पूरे तमिलनाडु में लोग जलीकट्टु पर लगे बैन को लेकर सड़क पर उतरे हुए हैं। चेन्नई के मरीना बीच के आस-पास बुधवार से ही लोगों की भीड़ जमा है। लेकिन ये लोग सिर्फ जलिकट्टू के लिए नहीं आए हैं। असली बात जानिए!
मामला ये है कि जलिकट्टू बहुत सालों से तमिलनाडु में मनाया जाता है। मसलन, इसके पीछे अपनी कुछ पौराणिक मान्यन्ताएं हैं। दिल्ली के नेशनल म्यूज़ियम में भी खुदाई में मिली एक पुरानी पत्थर की मूर्ती भी रखी हुई है। जो कि सिंधू घाटी सभ्यता के समय की है। उस मूर्ती में एक आदमी दिख रहा है। जिसने एक सांड की सिंह पकड़ रखी है और उससे अकेले लटका हुआ है। तो मुआमला बहुत पुराना है।
होता ये है कि एक सांड, जिसे की बहुत ही सलीके से खिला-पिला के तैयार किया जाता है। उसे एक भीड़ के सामने खोल दिया जाता है। अब भीड़ के लोग जमा हो कर उसे कंट्रोल करने में लग जाते हैं। जो भी बंदा सांड को पकड़ कर थोड़ी दूर तक उसकी सवारी कर लेगा। वो विजेता। कहीं-कहीं ये भी होता है कि सांड के सिंग से लगे एक झंडे को उतारने तक सांड की सवारी करनी होती है। ये खेल है। इसमें सांड के साथ कोई मार-पीट जैसा कुछ नहीं किया जाता।
लेकिन, अब उठा-पटक के चक्कर में कभी-कभी आम आदमी जो कि खेल खेल रहा होता है, उन्हें चोटें आती हैं। कई बार सांडों को भी चोट आ जाती है।
दिक्कत नहीं, असंवैधानिक! कैसे? ऐसे कि जिस तरह इंडिया के संविधान में यहां के लोगों को कुछ जरूर ही मिलने वाले अधिकार दिए गए हैं, ठीक वैसे ही जानवारों को भी कुछ अधिकार हैं। आज़ादी। भूख, प्यास और भूखमरी से आज़ादी, डर से आज़ादी, मानसिक और शारीरिक दिक्कतों से आज़ादी और ऐसे ही दर्द और किसी तरह के घावों से आज़ादी।
और इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में ही इस तरह के किसी भी खेल पर रोक लगा दी थी। जिसकी वजह से पिछले तीन साल से तमिलनाडु में जलिकट्टू मनाया नहीं जा सका। अधिकारिक तौर पर।
लेकिन नेता जी लोगों के पेट का सवाल है। क्योंकि त्योहारों का सीधा-सीधा हिसाब किताब वोट बैंक से है। तो जब-जब ये त्योहार पास आता है। सड़कों पर थोड़ी भीड़ जमा हो ही जाती है। नेता लोग अपना हिसाब किताब देख कर धीरे से निकल लेते थे। लेकिन इस बार मामला थोड़ा जमता हुआ नहीं दिख रहा।
लेकिन क्या ये जो भीड़ मरीना बीच पर दिख रही है, वो सिर्फ जलिकट्टू के लिए ही खड़ी हुई है इस बार...?
नहीं!
NDTV में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक। पब्लिक वहां जमा जरूर हुई है। लेकिन, नेताओं को वहां अपना उल्लू सीधा करने का मौक़ा नहीं मिल रहा। यहां तक कि फिल्म फ्रेटरनीटी के लोग तक आ सक रहे हैं। लेकिन, नेता लोग नहीं।
जो लोग वहां पहुंचे थे, उनकी बातों को सूना जाए तो एक बात समझ में आती है। वो ये कि ये भीड़ जलिकट्टू के नाम पर जमा जरूर हुई है। लेकिन सिर्फ अब इसने अरब स्प्रिंग के तर्ज़ पर 'चेन्नई स्प्रिंग' है।
अरब स्प्रिंग में पूरे अरब वर्ल्ड के शासकों की कुर्सी हिल गई थी। पब्लिक सड़कों पर थी।
लोगों का कहना है कि ये सिर्फ जलिकट्टू के लिए नहीं है। ये किसानों के लिए है। उनकी प्रॉब्लम्स के लिए है। ये बदलाव लाने के लिए है। हम कावेरी मसले पर भी हार गए। क्योंकि हमने अपने तरह से ज्यादा कोशिश ही नहीं की।
तमिल टीवी चैनल्स भी लोगों के साथ ही मालूम होते हैं। वो भी इस मुद्दे को काफ़ी बढ़-चढ़ कर लोगों तक पहुंचा रहे हैं।
लोग टीवी पर सोशल मीडिया पर देख-देख कर जमा हो रहे हैं। लोगों का कहना है हम अपने ही सरकार के खिलाफ़ खड़े हैं। चाहे वो केंद्र हो या राज्य की सरकार।
क्या ये सच मुच अरब स्प्रिंग की तरह ही हो जाएगा? ये वक़्त बताएगा!