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क्या आपको पता है मल्टीप्लेक्स में बिकने वाला खाना इतना महंगा क्यों होता है

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Wed, 03 May 2017 01:11 PM IST
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hall - फोटो : showcasecinemas
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सिनेमा और टीवी ने लोगों को अपनी इतनी बुरी लत लगा दी है कि जब तक कोई बहुत बड़ी मजबूरी न हो तब तक हम इन दोनों से दूर नहीं हो पाते। कोई सीधे हॉल में जाकर फिल्म देखना पसंद करता है तो कोई फिल्म के ऑनलाइन आने का इंतजार करता है। एक ऑफिस जाने वाले व्यक्ति से लेकर छोटे-मोटे काम करने वाला व्यक्ति तक हॉल में जाकर फिल्में देखना चाहता है।

पहले जब टीवी नहीं था तो सिनेमा ही मनोरंजन का सबसे बड़ा जरिया था। फिर धीरे-धीरे दर्शक वहां से टीवी की तरफ मुड़ गए। परिवर्तन हर दौर में आता है और यही वजह है कि अब लोगों का मन टीवी से भी भर चुका है और वो ऑनलाइन मनोरंजन की दुनिया की तरफ मुड़ चुके हैं। लेकिन इन सब के बीच अभी भी फिल्मों को लेकर लोगों की दीवानगी कम नहीं हुई है। अभी भी लोग फिल्म देखना बहुत पसंद करते हैं। 

सिंगल स्क्रीन थिएटर की जगह अब मल्टीप्लेक्स ने ले ली है। लेकिन क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है कि मल्टीप्लेक्स के अंदर जो खाने-पीने की चीजें होती हैं, वो इतनी महंगी क्यों होती हैं? चलिए आज हम आपको बताते हैं कि इसके पीछे क्या राज है!
 

याद है कुछ समय पहले जब आप अपने मम्मी पापा के साथ फिल्म देखने जाते थे तो इंटरवल के समय कैसे कोल्ड ड्रिंक की बोतलों पर ओपनर से आवाज निकालते हुए एक आदमी आपको अपनी तरफ ललचाता था। उस समय आप बेहद प्यासा महसूस करने लगते थे। जैसे ही पापा उसे आवाज लगाते, हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। 

लेकिन आज जब मल्टीप्लेक्स में इंटरवल होता है तो हम उस एक व्यक्ति से बचते हुए नजर आते हैं जो एक कागज और कलम लेकर पूछने आता है कि क्या आप कुछ ऑर्डर करना चाहेंगे? इस डर की वजह होती है वहां पर बिकने वाले खाने की कीमत। मल्टीप्लेक्स में पॉपकॉर्न और सॉफ्ट ड्रिंक की कीमत देखकर दिमाग चकराने लगता है। आखिर इसकी वजह क्या होती है?

विदेशों में टिकट की बिक्री का 90% हिस्सा प्रोडक्शन कंपनी को चला जाता है। ऐसे में सिनेमा हॉल के पास बहुत कम हिस्सा आता है। इसलिए वो खाने-पीने की कीमत बढ़ा देते हैं। लेकिन भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं है। फिर ऐसी क्या वजह है कि भारतीय भी कुछ चिप्स के लिए भी इतनी कीमत अदा करते हैं।
 

असल में होता यह है कि यह मल्टीप्लेक्स खाने-पीने की स्टाल्स किसी तीसरी पार्टी को देते हैं और उनसे हद से ज्यादा पैसे वसूलते हैं। अब खाने-पीने की कंपनी अपना प्रॉफिट बढ़ाने के लिए अपनी चीजों की कीमतें हद से ज्यादा बढ़ा देते हैं। इसके अलावा हम लोग भी इसमें उनकी बहुत मदद करते हैं।

जो व्यक्ति 300 रुपए का टिकट लेकर फिल्म देख रहा है वो 120 की कोल्ड ड्रिंक भी ले ही लेगा। अब जो लोग कभी-कभी फिल्म देखने आते हैं वो सोचते हैं कि खाने-पीने में ही पैसे क्यों बचाएं। अगर लोग इनसे खाने-पीने की चीजें खरीदना बंद कर दें तो शायद इन स्टॉल को अपनी कीमतें कम करनी पड़ेंगी।
 

साथ ही ये मूवी थिएटर लोगों को अपना कोई भी स्नैक अंदर नहीं ले जाने देते हैं। वो जानते हैं कि फिल्म देखते समय लोग कुछ खाना पसंद करते हैं और वो कुछ न कुछ तो खरीद ही लेंगे। और ऐसा तो होता ही है। मल्टीप्लेक्स चाहें तो एक सॉफ्ट ड्रिंक के कितने भी पैसे चार्ज कर सकते हैं लेकिन क्योंकि वो यह बात जानते हैं कि ऐसे में कोई उनके यहां से स्नैक्स नहीं खरीदेगा तो वो रकम उतनी ही रखते हैं, जितनी कि आप अदा करने के बारे में सोच सकें।

धीरे-धीरे बड़े शहरों के सभी सिंगल थिएटर बंद हो रहे हैं और उनकी जगह मल्टीप्लेक्स खुल रहे हैं। जो लोग आर्थिक रूप से ज्यादा सक्षम नहीं होते वो लोग इन सिंगल थिएटर में फिल्म देखने जाते हैं। लेकिन अगर यह सब बंद हो जाएंगे तो ये लोग फिल्म कहां देखने जाएंगे? क्या सब लोग 300 रुपए का टिकट और 120 की कोल्ड ड्रिंक ले सकते हैं?
 

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