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शिक्षा किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत जरूरी है यही वजह है कि दुनिया भर में इस ओर काफी ध्यान दिया जाता है। भारत में तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी कई सरकारी योजनाएं भी चल रही हैं। लेकिन इसके बावजूद कई ऐसे लोग हैं जो अपने बच्चों को पढ़ने नहीं भेज पाते। कुछ लोग अपने बच्चों को पढ़ाने के बजाए काम करवाना अधिक पसंद करते हैं जिससे उनके घर में चार पैसे आ सकें। इसके अलावा कुछ लोगों के पास इतने पैसे भी नहीं होते कि वो सरकारी विद्यालयों की फीस भी भर सकें। ऐसे में प्रशासन के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है।
लेकिन जिम्बाब्वे ने इसका एक नया तरीका निकाल लिया है। यहां पर बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सके इसलिए यहां एक नया सिस्टम लागू किया गया है। हालांकि इसको जानने के बाद आपको लगेगा कि ये देश कई साल पीछे जाने की दिशा में है लेकिन जो भी किया गया है वो बच्चों की बेहतरी के लिए ही है।
जिम्बाब्वे के शिक्षा मंत्री लेजेरस डोकरा ने देश के सभी स्कूलों को ये आदेश दिया है कि जो अभिभावक अपने बच्चों की फीस देने में असफल हैं वो दूसरे कई तरीकों से भी इसकी कमी पूरी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि स्कूल प्रशासनों को इस बारे में थोड़ा लचीला होना पड़ेगा जिससे गरीब मां-बाप भी अपने बच्चों को शिक्षा मुहैया करवा सकें।
उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर जिनके पास अपने बच्चों की फीस भरने लायक पैसा नहीं है, वो काम करके फीस भर सकते हैं। अगर किसी समाज में कोई बिल्डर है तो लोग उसके लिए काम कर सकते हैं और बदले में बिल्डर उनकी ट्यूशन फीस भर सकता है। इतना ही नहीं वो फीस भरने के लिए अपनी बकरी का भी प्रयोग कर सकते हैं। वो फीस के बदले स्कूल को बकरी दे सकते हैं जिसे बेचकर स्कूल को फीस मिल जाएगी। जिस तरह से कई सालों पहले वस्तु-विनिमय चलता था, उसी तरह से आज शिक्षा व्यवस्था को भी बचाया जा सकता है।
उन्होंने ये भी कहा कि प्रशासन को एक ऐसा बाजार लगवाना चाहिए जहां अभिभावक, स्कूल प्रशासन और स्थानीय नेता मौजूद हों जिससे गरीब लोगों को ठगा न जा सके। कुछ रिपोर्ट्स का कहना है कि राष्ट्रपति रोबर्ट मुगाबे की सरकार इसलिए इतनी बुरी स्थिति में है क्योंकि उसने धन को बाहर ले जाने की गलती की है। लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि उत्पादन में कमी और बेरोजगारी की वजह से ही देश के इतने बुरे हाल हैं।
लोग इसे 'गोट फॉर फीस' (फीस के बदले बकरी) का नाम दे रहे हैं। जाहिर है ये देश की खराब होती आर्थिक स्थिति की वजह से हुआ है। लेकिन कुछ लोग इस नीति से बिल्कुल खुश नहीं हुए और उन्होंने इंटरनेट की मदद से अपने विचार प्रकट करने शुरू कर दिए।
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