सही ढंग से फ्रेश होने के लिए ढंग से बैठना जरूरी है। सदियों से इंसान इंडियन स्टाइल में बैठकर ही पॉटी कर रहा था लेकिन पश्चिमी सभ्यता के उदय के बाद से ही वहां ये तरीका बदल गया। इसे बेहद आरामदेह और शान-ओ-शौकत वाला तरीका माना जाता है। लेकिन असल में ये बिल्कुल गलत तरीका है।
कोलाइटिस, हेमोराइड्स, कांस्टिपेशन, कोलन कैंसर और एपेंडीसाइटिस जैसी बीमारियों का एक कारण ये समझा जाता था कि ये ज्यादातर डाइट्री फाइबर की कमी की वजह से होती हैं और बाथरूम पॉश्चर इसका एक बहुत छोटा हिस्सा है। लेकिन स्ट्रेंनफर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में इस बात का पता चला है कि असल में ये बीमारियां गलत बाथरूम पॉश्चर की वजह से होती हैं।
भारतीय टॉयलेट में लोग स्कवैट की पोजीशन में बैठते हैं यानी बैठक लागाने का आसन। और यही सही है। ये सिर्फ कांस्टिपेशन की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए नहीं बल्कि हर किसी के लिए सही है। इसके पीछे भी एक वैज्ञानिक कारण है। हमारा कोलन 6 फीट लंबा होता है और सारा वेस्ट इसी में इकठ्ठा होता है। यहां से होकर ये रेक्टम में जाता है।
प्यूबोरेक्टैलिस नाम की एक मसल होती है जो रेक्टम को चोक करती है। वेस्टर्न टॉयलेट में बैठने के समय ये मसल वेस्ट को बाहर निकालने में दिक्कत पैदा करती है। वहीं इंडियन स्टाइल में बैठने पर ये रुकावट दूर हो जाती है। ये तो हो गई शरीर के अंदरूनी सिस्टम की बात।
इसके अलावा लोग ये भी मानते हैं कि पब्लिक प्लेस पर जितने भी वेस्टर्न टॉयलेट होते हैं वो बेहद गंदे होते हैं। उन्हें हर कोई अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करता है और वो बेहद गंदे भी हो जाते हैं। इसके बाद उनपर बैठने का मन नहीं करता। वहीं दूसरी तरफ इंडियन टॉयलेट को गंदा होने पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि आपके शरीर का कोई भी हिस्सा इससे छूता नहीं है। ऐसे में कोई भी इन्हें इस्तेमाल कर सकता है।
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