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अगर देखा जाए तो वर्तमान की भागदौड़ वाली जिंदगी में हम इतने व्यस्त हो चुके हैं कि हमारे पास खुद के लिए समय ही नहीं है। सुबह से लेकर शाम तक हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वो अधिकांश काम सिर्फ दूसरों के लिए ही होते हैं। स्वयं के लिए जीने की समझ, संभावना और गुंजाइश, तीनों ही हमारे भीतर से लगभग गुम होती जा रही है। आज के
#गुरूवार_के_गुरूमंत्र में हम आपको बताएंगे की अगर आप इस व्यस्त जीवन में खुश रहना चाहते हैं तो ये बातें ध्यान में रखें, जो आपके जीने के मायनों को ही बदल देंगी....
1.अपनी प्रोफेशनल लाइफ से थोड़ा वक्त अपने लिए भी निकालिए।
2.कुछ ऐसा काम करें, जिससे आपको सुकून मिले।
दरअसल हम दूसरों के लिए जीत-जीते अपने लिए जीना ही नहीं अपने आप को भी भूल जाते हैं। ये 2 काम करने से आपके भीतर एक नई एनर्जी का संचार होगा। वक्त को इस तरह बांटिए कि आपके लिए भी थोड़ा सा समय जरूर रहे। कुछ लोगों के शौक ही उनका व्यवसाय बन जाते हैं। फिर उन्हें खुद को समय देना जरूरी नहीं होता, लेकिन ऐसे लोग काफी कम हैं। अधिकतर लोगों के शौक और काम, दोनों अलग-अलग होते हैं। काम का दबाव दिमाग पर होता है और शौक का दबाव दिल पर।
ये कहानी है सतयुग की, तब एक राजा हुए थे ‘प्रियव्रत’। राजा ने प्रजा की सेवा, सुरक्षा और सहायता में जीवन लगा दिया। देवताओं के भी कई काम किए, लेकिन उन्होंने कभी अपना निजी जीवन नहीं खोया। थोड़ा समय वे हमेशा अपने लिए रखते थे। शिकार के बहाने प्रकृति के निकट रहते थे। इससे उन्हें अच्छे काम करने की नई ऊर्जा मिलती थी। हम भी अपने लिए वक्त निकालें। दूसरे कामों को भी महत्व दें, लेकिन हमेशा याद रखें हमारे मन में संतुष्टि का भाव तभी आता है, जब हम थोड़ा समय खुद के लिए भी निकालते हैं।
कई बार बाहरी सफलताएं हम पर हावी हो जाती हैं। कुछ सफलताएं पाने के बाद ऐसा भी महसूस होता है कि हमने अपना कुछ खो दिया है और कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम हार कर भी संतुष्टि महसूस करते हैं। ‘अगर हमारी निजी हार से किसी की जिंदगी बचती है या किसी को खुशी मिलती है तो हमें इस हार में भी जीतने की खुशी मिल जाती है।’ श्रीकृष्ण से समझ सकते हैं कि कभी-कभी पराजित होना भी श्रेष्ठ है…
ये तो आप भी जानते ही होंगे कि भगवान का अवतार होने पर भी श्रीकृष्ण पर युद्ध से भागने का कलंक लगा। युद्ध यानी रण से भागने के कारण ही उन्हें रणछोड़ भी कहा गया। बलराम अक्सर इस बात को लेकर श्रीकृष्ण से नाराज हो जाते थे, लेकिन श्रीकृष्ण हर बार उनकी बात हंस कर टाल देते थे। श्रीकृष्ण कहते थे कि..
“हर बार जरूरी नहीं कि युद्ध जीता ही जाए। युद्ध का परिणाम सिर्फ जीतने या हारने तक सीमित नहीं होता। इसका परिणाम तो इसके बाद की स्थिति पर निर्भर है। एक युद्ध में हजारों सैनिक मारे जाते हैं। उनसे जुड़े लाखों परिजन असहाय और दु:खी होते हैं। अगर सैनिकों की बलि चढ़ाकर जीत हासिल कर भी ली तो उसका लाभ ही क्या? मैदान से भागने पर युद्ध टल जाता है, हजारों-लाखों जानें बच जाती हैं। अगर इसके लिए कोई आरोप लगता है तो यह कोई घाटे का सौदा नही है। मैदान से भागने पर युद्ध टल जाता है, यह मेरे लिए शांति और संतुष्टि दोनों की बात है कि मेरे भागने से हजारों सैनिकों की जानें बच गईं”।