"आप मेरे जीते जी गांव वालों को लूट नहीं सकते, आप मुझे फांसी दे दें"
Rahul Ashiwal
Updated Mon, 23 Jan 2017 12:35 PM IST
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विस्तार
वैसे तो ये मुंह में सोने की चम्मच लेकर पैदा हुए थे लेकिन मृत्यु हुई फांसी के फंदे पर। हम बात कर रहे हैं महान स्वतंत्रता सेनानी देवकरन सिंह की। देवकरन सिंह उत्तरप्रदेश में ब्रज की तहसील सादाबाद के कुरसण्डा ग्राम के एक प्रतिष्ठित ज़मींदार थे। वह अपने क्षेत्र के एक बड़े ही प्रभावशाली ज़मींदार थे, लेकिन इन सभी सुख सुविधाओं के भोग विलास में न फंस कर इन्होंने अपना जीवन देश को समर्पित कर अपने प्राणों की बली दे दी। ..आइए बताते हैं इस महान क्रांतिकारी के बारे में...
एक बड़े ही प्रभावशाली ज़मींदार
स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुती देने वाले देवकरन, गिरधारी जी के पुत्र थे। देवकरन का विवाह भरतपुर के पथेने गांव के राजा की पुत्री से बड़ी धूम-धाम से हुआ था। वहां से इन्हें 101 गायें भेंट में प्राप्त हुई थीं, जिनके सींग सोने से मढ़े गए थे।
स्वतंत्रता की लड़ाई
सन 1857 के युद्ध में इन्होंने आस-पास के ग्रामवासियों को संगठित करके सादाबाद तहसील पर अपना अधिकार कर लिया था, इसलिए जब आगरा की सेना ने पुन: सादाबाद को जीता, तब देवकरन गिरफ़्तार कर लिए गए। अंग्रेज़ी सेना ने यह शर्त लगाई कि... "तुम शान्त रह कर हमें आस-पास के गांवों की तलाशी और लूट करने दो, क्योंकि इन गांव वालों ने बग़ावत में तुम्हारा साथ दिया है। हम तुम्हें इसी शर्त पर छोड़ सकते हैं अन्यथा तुम्हें फांसी दी जायेगी।" अंग्रेज़ों की इस बात को सुनकर देवकरन जी ने कहा "आप मेरे जीते जी गांव वालों को लूट नहीं कर सकते, आप मुझे फांसी दे दें।"
देवकरन को फांसी के लिए आगरा ले जाया गया
उनका यह उत्तर सुनकर अंग्रेज़ सेनापति ने उनकी फांसी का हुक्म दे दिया और उन्हें फांसी देने के लिए आगरा ले जाने का बंदोबस्त कर दिया गया। सादाबाद से एक व्यक्ति उनके ख़ाली घोड़े के साथ यह समाचार लेकर कुरसण्डा पहुंचा कि देवकरन फांसी के लिए आगरा ले जाए जा रहे हैं।
देवकरन को फांसी दे दी और आगरा भाग गए
तब कुरसण्डा से भारी जनसमूह पैदल, घोड़ों और गाड़ियों पर चढ़-चढ़कर उन्हें छुड़ाने के लिए उमड़ पड़ा। जब भीड़ का यह सागर अंग्रेज़ी सेना ने दूर से आते देखा तो उन्होंने रास्ते के खदौली गांव में एक बबूल के पेड़ पर देवकरन जी को लटका कर वहीं फांसी दे दी और आगरा भाग गए।
3 महीनों तक लगातार पुलिस उनके घर को घेरे रही
जनता जब पेड़ के निकट पहुंची तो उन्हें देवकरन जी का निष्प्राण शरीर ही देखने को मिला। उन्होंने इस वीर शहीद को पेड़ से उतारा और हज़ारों लोगों की उपस्थिति में उस वीर का अन्तिम संस्कार सम्पन्न किया। जब अंग्रेज़ों को यह पता चला तो वह और बौखला गए। पुलिस द्वारा देवकरन तथा उनके परिवार के घर बुरी तरह लूटे गए और 3 महीनों तक लगातार पुलिस उनके घर को घेरे पड़ी रही। इस प्रकार कुरसण्डा गांव का सन् 1857 ई. के प्रथम महायुद्ध में बड़ा योगदान था।
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