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गुरुवार को एयर चीफ़ मार्शल अरूप राहा मीडिया से बात कर रहे थे। मीडिया से बातचीत में वो कुछ ऐसी-ऐसी बातें कर गए जो आम तौर पर सुनने को नहीं मिलतीं। हां, नेताओं की ज़बान से ऐसी बातें अक्सर सुनने को मिल जाती हैं। लेकिन उनकी बातें सुनना या न सुनना एक जैसी ही होती हैं। खासकर पाकिस्तान को लेकर। क्योंकि लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से, चुनाव में फायदे के हिसाब से बोल कर निकल जाते हैं।
लेकिन कल एयर चीफ़मार्शल मतलब वायुसेना अध्यक्ष 'अरूप राहा' स्वयं पीओके के मुद्दे पर कुछ बोले। पीओके मतलब पाक ऑक्युपायड कश्मीर, कश्मीर का वो हिस्सा जो पाकिस्तान के कब्ज़े में है। और अगर इस तरह का स्ट्रैटेजिक फैसलों में भागीदारी रखने वाला आदमी कुछ कह रहा हो तो सुना जाना चाहिए। बाद में इसकी जितनी एनालिसिस करनी हो कर लें।
क्या बोला उन्होंने?
बोले कि जो पीओके है वो इंडिया का होता। अगर हमने उच्च नैतिक मूल्यों की बात न करते हुए मिलिट्री का इस्तेमाल करते। इसके बाद उन्होंने बोला कि 1971 का जो इंडिया-पाकिस्तान वॉर हुआ था। उससे पहले हमने अपने एयर फोर्स को ढंग से इस्तेमाल ही नहीं किया था। 1971 वॉर के बाद ही पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना था।
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वायुसेना अध्यक्ष 1965 के इंडिया-पाकिस्तान वॉर की तरफ इशारा कर रहे थे। जो अभी तक की सबसे बड़ी ग्राउंड बेट्ल्स में से एक मानी जाती है। जिसमें एयर फोर्स का इस्तेमाल नहीं किया गया था। और इसमें जिस हिसाब से टैंकों का इस्तेमाल किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि वो 17 दिन वर्ल्ड वॉर 2 की तरह था।
एयर चीफ ने एक बात और कही थी। वो ये कि हम अपने सिक्योरिटी मामलों में भी बहुत ज्यादा आदर्शवादी रहे हैं बजाय इसके कि हमें थोड़ा व्यवहारिक होते। इन सब के बीच में वो बार-बार एयर फोर्स की पॉवर का ज़िक्र कर रहे थे। 1947 की चर्चा भी की उन्होंने। बताया कि एयर फोर्स के ट्रांसपोर्ट प्लेन ही थे जो उस समय आर्मी के लोगों को युद्ध वाली जगह पर ले कर गये थे।
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"और जब हमें मिलिट्री सॉल्यूशन के साथ जाना चाहिए था तब हम नैतिकता दिखाने लगे, और मैं समझता हूं इसी वजह से हम यूनाइटेड नेशन के पास एक पीसफुल सॉल्यूशन के लिए चले गए।"
1965 का तो जैसे उन्हें बहुत अफसोस रहा था। वो कहते हैं, हमने तो एयर फोर्स का इस्तेमाल तब भी नहीं किया जब पूर्वी पकिस्तान से ऑपरेट करते हुए पाकिस्तानी एयर फाॅर्स हमले पर हमले कर रही थी। उनके सीधे टार्गेट इंडिया के एयर बेस और दूसरे ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर थे।
बात तो सही भी लगती है। तब ज़रूरी था वॉर हो रहा था। और अगर इनकी बात के हिसाब से देखा जाए तो सेना के पास क्षमता भी थी। तो उसी वक़्त पीओके और लाहौर जो चाहिए ले लेना था। और अगर शान्ति समझौते पर साइन कर ही दिया गया है। तो अब झूठे हुंकार क्यों भरे जा रहे हैं?
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