Home Omg Omg Chapda Chatani Is A Delicious Dish Made Of Red Ants

यहां के लोग खाते हैं ‘चापड़ा’ यानी ‘लाल चींटी की चटनी’

Updated Wed, 31 Aug 2016 01:46 PM IST
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वैसे तो दुनिया में तरह-तरह के लोग रहते हैं और उनके व्यंजन अलग-अलग तरह के ही होते हैं। और भारत तो है ही विविधताओं का देश, यहां जितने प्रकार के लोग उतने ही प्रकार के उनके भोजन। दरअसल हर जगह के अपने खान-पान की कुछ विशेषता होती है। ऐसी ही एक चीज़ है ‘चापड़ा’ यानी कि लाल चींटी की चटनी जो ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड राज्यों के घने जंगलों वाले आदिवासी इलाकों में खाई जाती है।

चींटियों को इकठ्ठा करके चटनी बनाते हैं34

आपको बता दें इन इलाकों में रहने वाले लोग पेड़ों पर रहने वाली लाल रंग की चींटियों को इकठ्ठा करके चटनी बनाते हैं जिसे स्थानीय भाषा में ‘चापड़ा’ कहते हैं। स्थानीय आदिवासी इसे स्वयं तो खाते ही हैं साथ ही बाज़ार में बेचकर अच्छी कमाई भी करते हैं और ये वहां के लोगों में खासी पसंद की जाती है ।

आइए बताते हैं कैसे बनाते हैं चापड़ाlal-int

वैसे तो ये साधारण चटनी जैसे ही बनाई जाती है, लेकिन इसमें जंगलों में साल के पेड़ों से चींटियों को जमा कर उसे पीसा जाता है और स्वादानुसार मिर्च और नमक मिलाया जाता है, जिससे इसका स्वाद चटपटा हो जाता है। इसे आदिवासी बड़े चाव से खाते हैं। चींटी में फॉर्मिक एसिड होने के कारण इससे बनी चटनी चटपटी होती है। साथ ही आदिवासियों के लिए यह प्रोटीन का सस्ता स्रोत भी है।

बीमारियों से बचाती है चापड़ा चटनीP1000375

इन आदिवासियों का मानना है कि इससे कई बीमारियों में आराम मिलता है और प्रतिरक्षा (इम्युन सिस्टम) प्रणाली मजबूत होती है, जो बीमारियों से रक्षा करती है। ग्रामीणों की मानें तो चटनी के सेवन से मलेरिया तथा डेंगू जैसी बीमारियां भी ठीक हो जाती है। Red-Antआमतौर पर ऐसी मान्यता है कि साधारण बुखार होने पर ग्रामीण पेड़ के नीचे बैठकर चापड़ा लाल चीटों से स्वयं को कटवाते हैं, इससे ज्वर उतर जाता है। 75चापड़ा की चटनी आदिवासियों के भोजन में अनिवार्य रूप से शामिल होती है। छोटी व बड़ी लाल चींटी ‘ओइकोफिला स्मार्गडीना’ ज्यादातर ऐसे पेड़ों में पाई जाती हैं जिससे निकलने वाला रस मीठा हो।

प्राकृतिक जैविक कीटनाशक के तौर पर इस्तेमालchhapra-ant-chutney-copy

ब्राजील, आस्ट्रेलिया व चीन जैसे देशों में शोध के बाद यह पाया गया कि इन चींटियों को प्राकृतिक जैविक कीटनाशक (बायोपेस्टिसाइड) के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। फलों के बगीचों में इन चींटियों को छोड़ा जाता है। इनके डर से फलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट दूर रहते हैं। https://youtu.be/QSyXiH1koTo  
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