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रियो ओलंपिक खत्म हो चुके हैं। अब 2020 में ओलंपिक टोक्यो में होना है। 2016 में सोशल मीडिया पर जो चीज़ सबसे ज्यादा ट्रेंड कर रही थी वो थी #RioOlympics2016। अब 2020 आएगा तब लोग #TokiyoOlympics2020 लिखेंगे। बीच-बीच में जो खिलाड़ी जीत रहा था उसके नाम के साथ भी हैशटैग जोड़ के चलाया गया। ऐसा लगे जैसे ओलंपिक में मेडल से ज्यादा, जिसके नाम के साथ ज्यादा से ज्यादा जोड़ के हैशटैग चला वही विनर है। पता नहीं मेरा हैशटैग बनने का सपना कब पूरा होगा। मेरा तो ओलंपिक से पहले का ख्वाब था कि मैं हैशटैग बन जाऊं। ख़ैर सपनों का क्या है, बनते रहते हैं। टूटते रहते हैं।
इस पूरे ओलंपिक सीज़न मे सब लोग फुल एक्सपर्ट बने फिर रहे थे। जिसको देखो ज्ञान बांट रहा है। तो आज हमारा मन भी हो गया कि हम भी एक दिन के लिए एक्सपर्ट बनते हैं। वो भी उधार का। उधार का मतलब 5 जगह से अलग-अलग चीज़ पढ़े और अब एनालिसिस ले के आ गए हैं। लेकिन, लेकिन...इंडिया का नहीं पकिस्तान का।
क्योंकि हमारे पड़ोसी देश के एक महानुभाव ने साक्षी के मेडल जीतने के बाद कहा था कि देखना इंडिया वाले कैसे दिखाएंगे इसको। जैसे एक नहीं 20 मेडल जीत गए हों। हां तो ठीक है हमें उनसे कुछ नहीं कहना। क्योंकि बेवकूफों के मुंह लगना मेरे बस का नहीं। काहे कि हम उनसे बड़े वाले हैं। लेयो अब तुम्हारी पोल खोलेंगे गुरु हम!
अब मुद्दे की बात...
पाकिस्तान ने पिछले 24 सालों में एक भी मेडल नहीं जीता है ओलंपिक में। जी हां, हम कोई फ़िरकी नहीं ले रहे हैं। हम फ़िरकी लेते हैं लेकिन उसकी जिसकी ली नहीं जा सकती। हम वहां भी खोज निकालते हैं। पाकिस्तान की तो सच्चाई ही बता दूं तो इससे बेस्ट फ़िरकी क्या हो सकती है!
पाकिस्तान का इस बार ओलंपिक में क्या हाल रहा?
पाकिस्तान की आबादी कितनी है? लगभग 190 मिलियन। 190 मिलियन मतलब लगभग 20 करोड़। इसके बाद भी उड़ेंगे ऐसे जैसे पता नहीं चीन उन्हीं का घरवैया है। ख़ैर, झूठे सपने देखने का हक़ हर किसी को है, मना नहीं है। इस 20 करोड़ में से उन्होंने 7 खिलाड़ी भेजे। लेकिन साथ में एक अच्छा काम किया जहां हम थोड़ा पीछे रह गए। क्या? इन 7 खिलाड़ियों की देख रेख के लिए इन्होंने 14 लोगों की एक टीम साथ में भेजी थी।
लेकिन इसका कुछ फायदा हुआ नहीं। इनको इस बार 2016 में एक भी मेडल नहीं मिला। ये सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता। पकिस्तान इस बार ओलंपिक का सबसे बड़ा देश रहा जिसने एक भी मेडल नहीं जीता। है न कमाल की बात। देखना जी.के. का सवाल हो सकता है। कौन सा सबसे बड़ा देश रहा जिसने ओलंपिक में एक भी मेडल नहीं जीता? सही जवाब है, पकिस्तान। ठीक है!
लेकिन क्या हमेशा यही हाल रहा है?
नहीं, बिलकुल भी नहीं। जैसे उदाहरण के लिए पकिस्तान की फील्ड हॉकी टीम इस बार ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाई। जबकि 1948 के बाद से आज तक एक बार भी ऐसा नहीं हुआ है। और पाकिस्तान का मेडल निल होने का ये सिलसिला आज से नहीं 1996 के एटलांटा ओलंपिक से चल रहा है। यही हाल लंदन में भी था 2012 में, कोई मेडल नहीं। बीजिंग में 2008 में भी कोई मेडल नहीं। लेकिन अब जब हालत गिरते-गिरते यहां तक आ गई कि कोई खिलाड़ी पहुंच ही नहीं पा रहा तब लोगों का दिमाग उधर गया है।
अब इस बार जो 7 खिलाड़ी गए थे। उनमें से ज्यादातर भी वाइल्ड कार्ड से एंट्री कर गए थे। ये वाइल्ड कार्ड एंट्री क्या होता है? दूसरे शब्दों में समझ लो, ओलंपिक एसोसिएशन वाले भेज देते हैं कुछ अच्छे खिलाड़ियों को डिसक्वालिफाई होने के बाद भी।
आखिर पाकिस्तान की इतनी बुरी हालत क्यों है?
अब जब लोगों को समझ में आने लगा है कि यार ये तो बहुत ही बुरा हाल है। टेस्ट क्रिकेट रैंकिंग में नंबर 1 पर पहुंच गए। लेकिन बाकी खेलों का क्या! अब ये टेस्ट वाली रैंकिंग भी कब तक! इंडिया का न्यूज़ीलैण्ड दौरा शुरू होने दो, बस! वहीं कोहली एंड टीम फिर से एक नम्बरी हो जाएगी। फिर जितना पुश अप मार के फील्ड में कप्तान को सलामी देना होगा दे लेना।
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पाकिस्तान का एक अख़बार है, 'एक्सप्रेस ट्रिब्यून'। उनका कहना है कि "सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि पाकिस्तान की सरकार या मंत्रालय जो है वो ये मानने को तैयार ही नहीं है कि दिन ब दिन हमारे यहां खेलों की हालत बिगड़ती जा रही है।"?
एक बार पहले माने तब तो कुछ सुधार होगा। बात भी वाज़िब है।
दूसरा ये भी है कि पाकिस्तान की इनकम इतनी नहीं है कि वो बाकी देशों की तरह खेलों पर खूब पैसा खर्च कर सके। या फिर जो स्पोर्ट्स स्टेडियम वगैरह हैं उनकी हालत सुधार सके। और अगर ये सब भी नहीं कर सके तो कम से कम जो खिलाड़ी खुद के दम पर तैयार हो रहे हैं। उनको खेलने भेजे अलग-अलग जगह। बड़े-बड़े खेल होते रहते हैं।
Firkee पूछता है:
महोदय, पैसे की इतनी ही किल्लत है। इतनी ही गरीबी पसरी है तो काहे नहीं इसके लिए कुछ सोचते हैं। बेकार में हाफ़िज़ सईद जैसे पट्ठों के चक्कर में खर्च हो रहे हैं। बिना ज़रूरत इंडिया से मुंह फुला के बैठे रहते हैं, आइए मोदी जी के पास बात कीजिए। कश्मीर पर नहीं गुरु, पाकिस्तान की हालत पर। इसको कैसे सुधारें? कैसे आगे बढें? हम आपके पड़ोसी हैं जी, ऐसे थोड़ी छोड़ देंगे आपको नाले में बहते हुए। मदद करेंगे। पहले मदद मांगना तो सीखिए। है कि नहीं?
खालिद महमूद हैं, पाकिस्तान ओलंपिक एसोसिएशन के सेक्रेट्री हैं। वही बता रहे थे कि पूरे साउथ एशिया में पाकिस्तान का बजट स्पोर्ट्स में सबसे कम है।
लेकिन कुछ और लोगों का कहना है कि सबसे बड़ा दिक्कत है, पैसे का बंटवारा। मतलब जो पैसा बजट में पास होता है। वो लोगों को कैसे मिलता है। हिसाब ये है कि जिसको जिसे मन कर रहा है उसे पैसे दे दे रहा है। जो पैसा अच्छे खिलाड़ियों को मिलना चाहिए था, वो जुगाड़ तंत्र से बांटा जा रहा है। जो लोग नेता जी के आस-पास हैं, जिनका अफ़सर लोग से जुगाड़ है, उनको पैसा मिल जाता है बाकी लोग ऐसे ही दौड़ते रह जाते हैं।
वैसे पैसा वाला हिसाब तो अपने यहां भी कुछ ऐसा ही है। लेकिन कुछ भले लोग हैं जो पैसों के बीच से खेल को बचा ले जाते हैं।
एक और पॉइंट है जिसकी चर्चा डिटेल में हम नहीं कर रहे। वो है, वहां लड़कियों की स्थिति। जहां लड़कियों को बमुश्किल पढ़ने भेजते हैं। वो खेलने क्या भेजेंगे। उसमें भी मान लो कोई स्विमिंग में जाना चाहता हो तो उसको कहोगे कि पूरा बुर्का लगा के स्विमिंग करो। माइकल फेल्प्स, जिन्होंने अभी तक स्विमिंग में 28 गोल्ड जीते हैं। उनका बाप भी नहीं जीत पाएगा। यही हाल दूसरे खेलों में भी है। बाकी आप लोग हैं समझदार! हम क्या बताएंगे आपको।
पाकिस्तान के खेल में सुधार के लिए कोई सुझाव हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में Firkee.in के माध्यम से दे सकते हैं! सीधे बात करने की कोशिश कीजिएगा तो कश्मीर-कश्मीर करने लगेंगे। तो बेहतर है यहीं से धीरे से कह के निकल लीजिए। हम देते नहीं लेते हैं! क्या? ख़बर!