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करण जोहर, बॉलीवुड डायरेक्टर/प्रोड्यूसर। जिसे आज से नहीं सदियों से ही सेक्सुअलिटी को लेकर उंगली किया जा रहा है। क्योंकि लोग अपनी थाली का खाना खाने से ज्यादा दूसरों की थाली में झांकने के लिए ज़्यादा उतावले रहते हैं। वही लोग सेक्सुअलिटी का सबूत ज्यादा मांगते हैं, जो अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर बचपन से कनफ्यूजन में रहते हैं। यहां लोग पुरूष और महिलाओं को समान हक देने की बात करते हैं और 'गे' होने पर उंगली करते हैं।
ख़ैर.. यहां लोग ही ऐसे हैं जिन्हें अपने बारे में भले एक अक्षर न पता हो लेकिन दूसरों के बारे में पीएचडी कर बैठे हैं वो भी सी ग्रेड वाली..
कभी-कभी सोचती हूं कि ट्वीटर लोगों की भड़ास निकालने के लिए ही उतारा गया है। लोग एक दूसरे को आमने-सामने फेस तो कर नहीं पाते, इसलिए ट्वीटर पर अपनी जली-कटी निकालते हैं। लोगों के पास घर-परिवार के लिए तब वक्त आए न जब सोशल मीडिया उन्हें बंधनो से मुक्त करे।
ये इंडियन शेरलॉक हैं, जिन्होंने ट्वीटर पर अपनी सेक्सुअलिटी का प्रचार कर दिया। "करण जौहर क्या आप 'गे' हैं, आप मुझे लॉंच करते हैं तो आपके साथ सोने के लिए तैयार हूं"
ये भईया शेरलॉक का भी नाम मिट्टी में मिला दिए। ये कहते हैं कि 'एआईबी करे तो रासलीला मैं करूं तो कैरेक्टर ढीला'
कैरेक्टर हो तब न ढीला होगा। दो कौड़ी के कैरेक्टर को हमारे यहां कैरेक्टर नहीं कैरेक्टरलेस कहते हैं..
अब बात ये है कि लोग करण जोहर को लेकर नहीं एक 'गे' को लेकर सोचने पर मजबूर कर देते हैं। क्या 'गे' होना या न होना अपने बस में है? करण जोहर को अलग रख के सोचा जाए तो यह देश 'गे' के लिए एक चुनौतीपूर्ण बन गया है। बच्चे के पैदा होते ही एक पुख्ता सर्टिफिकेट बन जाना चाहिए कि ये बच्चा बड़ा होकर 'गे' की कैटेगरी में नहीं आएगा, तब इस देश के लोग शायद से मानने के लिए तैयार हो जाएं कि फलां आदमी 'गे' नहीं है।
वरना कुछ लोग यही पता करने में अपनी कीमती ज़िंदगी बिता देंगे की कौन 'गे' है कौन नहीं। ख़ैर करण जौहर तो बड़े सितारे हैं, आज देश के तमाम लोग 'गे' होने न होने की समस्या झेल रहे हैं। देश के लिए गरीबी, भ्रष्टाचार, काला धन इन सारी समस्याओं के बाद एक और समस्या 'गे' होन और न होना भी है।