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...तो भईया, स्थिति है बड़ी डांबाडोल.... भारतीय रेल, रेल नहीं आधी से ज्यादा आबादी का घर है और घर में आजकल खाना बड़ा गड़बड़ है।
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जहां भी नजरें इनायत करेंगे आपको ट्रेन के ठसाठस भरे डिब्बे नजर आ ही जाएंगे। ट्रेन में चना मुर्रा की तरह ठूंसे गए लोग, भारतीय रेलवे के भरोसे लंबे-लंबे सफर जान हथेली पर लेकर तय करते हैं। रेलवे वालों का दावा है कि वो ट्रेन में सफर के दौरान सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं लेकिन रेलवे जिन्हें सर्विस कहती है, यात्रियों के लिए वो किसी सजा से कम नहीं होती ।
अगर आपका सामना ट्रेन के अंदर परोसी जाने वाली थाली से पड़ा है तो आपको सीएजी की रिपोर्ट से जुड़ी ये खबर जरूर पढ़नी चाहिए, इसमे बताया गया है कि मटर पनीर से पनीर कहां चला गया है और दम आलू का आलू... कैसे गोल हुआ। सीएजी की ताजा रिपोर्ट में ये स्वीकार किया गया है कि जो खाना ट्रेन के अंदर यात्रियों को परोसा जाता है वो जानवरों के खाने के लायक नहीं होता है।
इंसानियत के नाते रिपोर्ट पढ़ने से पहले आपको सावधान करना चाहेंगे, क्योंकि इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद आपको बीमारू जैसा भी फील हो सकता है और अगर हाल ही में ट्रेन में सफर करते हुए खूब मजे से रेलवे वाला खाना चबाते हुए आए हैं तो आपको ऊबकाई के साथ उल्टी और दस्त की भी शिकायत हो सकती है।
CAG की तरफ से संसद में पेश की गई रिपोर्ट में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। गंदगी में तो खाना बनता ही है साथ ही खाना बनाने में जिन सामानों का इस्तेमाल किया जाता है, अगर वो एक्सपायरी डेट को पार कर चुके हैं उन्हें भी मिला दिया जाता है।
सीएजी ने 74 स्टेशन्स और 80 ट्रेन्स का दौरा किया, जहां उन्हें रेलवे के सभी वेंडर्स मानकों से अलग ही दिखाई दिए। कहीं खाना बनाने के लिए गंदे पानी का इस्तेमाल किया जा रहा था तो कहीं गंदगी के अंबार के बगल में खाने को परोसा जा रहा था। न कोई डस्टबिन कवर मिले और न ही खाने को कीड़े मकौड़ों से बचाने के पुख्ता उपाय। बढ़िया पैकिंग के साथ घटिया खाने को पैक करके सीटों तक पहुंचा दिया जाता है। मजबूरी में यात्रियों को इसके तीन गुना से भी ज्यादा दाम चुकाने पड़ते हैं।