विस्तार
पिछले काफी दिनों से सोशल मीडिया एक सरकारी लेटर ने तहलका मचाया हुआ है। आप तक भी पहुंचा होगा। जिसमें एक जूनियर कर्मचारी को ऑफिस की सरकारी माचिस लौटाने के लिए बकायदा लेटर जारी किया गया। इतना ही नहीं ऐसा न करने पर विभागीय कार्रवाई की बात कही गई। एक बारगी तो किसी भी लग सकता था कि यह मजाक होगा लेकिन फिर देखा कि लेटर पर बकायदा सरकारी मुहर थी।
बस फिर क्या था, लेटर आग की तरह फैल गया। अब जो चीज इतनी वायरल हो जाए तो उसकी पड़ताल तो बनती है। अब इसकी पड़ताल भी कर ली गई है। आपके मन में भी कई तरह के सवाल होंगे कि आखिर क्या हुआ?, माचिस लौटाई या नहीं और लौटा दी तौ कैसे इस पत्र का जवाब दिया गया होगा। इस तरह के सवाल आपके जेहन में होंगे। इन सब सवालों के जवाब के लिए पहले वो लेटर एक बार फिर से पढ़ लीजिए।
लेटर आपने पढ़ लिया। अब शुरूआत करते हैं इसकी सच्चाई जानने की। इसके लिए जरूरी है कि वहां तक पहुंचा जाए जहां से लेटर चला। तो मीडिया वाले वहां तक पहुंचे और पता लगया। पड़ताल में सामने आया कि लेटर दरअसल, जूनियर साथी को ड्राफ्ट समझाने के लिए लिखा गया था।
हुआ यूं कि सुशील कुमार जी दफ्तर में बैठे हुए थे। सुशील को एक सरकारी लेटर तैयार करवाना था। लेकिन अपने ऑपरेटर भाई इस मामले में कच्चे थे तो उन्होंने सुशील को डेमो देनेे को कहा। सुशील डेमो देने के लिए विषय सोच ही रहे थे कि बत्ती गुल। अब जैसे ही लाइट गई तो सुशील जी लगे रोशनी करने को दफ्तर में रखी मोमबत्ती और माचिस ढूंढने। लेकिन मोमबत्ती तो मिल गई पर माचिस नहीं मिली। ध्यान आया कि माचिस तो एक दूसरे बाबू जी ले गए लेकिन लौटाए नहीं। उन्हें बस यहीं से आइडिया आ गया और लेटर लिख दिया कि मान लो अगर माचिस ही मांगनी हो तो सरकारी भाषा में कैसे मांगे। बस इतनी सी बात थी।
लेकिन बात का बतंगड़ तब बन गया जब इस लेटर की फोटो खींच कर किसी ने सोशल मीडिया में डाल दी। आगे की कहानी तो आप जानते ही हैंं।