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पाकिस्तान ने पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा सुनाई। इसके बाद से लगातार उन्हें बचाने की मांग सड़क से लेकर संसद तक में जोर पकड़ रही है। फिलहाल मामला नीदरलैंड्स के हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में है और गुरुवार को हुई सुनवाई भारत के पक्ष में ही रही। कोर्ट ने पाकिस्तान की सभी दलीलों को नकारते हुए कुलभूषण की फांसी पर अंतिम फैसले तक रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि जब तक वह इस मामले में अंतिम फैसला नहीं दे देती तब तक जाधव की फांसी मुल्तवी रखी जाए। भारत की आशंका पर तात्कालिक प्रावधान के अनुरोध को मानते हुए आईसीजे ने कहा कि जाधव की फांसी पर 150 दिनों यानी अगस्त 2017 तक रोक लगी रहेगी। पाकिस्तान, अदालत को इस संबंध में उठाए गए सभी कदमों की जानकारी देगा। जब तक आईसीजे अंतिम फैसले पर नहीं पहुंच जाता तब तक पाकिस्तान इस संबंध में अपनी अदालत के सभी कदमों पर रोक लगाए रखेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान में कैद कुलभूषण तक भारत सरकार ने तकरीबन 16 दफा राजनयिक मदद पहुंचाने की कोशिश की, जिसे पाक सरकार ने खारिज कर दिया। पाकिस्तान की इस मनमानी और कुलभूषण को जबरन फंसाए जाने को लेकर भारत ने अंतर्राष्ट्रीय अदालत कार रुख किया।
इससे पहले संसद में पिछले दिनों विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यहां तक कहा था कि पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी को बचाने के लिए जरूरत पड़ी तो 'आउट ऑफ द वे' जाकर भी उन्हें बचाएंगे।
कुलभूषण को बचाने के उपायों पर मीडिया में भी चर्चा चल रही है। कूटनीतिक पहल का उपाय भी इनमें शामिल है। यह उपाय कुलभूषण को बचाने के लिए सबसे बढ़िया साबित हो सकता है। क्योंकि इतिहास गवाह है कि बेहतर कूटनीति के जरिए ही अमेरिका अपने सबसे खतरनाक दुश्मन उत्तर कोरिया के जबड़े से अपनी दो महिला पत्रकारों को बचा लाया था। बात 2009 की है। बराक ओबामा राष्ट्रपति थे। उन्होंने उत्तर कोरिया के तत्कालीन तानाशाह किम जोंग इल से निपटने के लिए पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को जिम्मा सौंपा था।
कुलभूषण को फांसी दिए जाने के मामले में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 'आउट ऑफ द वे' न जाकर अगर इस वाकये से कुछ मदद लें तो उन्हें बचाने के लिए कूटनीतिक रास्ता ही सबसे बेहतर विकल्प होगा।
2 अमेरिकी महिला पत्रकार लॉरा लिंग और ऊना ली को चीन और नॉर्थ कोरिया के बॉर्डर पर गिरफ्तार कर लिया गया था। वे दोनों मानव तस्करी पर रिसर्च करने गई थीं। वर्षों तक दोनों जेल में रहीं।
लॉरा के पति ने दोनों महिला पत्रकारों की कहानी खुद मीडिया से बयां की। उनके मुताबिक एक दिन उनकी पत्नी ने उन्हें नॉर्थ कोरिया से फोन किया। लॉरा ने फोन पर बताया कि उत्तर कोरिया अपनी एक शर्त पर उन्हें रिहा कर सकता है।
लॉरा ने बताया कि अमेरिका का कोई बड़ा अधिकारी खुद आकर माफी मांगे और उन्हें ले जाए। उत्तर कोरिया की यह शर्त विश्व का सबसे शक्तिशाली देश मानेगा, तब यह सोचा भी नहीं जा सकता था, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के सामने 'इंसानियत के नाते' कोरिया जाकर महिला पत्रकारों को बचा लाने की इच्छा जाहिर की।
क्लिंटन ने नेशनल सिक्यॉरिटी एडवाइजर जिम जोंस से कहा था कि वह प्योंगयांग जाकर दोनों महिला पत्रकारों को मुक्त कराना चाहते हैं। हिलरी क्लिंटन ने भी बेहद अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन वह नॉर्थ कोरियाई मीडिया के निशाने रहीं। उनको लेकर वहां कई तरह की बातें चलीं और उनका मजाक भी बनाया गया। उस वक्त किम जोंग उन के पिता किम जोंग इल की तबीयत काफी खराब चल रही थी।
जब क्लिंटन प्योंगयांग पहुंचे तो उनका स्वागत वैसे ही किया गया जैसे किसी बड़े नेता का होता है। क्लिंटन और किम जोंग इल करीब 75 मिनट तक साथ रहे। इसमें 2 घंटे तक लंच चला। इसके अलावा तीन घंटे पंद्रह मिनट तक दूसरे मुद्दों पर बातचीत हुई।