विस्तार
सी.आई.ए. के एक पूर्व अधिकारी ने दुनिया के सबसे ख़तरनाक देश का खुलासा किया है। इसको लेकर हमें डरने की ज़रूरत है क्योंकि ये देश हमारा भी पड़ोसी है। हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान की। हमारे यहां पाकिस्तान वैसे ही बहुत बदनाम है। लेकिन इस अमेरिकी पूर्व अफ़सर ने ऐसा क्यों कहा है, ये समझने वाली बात है।
इस्लामाबाद में सी.आई.ए. के पूर्व स्टेशन चीफ़ केविन हल्बर्ट ने कहा कि पाकिस्तान के पास न्यूक्लियर पॉवर दिन पर दिन बढ़ रही है, लेकिन इसकी आर्थिक स्थिति कमज़ोर होती जा रही है। यहां पर आतंकवाद भी बढ़ता जा रहा है और ये सब इस देश के लिए बहुत ख़तरनाक है। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
उन्होंने लिखा कि पाकिस्तान एक बैंक की तरह है जो कि इतना बड़ा है कि वो फ़ेल नहीं हो सकता या फिर ये कहें कि उसे फ़ेल नहीं होने दिया जा सकता क्योंकि इसके फ़ेल होने का असर बहुत बड़े पैमाने पर पड़ेगा। यहां जो भी होगा उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
अफ़गानिस्तान अभी अमेरिका के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है। वहां 33 मिलियन लोग रहते हैं, वहीं पाकिस्तान की जनसंख्या उससे 5 गुना अधिक है। यहां 182 मिलियन लोग रहते हैं। गिरती अर्थव्यवस्था, बढ़ते आतंकवाद और बढ़ते हुए न्यूक्लियर हथियारों के साथ पाकिस्तान की जनसंख्या भी लगातार बढ़ रही है। इस देश पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।
पाकिस्तान फ़िलहाल दुनिया का सबसे ख़तरनाक देश तो नहीं है लेकिन ये निश्चित तौर पर हो ज़रूर सकता है। आज पाकिस्तान की कुछ बातों पर लगाम लगाना ज़रूरी है लेकिन अगर हम रोकथाम और मुक्ति की नीति अपनाते रहेंगे तो बात और बिगड़ सकती है। अमेरिका ने पाकिस्तान को करोड़ों डॉलर की मदद दी है और यही कारण है कि आज यूएस प्रेसिडेंट इस देश को लेकर सबसे अधिक चिंतित हैं।
तो हम इस देश में बस पैसे फेंकते जा रहे हैं ताकी यहां लोग सभ्य बन सकें लेकिन इसमें कोई सफलता नहीं दिख रही है। लेकिन हमें लगातार कोशिश करनी चाहिए। वहीं अफ़गानिस्तान को लेकर हमारा एक मात्र मकसद ये है कि ये फिर कहीं तालिबान के हाथों में न आ जाए। इस वजह से अमेरिका के फ़ौजी बड़ी संख्या में अपनी जान गंवा रहे हैं।
किसी पूर्व अमेरिकी अफ़सर द्वारा खुले तौर पर पाकिस्तान की निंदा किए जाने से एक बात तो साफ़ हो गई है कि अमेरिका के राष्ट्रपति के बदलते ही अमेरिका की विदेश और रक्षा नीति में भी एक बड़ा बदलाव आ चुका है। भारतीयों को इस बात से खुश होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आज निशाने पर कोई और है तो कल निशाना बदल भी सकता है।
हमें ध्यान देना होगा कि जिस-जिस देश से पश्चिमी देशों को तथाकथित ख़तरा महसूस हुआ है उन देशों का क्या हश्र हुआ है।