नोट बैन! सुन के ही करेजा हक्क कर गया था। इसलिए नहीं कि मेरे पास बहुत पैसा था। इसलिए क्योंकि मेरे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं थे। तैयारी थी कि कल से खाया क्या जाएगा। खबर सुने और तुरंत भाग के किचन के तरफ। क्या-क्या है अंदर बचा हुआ। और पूरे बैग को खाली कर के एक-एक चिल्लर जमा करने की जद्दोजहद। खैर।।।अब 15 दिन बीत चुके हैं। और मैं अब भी ज़िंदा हूं। मतलब खाने-पीने का जुगाड़ था। अब मुद्दे की बात।
इतने दिनों में बैंकों में कितने पैसे जमा हो चुके हैं? करीबन 23 बिलियन। 1 बिलियन मतलब 100 करोड़। जोड़, घटा, गुना, भाग सब कर के देख लें। कितना पैसा हुआ। अब रिज़र्व बैंक के पास सबसे बड़ी परेशानी ये है कि ये जो नोट अब बर्बाद हो चुके। इनके साथ किया क्या जाए। कहां बिछा दें? अगर आप सोच रहे हैं कि क्या करना है, फेंक दो कूड़े में। बहुत बढ़िया! अब सुनिए कितने नोट हैं।
ऐसा बताया जा रहा है कि इन नोटों की गाड्डी का एक पर एक चढ़ा कर ढेर लगाया जाए तो इसकी हाइट मतलब उंचाई वो माउंट एवेरेस्ट से भी 5 गुना उंची होगी। समझ में आया कुछ? अब भी समझ नहीं आ रहा है तो एक उदाहरण और समझ लीजिए।
अगर इसको रोड पर एक के बाद एक फैलाया जाए तो इसकी लंबाई इतनी होगी की चांद पर 5 बार जा के लौटने के बराबर होगा। और धरती से चांद की दूरी कितनी है? ज्यादा नहीं 384,000 किलोमीटर मात्र। इनको पहले 2 से गुना कर लें, और फिर 5 से। इतना लंबा होगा।
इससे भी समझ नहीं आ रहा हो तो ऐसे समझिए। धरती के चारो तरफ अगर इन नोटों को एक के बाद एक लगाया जाएगा तो पूरी धरती के 80 से भी ज्यादा चक्कर काटने पड़ेंगे। और अभी क्या पता 30 दिसम्बर तक और भी जमा हो जाए।
RBI के एक सीनियर अफसर की मानें तो कुछ नोटों को डंप किया जाएगा। कुछ को जमा के ईंट जैसा भी कुछ बनाने का प्लान है। और कुछ को शो पीस जैसा कुछ बनाया जाएगा। जैसे पेपर वेट जैसा कुछ।
यहीं पर एक काम की बात भी जान लें। एक पूर्व मंत्री जी ने लिखा था। वित्त मंत्री थे। एक अखबार में कॉलम लिखा था। उन्होंने बताया था कि इंडिया को करीब 200 बिलियन का खर्च आएगा। नए नोटों को पुराने नोटों से बदलने में। मतलब 20000 करोड़।
और आपको क्या लगता है पैसे आसमान में उगते हैं? इंडिया का हर साल का नोट प्रोडक्शन का खर्च आता है $400 मिलियन डॉलर। इसको पहले 70 से गुना कर लें। और फिर 10 से उतना लाख का खर्च होता है। वो सरकार जो पैसे खर्च करती है। एक-एक रूपये वो आपके हमारे पॉकेट से जाता है। चाहे वो डायरेक्ट टैक्स हो या इनडायरेक्ट टैक्स। अब जो पैसा डेवलपमेंट के लिए खर्च होता। वो अब पहले मार्केट को संभालने में खर्च होगा।