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इस पेड़ का पत्ता भी सूखता है तो प्रशासन हिल जाता है, हिंदुस्तान का इकलौता VVIP पेड़!

Updated Thu, 13 Jul 2017 12:22 PM IST
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VVIP Tree, Madhya Pradesh, Mahinda Rajpakshe, Srilanka, BodhiVraksh,
VVIP Tree, Madhya Pradesh, Mahinda Rajpakshe, Srilanka, BodhiVraksh, - फोटो : NDTV
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वीवीआईपी कल्चर और उसके ट्रीटमेंट का मजा सब लेना चाहते हैं, बहुत सारे लोग इसके लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं, दिमाग लगाते हैं लेकिन फिर भी वो इसके लिए ललचाते रह जाते हैं।मध्य प्रदेश के भोपाल में तनकर खड़ा हुआ एक पेड़ इस स्वप्नरुपी वीवीआईपी ट्रीटमेंट का मजा ले रहा हैं। पेड़ की ठाठ-बाठ का आलम ये है कि अगर इसका एक पत्ता भी सूख जाए तो प्रशासन का गला सूखने लग जाता है।

इस वीवीआईपी पेड़ का पता है भोपाल की राजधानी के करीब सलामतपुर नाम की पहाड़ी ।  इसकी निगरानी के लिए 24 घंटे गार्ड तैनात रहते हैं इसके अलावा चारो ओर मजबूत लोहे की हवादार दीवारों से इसे घेरकर रखा गया। खान-पान के मामले में भी ये पेड़ बिल्कुल एलीट क्लास है। इसके लिए बकायदा एक टैंकर पानी रखा जाता है और समय-समय पर खुराक दी जाती है। अगर इसका एक भी पत्ता सूखता है तो प्रशासन के प्राण सूखने लगते हैं। 

इतने रईसी ठाठ सुनकर आपके मन में भी सवाल कौंधने लगा होगा कि आखिर इस पेड़ में ऐसा क्या जो इतनी तवज्जों दी जा रही है। हमारे बगीचे में तो तमाम पेड़ हैं मजाल है कि कोई चू-चपड़ कर दे। तो आपको बता दें कि इस पेड़ की किस्मत बीज के वक्त से ही अच्छी है। जब ये पौधा बनकर तैयार हुआ तो इसे श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के हाथों पर रख दिया गया। राजपक्षे ने इस बोधि वृक्ष को अपने हाथों से रोंपा है। इसलिए बौध धर्म अनुयायियों के अलावा प्रदेश के प्रशासन के लिए भी पेड़ खास है। 

बताया जाता है कि पेड़ के रख रखाव  में  12-13 लाख का सालाना खर्च आता है। बाकी इसके लिए सड़क बिछाने, मजबूत तारों की बाड़ों से घेरने का खर्चा अलग। हाल ही में मध्य प्रदेश में  51 किसानों ने छोटे मोटे लोन के चलते आत्महत्या कर ली। इन दोनों तथ्यों को एक साथ सिर्फ इसलिए रखा जा रहा है ताकि सिस्टम आम आदमी की फिरकी न ले तो... बेहतर होगा। 

कमाल की बात तो ये है कि जिस यूनिवर्सिटी के नाम  पर  इस पेड़ को रोपा गया था। जिसकी वजह से इसे वीवीआईपी पेड़ का दर्जा देते हुए चारों ओर मजबूत बाउंड्री बनाई गई है उसी यूनिवर्सिटी की बाउंड्री पिछले 5 सालों से टूटी हुई हैं। जिसको बनवाने के लिए सरकार के पास फंड नहीं है  इसलिए  निजी  भवन में  किराए पर उसे चलाया जा रहा है। 

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