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जो दिखता है वो बिकता है... के सिद्धांत को बिजनेस वाले बड़ी गंभीरता से लेते हैं। लिहाजा प्रोडेक्ट बनाने से लेकर उसके बेचने तक के बीच में ब्रांडिंग को खास जगह दी जाती है। ब्रांडिंग के लिए कंपनियां तमाम हथकंडे अपनाती हैं। होर्डिंग, बोर्डिंग, पैंपलेट्स, विज्ञापन, इवेंट और कूपन या ऑफर जैसी कोशिशें की जाती हैं। तब जाकर लोग ब्रांड में कुछ दिलचस्पी दिखाते हैं। लेकिन अब बिजनेस का पैटर्न बदल गया है। अब कंपनियां दौड़-धूप और खर्चे वाली ब्रांडिंग नहीं करवाती हैं।
वक्त के साथ कंपनियों की स्ट्रैटजी बदल रही है, अब कम दाम में महंगा आइटम बेचने की बात कही जाती है। जनता भी होशियार है, फौरन सामान पर टूट पड़ती है। आप जियो का ही मामला ले लें, जैसे ही हंगामा हुआ कि कंपनी 1500 रुपये वाला फोन देने का वादा किया लेकिन पोस्टर में नीचे दो स्टार के साथ शर्ते लागू वाली बात कर दी।
अब कस्टमर जब दुकान पर पहुंचा तो दुकानदार ने इतनी शर्ते बता दीं कि ग्राहक अपने ही बाल नोंचने लगा। शर्त के मुताबिक फोन 500 रुपये और एक पुराने फीचर फोन के बदले नया फोन मिलना था। लेकिन असल में आपको 500 रुपये के अलावा करीब 550 रुपये और देने होंगे। कंपनी ये पैसे सिक्योरिटी और प्लान के नाम पर मांग रही है। इसके अलावा जो फीचर फोन कंपनी लेगी, उसमें भी इतनी शर्ते हैं कि उसमें नया फोन ही फिट बैठता है।
कुल मिलाकर आप सोचेंगे कि 400-500 रुपये के लिए क्या फजीहत पालें, फोन लेना है तो 1500 रुपये देकर ले लेते हैं। कुछ लेगें और कुछ नहीं लेकिन ब्रांड की चर्चा तो हो गई। किसी ब्रांड को फेमस करने के लिए इससे ज्यादा और क्या चाहिए।
ब्रांडिंग के नाम पर जो करोड़ों रुपये खर्च किए जाने थे वो कंपनी ने बिना हाथ हिलाए बचा लिए। कंपनी ने अपने ऑफर्स को ऐसे पेश किया कि मीडिया भी समझ नहीं पाई। दनादन खबरें बनीं। लोगों ने चर्चा की और ग्राहक इसी चक्कर में दुकान की चौखट पर सिर झुकाए हुए पहुंच गया।