पल्प।।पल्प फिक्शन। गूगल पर जा कर पल्प फिक्शन का हिंदी मीनिंग सर्च करेंगे तो मिलेगा 'उत्तेजित करने वाले सस्ते उपन्यास'। लेकिन इसके तैयार होने का प्रोसेस उतना ही मुश्किल है।
रेलवे स्टेशन से लेकर बस अड्डे तक हर जगह बिखरी पड़ी रहती हैं। ऐसी मैगज़ीन। सबने देखा है। मनोहर कहानियां, मधुर कहानियां, सच्ची घटनाएं, जासूसी के किस्से! और भी कितने ही नाम। सरस सलील भी कुछ-कुछ ऐसा ही था। लेकिन महिलाओं के लिए था तो उसे थोड़ा बचा के रखा गया था। लेकिन उसमें भी कुछ इस तरह के किस्से आते थे।
मुझे याद हैं अपने कॉलेज हॉस्टल के कुछ किस्से। जब कभी हमारे कमरों की चेक शुरू होती। चेक का काम होता तो था ये चेक करने के लिए कि किसने कमरे में गंध मचा रखा है। किसने कमरे में गेट चेक स्किप करके भी सिगरेट अंदर घुसा ली है। कल ग्राउंड में शराब की बोतल किसने फेंकी थी। इस तरह की जांच लेकिन ज्यादातर उन्हें कुछ मिलता नहीं था। लेकिन कई बार इस तरह की किताबें निकल आती थी। एकदम रंग-बिरंगे कवर वाले। किसी के कवर पर लड़का लड़की को चूम रहा होता था। किसी में लड़की लड़के के गोद में आधे कपड़ों के साथ लेटी होती।