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जिंदगी एक ऐसा सब्जेक्ट है जिसकी बात छेड़ने पर हमारे यहां हर कोई फिलॉस्फर हो जाता है। और फिर ज्ञान की ऐसी गंगा बह निकलती है कि आप डुबकी लगाते जाइए बस... दिमाग में भरपूर ज्ञान भरा होने पर भी लोग उसे बस दूसरों के लिए ही रखते हैं, खुद नहीं अपनाते। ठीक उसी तरह कुछ आदतों को इंसान नहीं बदलना चाहता। यह काम भी वह दूसरों के लिए रखता है। उसे यह भी पता होता है कि ये दरअसल आदतें नहीं, बीमारियां बन चुकी हैं। ये बात लगभग किसी की जिंदगी में कॉमन होती हैं। आप भी देख लीजिए कि कहीं इन बीमारियों को आपने भी तो नहीं पाल लिया है। अगर हां तो इलाज ढूंढ़िये।
ऑफिस लेट पहुंचना
ऑफिस लेट पहुंचने की आदत दरअसल एक ऐसी भयंकर बीमारी है जो एक बार हो जाए तो सही तभी होती है जब बॉस सरेआम आपकी इज्जत की बैंड बजा दे। देखा जाए तो चंद मिनटों की लेट लतीफी में फजीहत ही फजीहत है। ऑफिस का चपरासी तक टोकने लगता है। लेट होने के पीछे भी एक बात बड़ी कॉमन होती है कि सुबह सवेरे लोगों का एक बार में पेट ही साफ नहीं होता। ज्यादातर टाइम टॉयलेट में ही गुजर जाता है।
बात बात पर कोसने लगना
अक्सर आदमी जब तनाव में होता है तो लोगों को कोसता खूब है। कमाल की बात यह है कि डिप्रेशन से निकलने के बाद भी कोसने की लत का शिकार बना रहता है। जैसे किसी लाइलाज बीमारी ने उसके शरीर में घर कर लिया हो। इन लोगों की एक पहचान और है कि ये बात करते वक्त गालियों का खूब प्रयोग करते हैं। इन्हें लगता है कि वे तकिया कलाम बोल रहे हैं।
देर से सोना
इंटरनेट और जियो कनेक्शन के जमाने में कितना भी कोशिश कर लो भाई, देर से सोने की आदत ठीक नहीं होती।
आज का काम कल पर टालना
कबीर दास बहुत पहले कह गए थे - कल करे सो आज करे, आज करे सो अब, पल में परलय होत होत है, बहुरि करोगे कब... लेकिन इंडिया के लोगों पर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने कबीर वाणी के कैसेट और सीडी बनाकर धंधा जरूर चमका लिया। कुछ घरों कबीर वाणी का नियमित संगीत सुनाई भी देता है, लेकिन बस मनोरंजन के उद्देश्य से।
दूसरों को अपने से कमतर समझना
ये आदत तो हम हिंदुस्तानी लेकर ही पैदा होते हैं। हम लगता है कि है हम ही इस दुनिया के सुपरस्टार हैं। दूसरे की कोई वैल्यू नहीं। यही गलतफहमी ऑफिस में दोस्तों के बीच, सब जगह बनी रहती है।
काम से ज्यादा किस्मत पर भरोसा करना
बच्चों में आध्यात्म का बीज बोना अच्छी बात है, लेकिन हमें ऐसा आध्यात्म सिखा दिया जाता है कि आदमी बचपने से लेकर बुढ़ापे तक पंगु बना रहता है। जहां देखा मंदिर के लगे मांगने। ये लोग किस्मत पर अपने से ज्यादा भरोसा करते हैं।