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ये है दुनिया का अनोखा देश, जहां मेंढकों का ख्याल रखते है इंसान, वजह जान आप भी हो जाएंगे हैरान

टीम फिरकी, नई दिल्ली Published by: Ayush Jha Updated Sat, 21 Nov 2020 10:44 PM IST
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frog - फोटो : social media
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जर्मनी की पूर्व राजधानी रह चुके बॉन शहर में एक बेहद ही अजीबोगरीब कायदा है। सर्दी के मौसम के बाद अगर आप बॉन शहर पहुंचेंगे, तो देखेंगे की बहुत से लोग सड़कों पर मेंढकों को बकायदा सड़क पार करा रहे होंगे। बॉन में जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, तो मेंढ़कों का यहां-वहां घूमना शुरू हो जाता है। दरअसल, गर्मी के मौसम की शुरुआत होने पर मेढक अपने सर्दी के ठिकाने से निकलते तो हैं, लेकिन नए ठिकाने पर पहुंचने के दौरान सड़कों पर तेज चलती गाड़ियों के नीचे दबकर मर जाते हैं। ऐसे में जर्मनी की कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने उन्हें बचाने का जिम्मा ले लिया है।

मेंढकों को बचाने के लिए किए जा रहे उपयों के बारे में वाइल्डलाइफ कनजर्वेशन से जुड़ी एक संस्था की डायरेक्टर मोनिका हचटेल कहती हैं कि कई-कई बार तो ऐसा होता था कि बहुत सारे मेंढक गाड़ियों से कुचलकर मर जाते थे। ये देखते हुए हमने उन्हें सड़क पार करने के दौरान बचाने का जिम्मा ले लिया। अब कई संस्थाएं काफी समय से मेढको को सड़क पार कराने के लिए काम कर रही हैं।
मेंढकों को बचाने के लिए कई तरह के तरीकों को उपयोग में लाया जाता है। मेंढकों को सड़क पार कराने के लिए सड़कों के नीचे सुरंग बना दी जाती है, जहां से ये आराम से कभी भी इस पार से उस पार जा सकते हैं। इसके साथ ही मेंढकों को बचाने के लिए फेंसिंग बनाई गई हैं।
एनजीओ और जर्मनी की सरकार ने मिलकर पूरे बॉन शहर में 800 फेंसिंग बनवाई हैं, जो मेंढकों की सड़कों पर चलती गाड़ियों से सुरक्षा करती हैं। एनजीओ के लोग रोजाना फेंस चेक करते हैं और बंद हुए मेंढकों को पास के जंगल में छोड़ आते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, मेंढकों की ये प्रजाति जहरीले और नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों को खाती है, इससे उनपर नियंत्रण रहता है। इसके साथ ही ये मच्छरों को भी खाते हैं। इन्हीं सब वजहों से मेंढकों को बचाना इतना जरूरी समझा जाता है। वैश्विक स्तर पर भी देखा जाए, तो मेंढकों की प्रजाति जिंदा रहना बहुत जरूरी है। मेढक पानी में मौजूद एल्गी खाते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता बनी रहती है।
जर्मनी में केवल बॉन में ही नहीं, बल्कि दूसरे शहरों में भी मेंढकों को बचाने पर जोर दिया जा रहा है। गाड़ी के नीचे दबने से मरने के अलावा  तेज चलती गाड़ियों के एयर फ्लो से भी मर जाते हैं। अगर मेढक 40 किलोमीटर प्रतिघंटे की स्पीड से अधिक चल रही गाड़ियों के पास से गुजरते हैं, तो उनके शरीर में आंतरिक रक्तस्त्राव होता है और मारे जाते हैं। ऐसे में गाड़ियों के स्पीड कंट्रोल के लिए कई सड़कों का नाम मेंढकों के नाम पर ही रख दिया गया है।
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