समय बदल गया था। वासेपुर की घंटी बज चुकी थी। अब ये वो ज़माना नहीं था, एक रामाधीर सिंह था और एक सरदार खान। अभी हर कोई सरदार खान और सुल्तान बनना चाहता था। 'डेफिनेट'। उसकी मां ने बचपन में ही उसको कट्टा पकड़ा दिया था। और जब बैग में कट्टा रखते हुए उसकी मां पूछती है, "वो जो माचिस चुराया था वो कहां रखा?" तो डेफिनेट जवाब देता है,"माचिस होती तो पूरी दुनिया नहीं जला देता।" ये वो दौर था जब हर कोई अपने मोहल्ले का संजय दत्त था या सलमान खान। और फिर डेफिनेट तो दुर्गा का बेटा था। सरदार का खून।
'एक लड़का-लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते' अपनी पैंट चढ़ाते हुए, जवाब देता है डेफिनेट। वासेपुर में हीरो रोज पैदा होते थे। लेकिन इनमें सबसे खतरनाक था डेफिनेट। इसको उस बाप की जायदाद नहीं चाहिए थी, पूरा धनबाद शहर पर राज़ करना था।
डेफिनेटवा का असली नाम है, ज़ीशान क़ादरी। धनबाद का लौंडा। 17 मार्च 1983 की पैदाइश। स्कूली पढ़ाई वहीं से हुई। पढ़ने लिखने में ज्यादा मन नहीं लगता था। पता नहीं किस चीज़ में मन लगता था। पैदाइश उस दौर की थी जब धनबाद बदल रहा था। वासेपुर अब धनबाद में मिल रहा था। घर में सब लोग पढ़ने-लिखने वाले थे। लेकिन ये थोड़ा उनमें ज्यादा होनहार था। लोग उस समय एक तो बाहर पढ़ने ज्यादा जाते नहीं थे। और अगर जाते भी तो पटना, दिल्ली कहीं जाते थे। लेकिन इसकी किस्मत देखो। शायद इसको डेफिनेट ही बनना था। ये धनबाद से निकला और पहुंच गया मेरठ।
मेरठ समझते हो न? मेरठ वही जगह है जिसने देश को आज़ादी की पहली मशाल दी थी। 1857 की क्रान्ति। मंगल पांडेय पैदा करने वाली ज़मीं। आज भले मेरठ विकास के मामले में थोड़ा पिछड़ गया हो लेकिन बाकी चीज़ों में खूब आगे है। भरोसा न हो तो कभी घूम आना, आज भी खूब सारे पुराने फेमस स्कूल हैं वहां। और कभी बगल से गुजरते किसी बच्चे से थोड़ी कड़क आवाज़ में बात कर लेना। समझ जाओगे! वही मेरठ पहुंचा ज़िशान। यहां से बीबीए किया। बीबीए करने के बाद नौकरी कहीं ढंग की मिली नहीं।
दिल्ली आ गया बस पकड़ के। 2 घंटे से कम टाईम में दिल्ली में आपका स्वागत है। काम मिला, कॉल सेंटर में। ये वही टाईम था जब कॉल सेंटर इंडस्ट्री यानी बीपीओ का ज़माना था। नौकरी मिली, कर लिया। कुछ टाईम तक नौकरी किया। घर वाले एमबीए कर लो एमबीए कर लो का राग अलाप रहे थे। लेकिन इसका दिमाग तो कहीं और टिका हुआ था। इसको तो साला डेफिनेट बनना था।साल था 2009, नौकरी छोड़ दिया। पहुंच गया मुंबई। हीरो बनने। वहां जा के चेम्बूर में एक दोस्त के पास टिक गया। फिर अंधेरी सिफ्ट हो गया। लेकिन यहां आने के बाद दुनियाभर का सिनेमा देखा। फिर दिमाग में वासेपुर का ख्याल आया। और फिर आया लिखने का आईडिया। लेकिन लिख तो दें बनाए कौन? तब पता चला अनुराग कश्यप से मिल कर काम हो सकता है। खोज शुरू हो गया अनुराग कश्यप का।
[caption id="attachment_26613" align="alignnone" width="670"] source:Google[/caption]दो-चार बार अनुराग कश्यप के ऑफिस के चक्कर काटे, निकाल दिया गया। पहुचं गए एक दिन एक प्ले देखने। ये कल्कि कोचलिन का प्ले था। जिसको अनुराग कश्यप प्रोड्यूस कर रहे थे। पृथ्वी थिएटर। वहीं अनुराग कश्यप मिल गए। अनुराग कश्यप को फिल्म का आईडिया दिया। अनुराग कश्यप बोल दिए बकवास है। झूठ-मूठ का कहानी बना रहे हो। लेकिन तुरंत सामने ढेर सारा पेपर कटिंग पटक दिया। अनुराग कश्यप ने बोला जो भी है दिमाग में सब लिख दो। लौंडे ने लिख दिया। लिखा तो बस लिख ही दिया। तैयार हो गई वासेपुर की पूरी कहानी।
https://youtu.be/gbH6U0ZaGM4वैसे आपको बता दें, ज़ीशान क़ादरी को वासेपुर के लिए उस समय बेस्ट डायलॉग क्लास में आइफा और फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला था। इसके बाद ज़ीशान उर्फ़ डेफिनेट ने ओ वुमनिया, मैडम जी और फिरौती जैसी कई फिल्मों में डायलॉग लिखा जिसमें से कुछ अभी बन ही रही हैं। इसके बाद साल 2015 में मेरठिया गैंगस्टर लिखा और डायरेक्ट भी किया। आज की तारीख में डेफिनेट की अपनी दो-दो प्रोडक्शन कम्पनियां हैं। और डेफिनेट सरबजीत जैसी फिल्म को को-प्रोड्यूस करता है। और लाइन में और भी कितनी ही फिल्में हैं।