Home Omg Oh Teri Ki Kanaklata Barua Youngest Indian Freedom Fighter From Assam

महज़ 18 साल की 'कनकलता' ने तिरंगे की खातिर सीने पर खाई थी गोली

Updated Mon, 13 Jun 2016 01:52 PM IST
विज्ञापन
slide10
slide10
विज्ञापन

विस्तार

अनेक बलिदानियों का बलिदान हमारी स्वतंत्रता की नींव का पत्थर है। उनके त्याग और बलिदान की बुनियाद पर ही स्वतंत्रता रूपी भवन खड़ा है। कनकलता बरुआ भारत की ऐसी ही शहीद बेटी थीं, जो भारतीय वीरांगनाओं की लंबी कतार में जा मिलीं। महज़ 18 वर्षीय कनकलता अन्य बलिदानी वीरांगनाओं से उम्र में छोटी भले ही रही हों, लेकिन त्याग व बलिदान में उनका कद किसी से कम नहीं। आइए जानते हैं इस महान् वीरांगना के बारे में...

कौन थी कनकलता बरुआ2

कनकलता बरुआ का जन्म 22 दिसंबर, 1924 को असम के बांरगबाड़ी गांव में कृष्णकांत बरुआ के घर में हुआ था। कनकलता बचपन में ही अनाथ हो गई थी। कनकलता के पालन–पोषण का दायित्व उनकी नानी को संभालना पड़ा। इन सबके बावजूद कनकलता का झुकाव राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन की ओर होता गया।

बचपन से ही राष्ट्र भक्ति की भावना

जब मई 1931 ई. में गमेरी गांव में रैयत सभा आयोजित की गई, उस समय कनकलता केवल सात वर्ष की थी। फिर भी सभा में अपने मामा देवेन्द्र नाथ और यदुराम बोस के साथ उसने भी भाग लिया। सभा के अध्यक्ष प्रसिद्ध नेता ज्योति प्रसाद अगरवाला थे। ज्योति प्रसाद अगरवाला असम के प्रसिद्ध कवि थे और उनके द्वारा असमिया भाषा में लिखे गीत घर–घर में लोकप्रिय थे। अगरवाला के गीतों से कनकलता भी प्रभावित और प्रेरित हुई। इन गीतों के माध्यम से कनकलता के बाल–मन पर राष्ट्र–भक्ति का बीज अंकुरित हुआ।

स्वतंत्रता संग्राम में शामिल

सन् 1931 के रैयत अधिवेशन में भाग लेने वालों को राष्ट्रद्रोह के आरोप में बंदी बना लिया गया। इसी घटना के कारण असम में क्रांति की आग चारों ओर फैल गई। मुम्बई के कांग्रेस अधिवेशन में 8 अगस्त, 1942 को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ। यह ब्रिटिश के विरुद्ध देश के कोने-कोने में फैल गया। असम के शीर्ष नेता मुंबई से लौटते ही पकड़कर जेल में डाल दिये गये। अंत में ज्योति प्रसाद आगरवाला को नेतृत्व संभालना पड़ा। उनके नेतृत्व में गुप्त सभा की गई। पुलिस के अत्याचार बढ़ गए और स्वतंत्रता सेनानियों से जेलें भर गई। कई लोगों को पुलिस की गोली का शिकार बनना पड़ा। शासन के दमन चक्र के साथ आंदोलन भी बढ़ता गया।

थाने पर तिरंगा फहराने का निर्णयPatna-Sahid_Smarak

एक गुप्त सभा में 20 सितंबर, 1942 ई. को तेजपुर की कचहरी पर तिरंगा झंडा फहराने का निर्णय लिया गया। उस समय तक कनकलता विवाह के योग्य हो चुकी थीं। किंतु वह अपने विवाह की अपेक्षा भारत की आज़ादी को अधिक महत्त्वपूर्ण मान चुकी थीं। भारत की आज़ादी के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थीं।

20 सितंबर, 1942 का दिन

20 सितंबर, 1942 के दिन तेजपुर से 82 मील दूर गहपुर थाने पर तिरंगा फहराया जाना था। कनकलता भी अपनी मंजिल की ओर चल पड़ीं। कनकलता आत्म बलिदानी दल की सदस्या थीं। गहपुर थाने की ओर चारों दिशाओं से जुलूस उमड़ पड़ा था। दोनों हाथों में तिरंगा झंडा थामे कनकलता उस जुलूस का नेतृत्व कर रही थीं। जुलूस के नेताओं को संदेह हुआ कि कनकलता और उसके साथी कहीं भाग न जाएं। संदेह को भांप कर कनकलता शेरनी के समान गरज उठी- "हम युवतियों को अबला समझने की भूल मत कीजिए। आत्मा अमर है, नाशवान है तो मात्र शरीर। अतः हम किसी से क्यों डरें?" ‘करेंगे या मरेंगे’ ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’, जैसे नारों से आकाश को चीरती हुई थाने की ओर बढ़ चलीं।

जुलूस के गगनभेदी नारों से आकाश गूंजने लगाBishnuRabhaSmritiUdyan,_Tezpur

आत्म बलिदानी जत्था थाने के करीब जा पहुंचा। पीछे से जुलूस के गगनभेदी नारों से आकाश गूंजने लगा। उस जत्थे के सदस्यों में थाने पर झंडा फहराने की होड़-सी मच गई। हर एक व्यक्ति सबसे पहले झंडा फहराने को बेचैन था। थाने का प्रभारी पी. एम. सोम जुलूस को रोकने के लिए सामने आ खड़ा हुआ। कनकलता ने उससे कहा- "हमारा रास्ता मत रोकिए। हम आपसे संघर्ष करने नहीं आए हैं। हम तो थाने पर तिरंगा फहराकर स्वतंत्रता की ज्योति जलाने आए हैं। उसके बाद हम लौट जायेंगे।"

सीने पर खाई गोली

थाने के प्रभारी ने कनकलता से कहा कि यदि तुम लोग एक इंच भी आगे बढ़े तो गोलियों से उड़ा दिए जाओगे। इसके बावजूद भी कनकलता आगे बढ़ीं और कहा- "हमारी स्वतंत्रता की ज्योति बुझ नहीं सकती। तुम गोलियां चला सकते हो, पर हमें कर्तव्य विमुख नहीं कर सकते।" इतना कह कर वह ज्यों ही आगे बढ़ी, पुलिस ने जुलूस पर गोलियों की बौछार कर दी। पहली गोली कनकलता ने अपनी छाती पर झेली। गोली बोगी कछारी नामक सिपाही ने चलाई थी। दूसरी गोली मुकुंद काकोती को लगी, जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। इन दोनों की मृत्यु के बाद भी गोलियां चलती रहीं।

किंतु झंडे को न तो झुकने दिया न ही गिरने दिया211515-Kanaklata_Barua_aru_mukunda_kakoti

लेकिन युवकों के मन में स्वतंत्रता की अखंड ज्योति जल रही थी, जिसके कारण गोलियों की परवाह न करते हुए वे लोग आगे बढ़ते गए। कनकलता गोली लगने पर गिर पड़ी, किंतु उसके हाथों का तिरंगा झुका नहीं। उसका साहस व बलिदान देखकर युवकों का जोश और भी बढ़ गया। कनकलता के हाथ से तिरंगा लेकर गोलियों के सामने सीना तानकर वीर बलिदानी युवक आगे बढ़ते गये। एक के बाद एक गिरते गए, किंतु झंडे को न तो झुकने दिया न ही गिरने दिया। उसे एक के बाद दूसरे हाथ में थामते गए और अंत में रामपति राजखोवा ने थाने पर झंडा फहरा दिया गया।

शहीद वीरांगना का अंतिम संस्कार

शहीद मुकंद काकोती के शव को तेजपुर नगरपालिका के कर्मचारियों ने गुप्त रूप से दाह–संस्कार कर दिया, किंतु कनकलता का शव स्वतंत्रता सेनानी अपने कंधों पर उठाकर उसके घर तक ले जाने में सफल हो गए। उसका अंतिम संस्कार बांरगबाड़ी में ही किया गया। अपने प्राणों की आहुति देकर उसने स्वतंत्रता संग्राम में और अधिक मज़बूती लाई। Source:?Bharat Discovery
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।

Agree