Home Panchayat Jaysha Fainted Out Of Thirst In Marathon Of Rio Olympics

दूसरे देश अपने मैराथन रनर को बिस्किट-पानी और ड्रिंक्स दे रहे थे, भारत के लोग सिर्फ़ सेल्फी लेने गए थे

Updated Mon, 22 Aug 2016 07:33 PM IST
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रियो ओलम्पिक्स खत्म हो गया। इसमें 42 तरह के खेल आयोजित किये गए थे जिनमें भारत सिर्फ़ 15 खेलों में क्वालिफाई कर सका और 2 पदक इसकी झोली में आए। एक कांस्य और एक रजत पदक के बाद हम फूले न समा रहे थे। हम भी क्या करते, खाता खुलना ही मुश्किल लग रहा था। हम तैयार बैठे थे गर्व करने को। आपको दीपा कर्माकर याद हैं? उन्होंने जिस तरह लैंडिंग की थी वो चौंकाने वाला था। पिछले 4 सालों में किसी भी जिमनास्ट ने सीधे लैंडिंग नहीं की थी। वो भारत की तरफ से वहां पहुंची पहली जिमनास्ट थीं। उन्होंने अपने साथ एक फ़ीज़ियो मांगा था जो भारत सरकार उन्हें न दे सकी। हम बिना किसी सुविधा के उनकी रैंकिंग पर गौरवांवित होने के लिए तैयार बैठे थे। Deepa1 इसी ओलंपिक में हमारे यहां से एक मैराथन रनर, मतलब धावक भी गई थी, नाम है ओ. पी. जाएशा। जाएशा ने 42 किलोमीटर की दौड़ 2 घंटे 47 मिनट में पूरी की। उन्होंने इतनी ही दूरी बीजिंग में 2 घंटे 34 मिनट में पूरी की थी। 13 मिनट का अंतर इसमें बहुत मायने रखता है। कायदे से इतना अंतर नहीं आना चाहिए था। अगर आप ने ओलंपिक के सारे मैच ध्यान से देखे हों तो आपको पता होगा कि जाएशा फिनिशिंग लाइन पर बेहोश हो गई थीं। उन्हें तीन घंटे बाद होश आया था। मैराथन रनर्स के साथ आमतौर पर ऐसा नहीं होता है। तो वजह क्या थी? दरअसल 42 किलोमीटर्स की लंबी दौड़ के लिए धावक को समय-समय पर पानी और ग्लूकोज़ के डोज़ मिलते रहते हैं। वो लगातार दौड़ सकें इसलिए उन्हें हाइड्रेटेड रहना होता है। इसके लिए ओलंपिक ऑफिशियल्स हर 2.5 किमी पर वॉटर स्टेशन लगाते हैं जहां हर देश के ऑफिशियल्स अपने खिलाड़ियों को पानी, स्पॉन्ज, बिस्किट और एनर्जी जेल देते रहते हैं। Water station

हर 2.5 किमी की दूरी पर दूसरे खिलाड़ियों को एनर्जी के डोज़ मिल रहे थे जबकि भारत के डेस्क बिल्कुल खाली थे। उनपर सिर्फ़ तिरंगा और देश का नाम लिखा हुआ था। नियम यह भी है कि कोई खिलाड़ी किसी दूसरे देश के वॉटर स्टेशन से पानी नहीं पी सकता नहीं तो वह डिस्क्वालिफ़ाई हो जाएगा। ऐसे में जाएशा को हर 8 किमी पर पानी मिल रहा था जिसका स्टॉल रियो ओलंपिक ऑफिशियल्स ने लगा रखा था। कायदे से भारत से वहां किसी को मौजूद होना था, यहां से कुछ महापुरुष गए भी थे। पर उन्हें खिलाड़ियों को खींच-खींच कर सेल्फी लेने से ही फ़ुर्सत नहीं मिली। जहां दूसरे देश अपने खिलाड़ियों को हर तरफ से बूस्ट-अप कर रहे थे वहीं भारतवर्ष के नेतागण उन्हें बिना कोई मदद पहुंचाए क्रेडिट लेने की जुगत लगा रहे थे।

जाएशा किसी भी तरह फिनिशिंग लाइन तक पहुंचीं और वहीं बेहोश हो गईं। ताज्जुब की बात ये है कि यहां भी भारत से कोई ऑफिशियल डॉक्टर उनकी मदद को नहीं आया। रियो के प्रशासन ने उनका इलाज कराया। 7 बोतल ग्लूकोज़ के डोज़ लेकर उन्हें तीन घंटे बाद होश आया था। जाएशा ने कहा कि - मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ कि मैं फिनिशिंग लाइन तक कैसे पहुंच गई!
Jaisha3 जब आप भारत को जीतते देख उसपर गर्व करने लगते हैं। उन लड़कियों को देश की बेटी बताने लगते हैं जिन्हें कल तक घर से निकलने नहीं देना चाहते थे तो एक बार ये भी सोच लिया करें कि वो वहां तक अपनी और सिर्फ़ अपनी बदौलत पहुंचती हैं। जो तिरंगा वो जीतने के बाद लहराती हैं उस तिरंगे के ठेकेदार उनकी कोई मदद नहीं करते सिवाय खेलने की परमिशन देने के। जिस देश में मैच का मतलब मुकाबला नहीं क्रिकेट होता है वहां दूसरे खेलों का भविष्य वैसे ही अंधकारमयी है। आप सोचिए कि नियम के अनुसार जाएशा को एनर्जी ड्रिंक्स, बिस्किट्स सबकुछ मिलना चाहिए था पर वो लड़की पानी के लिए तरसती हुई बेहोश हो गई। इसके बाद आप कहते हैं कि भारत में सिर्फ़ दो पदक आए। कायदे से उन पदकों पर भारत का भी कम ही अधिकार है।
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