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वैसे तो राजस्थान में कई किले और गढ़ है, लेकिन भरतपुर जिले में स्थित ‘लौहगढ़ के किले’ को भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग कहा जाता है क्योंकि मिट्टी से बने इस किले को कभी कोई नहीं जीत पाया यहां तक की अंग्रेज भी नहीं जिन्होंने इस किले पर 13 बार अपनी तोपों के साथ आक्रमण किया था, और हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। भारत के गढ़ और किलों की सीरिज में आज हम बात कर रहें हैं भरतपुर के लोहागढ़ किले की, जो अपनी मजबूती के कारण विश्व प्रसिद्ध है।
तोप के गोले भी न भेद पाए
राजस्थान तो जाना ही जाता है किलों और महलों के लिए है। राजस्थान में कई ऐसे किले और महल हैं जो अपनी सुंदरता और वीरता की कहानियों के कारण इतिहास में अमर है। यहां के राजा-महाराजा अपने क्षेत्र की सुरक्षा के लिए ऐसे किले का निर्माण करते थे जिसे दुश्मन के तोप के गोले भी न भेद पाए। ऐसे ही किलों में एक किला है भरतपुर का लोहागढ़ किला। आयरन फोर्ट के नाम से जाना जाने वाले इस किले की मजबूती इसके नाम से ही झलकती है। दिलचस्प बात यह है कि इस किले में जो भी शासक आया उसे कोई हरा न पाया। इसका कारण यह था कि इस किले पर तोप के गोलों का भी असर नहीं होता था।
जाट राजा का शासन
इस किले में जाट राजा शासन करते थे। इन्होंने इसे इतनी कुशलता के साथ डिजाइन किया था कि दूसरे राजा इन पर हमला कर दें तो उनकी सारी कोशिशें नाकाम हो जाए। किले की दीवारें मिट्टी से ढंकी थी, जिससे दुश्मनों की तोप के गोले इस मिट्टी में धंस जाते थे। यही हाल बंदूक की गोलियों का भी होता था। इसलिए जाट राजाओं के बारे में यह फेमस हो गया था कि जाट राजा मिट्टी से भी सुरक्षा के उपाए निकाल लेते थे।
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सुरक्षा के लिहाज से खाई बनवाई
इस किले के चारों तरफ जाट राजाओं ने सुरक्षा के लिहाज से एक खाई बनवाई थी, जिसमें पानी भर दिया गया था। इतना ही नहीं कोई दुश्मन तैरकर भी किले तक न पहुंचे इसलिए इस पानी में मगरमच्छ छोड़े गए थे। एक ब्रिज बनाया गया था जिसमें एक दरवाजा था यह दरवाजा भी अष्टधातु से बना था। दिल्ली से उखाड़कर लाए गए इस किले के दरवाजे की अपनी अलग खासियत है। अष्टधातु के जो दरवाजे अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी के चित्तौड़ से छीन कर ले गया था उसे भरतपुर के राजा महाराज जवाहर सिंह दिल्ली से उखाड़ कर ले आए। उसे इस किले में लगवाया। किले के बारे में रोचक बात यह भी है कि इसमें कहीं भी लोहे का एक अंश नहीं लगा।
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अंग्रेजी सेनाओं से लड़ते–लड़ते होल्कर नरेश जशवंतराव भागकर भरतपुर आ गए थे। जाट राजा रणजीत सिंह ने उन्हें वचन दिया था कि आपको बचाने के लिये हम सब कुछ कुर्बान कर देंगे। अंग्रेजों की सेना के कमांडर इन चीफ लार्ड लेक ने भरतपुर के जाट राजा रणजीत सिंह को खबर भेजी कि या तो वह जसवंतराव होल्कर अंग्रेजों के हवाले कर दे अन्यथा वह खुद को मौत के हवाले समझे। यह धमकी जाट राजा के स्वभाव के खिलाफ थी।
हमने लड़ना सीखा है, झुकना नहीं
जाट राजा अपनी आन–बान और शान के लिये मशहूर रहे हैं। जाट राजा रणजीत सिंह का खून खौल उठा और उन्होंने लार्ड लेक को संदेश भिजवाया कि वह अपने ताकत आजमा ले। हमने लड़ना सीखा है, झुकना नहीं। अंग्रेजी सेना के कमांडर लार्ड लेक को यह बहुत बुरा लगा और उसने तत्काल भारी सेना लेकर भरतपुर पर आक्रमण कर दिया।
जाट सेनाएं निर्भिकता से डटी रहीं। अंग्रेजी सेना तोप से गोले उगलती जा रही थी और वह गोले भरतपुर की मिट्टी के उस किले के पेट में समाते जा रहे थे। तोप के गोलों के घमासान हमले के बाद भी जब भरतपुर का किला ज्यों का त्यों डटा रहा तो अंग्रेजी सेना में आश्चर्य और सनसनी फैल गयी। लार्ड लेक स्वयं विस्मित हो कर इस किले की अद्भुत क्षमता को देखते और आँकते रहे। संधि का संदेश फिर दोहराया गया और राजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजी सेना को एक बार फिर ललकार दिया। अंग्रेजों की फौज को लगातार रसद और गोला बारूद आते जा रहे थे और वह अपना आक्रमण निरंतर जारी रखती रही।
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13 बार इस किले पर हमला किया
लेकिन भरतपुर के किले, और जाट सेनाएं, जो अडिग होकर अंग्रेजों के हमलों को झेलती रही और मुस्कुराती रही। इतिहासकारों का कहना है कि लार्ड लेक के नेतृत्व में अंग्रेजी सेनाओं ने 13 बार इस किले में हमला किया और हमेशा उसे मुंह की खानी पड़ी। अंग्रेजी सेनाओं को वापस लौटना पड़ा।