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कहानी अंडरवर्ल्ड की: मामूली सा पंक्चर निकालने वाला बना मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन

Rahul Ashiwal Updated Tue, 24 Jan 2017 04:02 PM IST
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dsf - फोटो : google
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विस्तार

एस. हुसैन जैदी साहब की मुम्बई अंडरवर्ल्ड पर लिखी किताब 'डोंगरी से दुबई तक' माफिया के इतिहास को सिलसिलेवार तरीके से दर्ज करने की पहली कोशिश है। इसमें हाजी मस्तान करीम लाला, वरदराजन, छोटा राजन, अबू सलेम जैसे कुख्यात रिरोहबाज़ो की कहानी तो है ही, लेकिन इन सब के ऊपर एक ऐसे इंसान की कहानी है, जो अपने पिता के पुलिस विभाग में होने के बावजूद माफिया का बेताज बादशाह बना और पूरी मुम्बई पर राज़ किया और शायद आज भी कर रहा है।.... अंडरवर्ल्ड की पैदाइश से लेकर उसके अब तक के सफर की कहानी एक सीरिज सिलसिलेवार तरीके से बयां करेंगे हम..

जब भी किसी माफिया गैंग या डॉन की बात चलती है तो सबके ज़हन में जो सबसे पहला नाम आता है वो है मुम्बई अंडरवर्ल्ड का डॉन दाऊद इब्राहीम, लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं की जब माफिया सरगनाओं ने मुम्बई(बम्बई) में अपनी ज़़डे जमाना शुरू कर दिया था तब तो दाऊद ने गुनाहों की इस सरजमीं पर अपना पैर भी नहीं रखा था...तो कौन था वो जिसने देश की आर्थिक नगरी को खौफ और आतंक की नगरी बनाने की शुरूआत की? हम बात कर रहें हैं बम्बई के 1950-1960 के दशक की, पचास के दशक में भी लोग बम्बई की तरफ इस तरह भागते थे जैसे परवाने शमा की तरफ भागते हैं। और इन्हीं परवानों में से एक था हाजी मस्तान। सब जानते हैं कि हाजी मस्तान मुम्बई अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन हैं। हाजी मस्तान मुंबई अंडरवर्ल्ड का सबसे ताकतवर डॉन था। लेकिन इस शक्तशाली डॉन ने अपनी पूरी जिंदगी में किसी की जान नहीं ली। किसी पर हमला नहीं किया। यहां तक कि एक भी गोली नहीं चलाई। बावजूद इसके हाजी मस्तान जुर्म की काली दुनिया में सबसे बड़ा नाम था।

मस्तान हैदर मिर्जा का जन्म 1 मार्च, 1926 को तमिलनाडु के कुड्डलूर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पनानकुलम गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। मस्तान के पिता हैदर मिर्जा मेहनतकश लेकिन तंगहाल किसान थे। रोटी-रोजी का इंतजाम करने में नाकामयाब रहने पर अपने बेटे के साथ बम्बई आ गए थे। उन्होंने क्रॉफोर्ड मार्केट के करीब बंगालीपूरा में जैसे तैसे मैकेनिक की एक दुकान खोल ली जिसमें वे साइकिलें और मोटरसाइकिलें सुधारा करते थे। हर बार भी जब भी वह अपनी बगल से गुजरती चमचमाती कार को सरपट भागते हुए देखता या मालाबार हिल के ठाठदार बंगलों के पास से गुजरता, तो उसका ध्यान अपने मैले-कुचैले हाथों पर जाता और वह सोचने लगता कि क्या कोई ऐसा भी दिन आएगा जब उसके पास भी ऐसी ही कारें और बंगले होंगे।
 
जब यह लड़का 18 का हुआ तो उसने साइकिल सुधारने का धन्धा छोड़कर किसी और काम में हाथ आजमाने का हिम्मती फैसला कर लिया। मस्तान के पिता ने उन्हें हमेशा ईमानदार और मेहनती बनने की नसीहत दी थी।

1944 में मस्तान एक कुली के रूप में बम्बई बन्दरगाह में शामिल हो गया जिसका बिल्ला नम्बर 786 था। उसने पाया कि अंग्रेज बाहर से आने वाले माल पर सीमा शुल्क वसूलते हैं और इस शुल्क को बचा लिया जाए तो अच्छी खासी कमाई हो सकती है। तभी शेख मोहम्मद गालिब नाम के एक अरब शेख से उसकी मुलाकात हुई। गालिब को भी एक ऐसे ही आदमी की जरूरत थी जो आयात शुल्क का झांसा देने की उसकी गैरकानूनी गतिविधि में उसकी मदद कर सके।

गालिब ने मस्तान को अपने साथ मिला लिया। गालिब ने उसे कई तरकीबें सिखाई जैसे सर की पगडी में ट्रांजिस्टर छुपाना और बेल्ट में घड़िया। इस काम के बदले भरपूर पैसा देने का वादा किया। यहीं से शुरू हुआ मस्तान का स्मगलिंग का धंधा। और धीरे धीरे वो स्मगलिंग का बेताज बादशाह बन गया। आगे चलकर मुख्य रूप से उसने सोने के बिस्कीट की स्मगलिंग की।

1952 आते आते शेख और मस्तान शिखर पर पहुंच चुके थे। हाजी मस्तान की जिंदगी में सबसे बड़ा मोड़ 50 के दशक में आया। उसकी दोस्ती दमन के तस्कर सुकुर नारायण बखिया से हुई। दोनों ने मिलकर एडेन और दुबई से इलेक्ट्रॉनिक सामान और सोने की तस्करी शुरू कर दी। उन पर दौलत बरसने लगी। 1955 में मस्तान 5 लाख का धनी था। उसने अपने सारे सपने पूरे किए गाड़ी, बंगला, ऐश-ओ-आराम सबकुछ था उसके पास अब वो मुम्बई के सबसे अमीर लोगों में शामिल था। बॉलीवुड से लेकर कई राजनोताओं से उसका उठना बैठना था। पुलिस महकमें में भी उसका रूतबा था।

सफेद डिजाइनर सूट, टाई, करीने से कंघी किए बाल, हाथ में विदेशी सिगरेट और मर्सिडीज की सवारी। ये मस्तान का शगल बन चुका था। सिनेमा के प्रेम के चलते उसने हीरोइन सोना से निकाह कर लिया। उसकी हुकूमत बम्बई में हमेशा चलती रही बाहुबल के रूप में उसके पास वरदा भाई और करीम लाला थे लेकिन फिर भी उसने कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। मुम्बई में उसका नाम चलता था यहां तक की दाऊद भी मस्तान को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानता था और कहते है कि दाऊद ने स्मगलिंग के गुर मस्तान से ही सिखे थे। 370 के दशक में माफिया डॉन हाजी मस्तान ने हर जगह अपनी पैठ बना ली थी।

राजनीति से बॉलीवुड तक उसकी जान पहचान थी, लेकिन 1974 में आपातकाल के दौरान वो निसा एक्ट के तहत जेल भी गया, लेकिन आपातकाल के बाद उसने जयप्रकाश नारायण के सामने ये सब गैरकानूनी धन्धे छोड़ने की कसम खाई। 1980 में हाजी मस्तान ने अपराध की दुनिया को अलविदा कहते हुए 1984 में बतौर नेता अपने आप को सामने लाया और अपनी एक अलग राजनैतिक पार्टी बनाई।

उसने एक बेटा गोद भी लिया जिसका नाम था सुंदर शेखर। कहा जाता है की मस्तान हज की बहुत यात्राएं करता था इसलिए उसका नाम हाजी मस्तान पड़ गया। उसने अपना अंतिम समय अपने परिवार के साथ बिताया और 1994 में हार्ट अटैक से हाजी मस्तान की मौत हो गई। इसी के साथ खत्म हो गया मुम्बई अंडरवर्ल्ड का पहला और असली डॉन।

 Credit: S. Hussain zaidi(Dongri se Dubai Tak)

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