और अहमदाबाद में स्थित 'तीन दरवाज़ा' के मॉडल भी तैयार कर चुके हैं। आज ऐसा वक़्त है जब लोग दूसरे धर्मों के प्रति अपने दिल में बैर बनाकर बैठे हुए हैं। मौका मिलते ही सब एक दूसरे के ऊपर तीखे शब्दों का प्रयोग करने लगते हैं। हमारी यही दिक्कत है कि हमने अलग-अलग धर्मों के प्रति अपने मन में एक छवि तैयार कर ली है और हम लोगों को उनके कर्म से नहीं धर्म से आंकते हैं।

आज के माहौल में हमें मोहसिन से काफ़ी सीखने की ज़रूरत है। भारत को इस वक़्त ऐसे ही कई मोहसिन की ज़रूरत है।
 

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