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नया साल आ गया और हम सब ने जमकर नए साल की पार्टी भी की, लेकिन एक ओर जहां पूरा देश मौज करता है, चैन की नींद सोता है, वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना के जवान सियाचिन ग्लेशियर जैसी खतरनाक जगहों पर मुश्तैदी से तैनात रहते हैं, जहां यह तैनात रहते हैं वहां की हवा आदमखोर कहलाती है। पारा माइनस 50 डिग्री से कम रहता है और यह इस तापमान से जूझने वाले ‘सुपरमैन’ कहलाते हैं। जी हां यही कहानी है सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात रहने वाले भारतीय जवानों की। आइए जानते है इन बहादुर जवानों के बारे में जो मौत से जूझते रहते हैं ताकी हम सुरक्षित रह सकें।
सियाचिन ग्लेशियर या सियाचिन हिमनद हिमालय पूर्वी कराकोरम रेंज में भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास उत्तर पर स्थित है। यह भारत और पाकिस्तान के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह विश्व का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र है। इस पर सेनाएं तैनात रखना दोनों ही देशों के लिए महंगा सौदा साबित होता है। सियाचिन में भारत के 10 हजार सैनिक तैनात हैं और इनके रखरखाव पर प्रतिदिन 5 करोड़ रुपये का खर्च आता है।
सियाचिन सबसे ऊंचाई पर स्थित है। यहां पाकिस्तान और चीन दोनों की सीमा भारत के साथ मिलती है। दोनों देश से हमें आये दिन खतरा बना रहता है। पाक और चीन की सेना लगातार भारत की सीमा पर घुसपैठ की कोशिश में लगी रहती है। थोड़ी सी चुक से भारत संकट में पड़ सकता है। इसलिए यहां सैनिक चौकन्ने रहते।
पारा -50 के करीब पहुंच जाता है। इतनी ठंड़ के बीच भारत के जवान वहां पूरी मुस्तैद के साथ डटे रहते हैं। सियाचिन ग्लेशियर पर स्थित भारतीय सीमा की रक्षा के लिए 3 हजार सैनिक हमेशा तैनात रहते हैं। पाकिस्तान सियाचिन पर हमेशा से अपना दावा करता आया है।
जवानों की पलटन की तैनाती तीन-तीन माह के लिए की जाती है। इन तीन माह में यह नहाने से एकदम दूर रहते हैं। क्योंकि नहाने के लिए यदि बहादुरी दिखाने की कोशिश की तो शरीर का कोई ना कोई अंग गलकर वहीं गिर जाएगा। खाना भरपूर रहता है पर यह जानते हैं कि खाने के बाद उन्हें कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। बर्फीले हवाएं इन्हें निगलने के लिए हर पल इनके सिर पर मंडराती रहती हैं।
बर्फ के नीचे सैनिक दफन होते हैं और उनकी बर्फ में ही कब्र बन जाती है। इसके बाद भी यहां सैनिक मुस्तैदी से हर पल तैनात रहते हैं। मौसम से लड़ते हैं और पाकिस्तान से होनी वाली घुसपैठ पर भी नज़र रखते हैं। बहुत कम पलटन ऐसी होती हैं जिसमें उतने सैनिक ही वापस लौट आए जितने सियाचिन पर मोर्चा संभालने पहुंचते हैं।
इनके जान गंवाने की खबर भी सैनिकों के परिजनों तक चिट्ठी से पहुंचती है। इसका खाका हर भाषा में तैयार रहता है क्योंकि सैनिक के परिजनों की भाषा अलग-अलग होती है। बस सैनिक का नाम और नंबर खाली रहता है, जिसे सैनिक के जान गंवाने के बाद रिक्त स्थान में लिख दिया जाता है।
यह पांच-पांच की संख्या में बर्फ पर कमर में रस्सी बांधकर गश्त करते हैं। ताकि कोई एक खाई में जाए तो बाकी उसे बचा सकें पर कई बार यह पांच के पांचों ही बर्फ में समा जाते हैं, और इनके बर्फ में समाने की जानकारी जब तक मिलती है, तब तक इनके ऊपर कई फुट मोटी बर्फ जम चुकी होती है। फिर भी यह सब सहते हैं। देश के लिए जीते और देश के लिए मरते हैं।
सलाम इन जवानों को। इनकी जांबाजी को। इनके जज्बे को।